मेरे जीवन की दो दुर्घटना और मंत्र साहयता

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जब मैं छटी या सांतवी कक्षा में पढ़ता था तब अपने गांव चंगोली में गर्मियों की जुलाई महीने तक की छुटियों में जाते थे वेसे ही मैं और मेरा छोटा भाई सजंय भी गए हुए थे हमारे खेतों के पास हरिद्धार कोट से निकली छोटी गंग नहर है यो नहर के पास के लोग अधिकतर तैराकी सीख ही जाते है वेसे ही हम उस समय तैरना नही आता था तब नहर के उतरने पर ठहरे हुए पानी में शाम के समय पुल के सामने के भरे पानी में नहा रहे थे की अचानक छोटे भाई का पैर फिसला और वो गहरे पानी में गोते खाने लगा मैं उसे बचाने गया तो मैं भी गहरे पानी में चला गया और डूबने लगा दोनों थोड़ी सी दूर पर पानी नीचे ऊपर डूब रहे थे पैर तल में लगते ही नही थे उधर हमारे कुनबे का लड़का आगे सुखी नहर से बालू रेत निकाल कर बुग्गी में भर रहा था उसने हमे डूबते देख कहा अरे ऐसे क्यों खेल रहे हो इतने उसको साहयता को पुकारे उतने ही क्षण में वापस पानी में डूब जाते आवाज नही निकल पाती तीसरी डुबकी चल रही थी की मुझे एक दम से अंतर ईश्वर की साहयता को पुकारने की तीर्व भाव हुआ और मेने पुरे मन जोर से मन में कहा भगवान बचाओ बस इतना ही कहा की किसी ने जैसे मेरी कमर में जोर का धक्का मारा और मैं उस धक्के के जोर से अपने भाई सजंय से टकराया और दोनों उस गहरे पानी के गड्ढे से दूर हो गए हमारे पैर थोड़े पानी में जा टिके और हम पानी से बाहर आ गए तब मुझे लगा की कोई ईश्वरीय साहयता है ये मेरे पूर्वजन्मों के तपोबल से वर्तमान में निरंतर समाधि होने के पूण्य बल का प्रताप होगा तभी मेरी पुकार पर दिव्य साहयता मिली है मैं चैत्र की नवरात्रि अष्टमी को अपने पैत्रक गांव में जन्मा था मेरा भाई क्वार की नवरात्रि की नवमी को खुर्जा में जन्मा और उसके जन्म के उपरांत उसके सांवले रंग शरीर पर बीच माथे पर एक गुलाबी रंग का तिलक तब गहरा था अब बहुत हल्का है और वो तब से आज तक लहसुन को सब्जी में नही खाता है उसकी सब्जी दाल छोकने से पूर्व निकाल दी जाती थी और छोटा तीसरा भाई अंजय सर्दियों में आने वाली ईद के दिन जन्मा था ये सब जन्म पूर्व जन्मों के शुभ पुण्यों का प्रताप ही होगा हम सभी भाई आज भी अपना जीवन सात्विक और धर्म में तर्कपूर्णता के आधार पर मानते हुए पूर्व श्रद्धा से मनाते है जबकि हमारी माता जी बिलकुल सामान्य सुबह शाम केवल दीपक जलाने वाली बिना भजन आदि व्यवहारों की महिला है पर वे किसी की बुराई से दूर और अतिथि सेवा वाली और बाहर खड़े किसी भी असमाजिक तत्व की किसी की भी बत्तमीज को बर्दास्त नही करती तुरन्त उसका जबाब आदि देती है और पिता जी प्रारम्भ से मेरठ और फिर इलाहबाद कॉलेज में लो तक पढ़े बाद में खुर्जा से वकालत पूर्ण कर वहीं से चकबन्दी की वकालत प्रारम्भ की ये एक विषय थोड़ा संछिप्त सा परिवारिक