शुभ सत्यास्मि ज्ञान प्रातः


काक चेष्टा बगुला ध्यानी
और श्वान निंद्रा धारक।
अल्पाहारी सेवाभावी
यही शिष्य अर्थ तारक।।
विषय आलोचना सुने करे
पर गुरु निंदा नही श्रवण।
हाँ में हाँ नही सच अनुभव कहे
वही शिष्य गुरु विद्य वरण।।
भावार्थ:-हे शिष्य जिस किसी मनुष्य में काँव की तरहां ये गुण और प्रयास होता है की जैसे वो निरंतर अपने भोजन के लिए अपनी आवाज़ निकलता हुआ इस प्रयत्न में रहता है की कब उसका दांव लगे और वो उस वस्तु को लेकर उड़ जाये और जिस मनुष्य में बगुले की तरहां जल में मछली पकड़ने के लिए अपने लक्ष्य पर एकाग्रता से एक ही मुद्रा में खड़े रहकर तब तक प्रतीक्षा करता है जब तक वो मछली आदि उसके नजदीक नही आ जाती और तभी तीर्वता से अपने चोंच में पकड़ उड़ जाता है तथा जिस मनुष्य में कुत्ते की भांति सोते हुए भी जागर्ति रहती है की जरा से आहट होते ही वो तुरंत चैतन्य होकर भोंकने और उसका सामना करने लगता है साथ जो मनुष्य देशकाल परिस्थिति के अनुसार उतना ही आहार या खाना खाने को लेता है जितना उसकी भूख मिटाने को आवश्यक होता है वही अल्पाहारी व्यक्ति कहलाता है साथ ही जो अपनी नित्य के कार्य को एक बोझ नही मानकर उसे अपनी दैनिक दिनचर्या की भांति प्रसन्नता से करता है और जो भी सेवा उसे दी है या उसने चुनी है वो उसे प्रसन्नता से पूर्ण करता है तथा शिष्य वही उत्तम है जो संसार के सभी विषयों पर सुनते और कहते हुए सत्य जानने हेतु अवश्य आलोचना करे परंतु अपने गुरु की निंदा सुने या अपमान होते नही देखे उसका तुरन्त प्रतिकार अपने सम्पूर्ण ज्ञान और बल से अवश्य करे ना की किसी अन्य के साथ हाँ में हाँ मिलता रहे बल्कि जो बोले वो अपने अनुभव के आधार पर ही बोले तब ऐसे सभी गुणों वाले मनुष्य या शिष्य या साधक के लिए संसार में सभी कुछ प्राप्त हो जाता है इसमें कोई सन्देह नही है उसे गुरु विद्या शीघ्र वरण हो जाती है व् गुरु और इष्ट आशीर्वाद बिन मांगे प्राप्त होता है ।यो शिष्य इन गुणों का विकास करो और जीवन में सफलता पाओ।
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