परिचय का हो गया अब पुनः विषय पर लौटते है की आगामी घटना बड़ी भयंकर दुर्धटना की कथा हैये सन् 84 की तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंद्रा गांधी की हत्या के दंगे चल रहे थे तबकी बात है की हमारा ये वर्तमान आश्रम वाली जगह और पास का हमारा घर नितांत जंगल व् हमसे लगा सात बीधे का आम का बाग था और काफी पीछे बहुत बड़ी पानी भरी पोखर व् खेती होती थी कुछ घर दूर दूर थे लाइट भी एक दूर खेतों में जल देने के लिए बाग में ट्यूवेल लगा था उससे एक बिजली का तार घर पर लेकर भूमि में अर्थ लगा कर घर की लाईट पंखे चलाते थे तब गर्मियों में हम सब कुछ मुंडेर वाली खुली छत पर पढ़ते और सोते थे चोरो का भारी डर था यो मेने गांव से एक पुरानी बारूद भर कर चलने वाली एक नाली बन्दूक ला रखी थी और एक बन्दूक और थी उसके कुछ बेकार हो चुके कारतूसों की बारूद से छर्रे निकल केवल बारूद और पुरानी बन्दूक का बारूद निकाल कर एक कागज की पूड़ियाँ में रख रखा था ताकि गांव जाते में पड़ती गंग नहर में उसे डाल दूंगा और उसे ऊपर छत के एक कोने में रखी अद्धा ईंटों में छिपा दिया और भूल गया तब उस समय मूल बिजली के तार से जो अनेक तार छत पर हमारे पढ़ने के लिए लगे पंखे और बल्ब को जा रहे थे उन्हें मैं सही करते समय उस सभी तारों के जुगाड़ में उलटा हाथ जा लगा और मुझे बिजली ने पकड़ लिया छुटाये नही छूटी तब मैं बहुत कसरती बलवान शरीर का था तो एक जोर का झटका मार तार ऊँगली से तोड़ दिए मैं चक्कर खाता पास के उस समय प्रचलित टीवी के एंटीने के लोह खम्बे तक पहुंचा और बिजली का टुटा तार भी वही आ कर गिरा तो एंटीने के नीचे जाने कैसे वही बारूद की पूड़ियाँ खुले रूप में पड़ी थी वो एक दिन पहले आई आंधी में ईंटों से निकल वहां एंटीने के खम्बे से अटक रुक गयी थी बस क्या था मैं भी उसी पूड़ियाँ के ऊपर चक्कर खाता गिरा सा हुआ और मुझसे पहले वो चिंगारी छोड़ते तार उसपर जा गिरे तेज विस्फोट सा हुआ और सारा बारूद जलता हुआ ऊपर को मुझको जलता हुआ निकल गया मेरी आँखे चहरे सिर के बाल सब फूंक गए पैरों से लेकर सिर तक बारूद के कण शरीर में घुस गए इस धमाके से पास के घरवालों ने अपनी छत्तो से देखा और सोचा की आज कोई दँगयी बम्ब फेंक गया है सब हमारे घर की और भागे मैं छत से नीचे उतरने के लिए छोटे साइज के लोहे की सीढ़ियों से धीरे से उतरा पीठ पर बालियान व् पटटे के निक्कर में आग लगी थी एक आँख चिपक गयी दूसरी से धुंधला दिख रहा था शरीर में आग की जलन थी तब नीचे उत्तर कर खाट पर लेटा सब डरे घबराये थे क्या कैसे करें तब जो ट्यूब मिली लगाई फेमली शर्मा डॉक्टर को बुलाने गए वो बाहर गए थे तब शहर में मुख्य सरकारी चिकित्सक को छोड़ कर अस्पताल नही थे पास में नया सुधीर डॉ का अस्पताल खुला था वे आये उन्होंने देखा बोले ठंडे पानी डालो जबकि बारूद जले पर ये चिकित्सा उपाय नही बर्फ शाम को कहाँ से लाये? इसी बीच मुझे आँखे बन्द पर स्पष्ट दिखा की तीन गेरुववस्त्रधारी महात्मा जा रहे है वे मुझे देखते बोले की जैसा मंत्र जप जब कर रहे थे वैसा अब करते रहे तो बिलकुल पहले जैसे पूर्ण स्वस्थ हो जाओगे ये कह अद्रश्य हो गए मेने सबके पूछने पर कहा केसा लग रहा है मैं बोला मुझे जेसे जलती भट्टी में से डालकर निकाला हो और हाँ मुझे अभी तीन महात्मा ये कहते गए है सब सुनकर बोले अरे ऐसे में तो यही दीखता है और फिर आगे चलकर हमारे एक परिचित बहिन के पति जो अस्पताल में जानवरो के डॉक्टर थे उन्होंने कहा की मैं इनकी चिकित्सा करूँगा उन्होंने इंजेक्शन दवाइयाँ स्वयं दी और मेरे ऊपर सादा पानी डालने से शरीर से हाथ पैरों पर बड़े बड़े पानी भरे फफोके हो गए जो पेशाब को चलते में फुट जाते पानी पानी सा हो जाता फिर भर जाते मेरे आधे होठ चिपक गए थे एक आँख चिपकी वो सब धीरे धीरे खुली चेहरे भयंकर पपड़ीदार हो गया तब कोई मुझे शीशा नही दीखता की इसके मन में ये डरावनी छवि नही बने तब उसमें बड़ी ही खुजली लगती तो डॉक्टर भाई साहब ने बताया की जहाँ खुजला लिया वहीं निशान पड जायेंगे यो रात होते ही सबके सोने पर गरर्मियों में मुझे जितनी खुली होती मैं उतने ही मन ही मन में दुर्गासप्तसती का सर्व बांधा.,श्लोक जोर से जपता रहता चमत्कार देखिये की घर पर दवाइयों के इलाज के चलते चलते मैं लगभग 25 दिनों ही में बिलकुल दाग रहित स्वस्थ शरीर को पुनः प्राप्त हो गया इस कुछ विस्तारित लेख से ज्ञान मिलता है की तुम लोगों को तो कोई पंडित या गुरु आदि बताने वाला साहयक मिल जाता है जो की मुझे या सभी को नही मिलता है परन्तु जब किसी भी स्वयं ही पढ़ा कोई एक मंत्र ही निरन्तर अजपा बना पढ़ते रहने पर उसके प्रभाव से उसके ऋषि या उसके कहीं प्रत्यक्ष जापक सिद्ध महात्मा अवश्य विपदा समय आपकी दिव्य साहयता हेतु आपको स्वप्न आदि में ज्ञान देने के साथ साथ साहयता और कृपा को आ पहुँचते है सब प्रत्यक्ष का चमत्कार है और जब भी कोई गुरु कहे की जा जप ध्यान कर अवश्य तेरे सभी कष्ट,रोग दोष,संकट कट समाप्त हो जायेंगे तब उससे बार वहीँ परेशानी और निदान का अनुरोध नही करते हुए तुरन्त ही श्रद्धा पूर्वक एक ही मंत्र का अखण्ड जप करना चाहिए यदि कोई मन्त्र भी नही आता हो तो केवल ह्रदय से उस ईश्वर या दैविक महात्मा जो इस विश्व में प्रत्यक्ष जप ध्यान समाधी में केवल सकारात्मक शक्ति प्राप्ति करते हुए संसार के कल्याण को सदा चैतन्य है वे तुरन्त इस जगत में कहीं भी हो अवश्य बिन काल दुरी के भेद के आपकी अवश्य और अवश्य साहयता करेंगे ये सब सत्य है यो ये नही कहते हुए बहाने भरते हुए की कष्ट है मन नही लगता आदि आदि सब बेकार के बहानों को तुरन्त त्यागकर केवल जप ध्यान पुरे ह्रदय से पुकारे करो और मनचाहा चमत्कार देखो।
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