मेरी एक पूर्वजन्म सिद्धि प्राप्त साधक से भेंट यात्रा और आगामी योजिज्ञासुओं को स्वप्राप्ति योगविषयक ज्ञान दान

 

हमारे गांव के पास के गांव अजयनगर जिसे हम भूह नाम से पुकारते थे उस गांव के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति जो हमारे पिता के चकबन्दी के किलाइंट थे और गांव नाते से चाचा लगते थे वे शहर अपने केस की तारीख को हमारे घर आये और बोले की हमारे घर तुम्हारी चाची के गांव के एक 15 साल का लड़का साथ आया है जो अपने पिछले जन्म के विषय में जानता है साथ ही वो लोगों को रात्रि समाधि में अपने सामने बैठकर उनके भुत भविष्य को बताता है यदि देखेंने मिलने की इच्छा हो तो साथ चले चलना उस समय मैं और मेरा छोटा भाई अंजय जो आज दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर है हम दोनों ने उस योगी लड़कर से मिलने के निश्चय के साथ उनके साथ दोपहर के बाद उनके गांव पहुँचे उसी दिन वहां चाचा की विवाहित लड़की को उसके लिवाने के लिए अलीगढ़ से उसके सुसरलिया के अनेक लोग आये थे हम भी जाकर बैठक में उन्हीं में परिचय के उपरांत बैठ गए वे लोग भी उस लड़के से मिलने को उत्सुक थे तब उस लड़के को ढूंढ कर बुलवाने को व्यक्ति भेजा उस लड़के का नाम उसी के अनुसार कृष्णा था वो अपने को कृष्ण का पुनरावतार बताता था तब कृष्णा वहाँ आया उसे हमने देखा वो पतला सा ठीक कद और मध्यम बढ़े बालों वाला गौरवर्ण का लम्बे चहरे का आकर्षक लड़का था उससे चाचा के किसी परिवार के व्यक्ति ने कहाँ कृष्ण जरा बताना की इनमें तुम्हारी बहिन के सुसरालियां और सुसर कौन है? वे सब सामने के बड़े पलंग और साइड में खाट पर बैठे थे और वो हमारे पीछे था वहाँ से वो उन्हें देखता बोला की ये साठ किलोमीटर से आये है वहाँ से अलीगढ़ लगभग साठ किलोमीटर ही पड़ता था और सबकी और अपनी ऊँगली को उठता सा बोला उन्हें गिनता सा एक व्यक्ति की और चुटकी बजाता बोला ये हैं सब आश्चर्यचकित हो गए की वे ही थे इन्होंने और कुछ बताने को कहा तब वो बोला रात्रि को जब मैं ध्यान में बैठूंगा तब पूछना और पुनः बच्चों के साथ बाहर खेलने चला गया सुसरालियां तो लड़की को लेकर अपने गांव चले गए और जब रात्रि हुयी तब हम सब एक बड़े से आहाते में आये तो वहाँ बहुत भीड़ थी लोग पूछने को चारों और खड़े थे तब कृष्णा आया उसने एक व्यक्ति को चुना की वो एक एक करके पूछने वाले को मेरे सामने बैठाता जाये और पूछने या मेरे मना करने पर उठा दे ये व्यवस्था कर उसने पूर्व की और मुख कर एक आसन पर बैठ ध्यान लगा एक समाधि अवस्था में चला गया और हुंकारा सा भर बोला हाँ बुलाओ और तब लोग आते पूछते वो आँखे बंद करे ही सीधा और संछिप्त उत्तर देता और मोन हो जाता व्यवस्थापक व्यक्ति उस प्रश्नकर्ता को उठने को कह अपने पास रखी पर्चियों में से एक निकल कर नए व्यक्ति को नाम से पुकारता और वहां आने को कहता ऐसे ही बहुत देर तक सब चला कुछ लोग सन्तुष्ट हुए कुछ मनचाहा उत्तर नहीं पा असंतुष्ट हुए तब उसी ने हमें बुलाने को उस व्यक्ति से कहा तब मैं और छोटा भाई एक साथ उसके सामने बैठे वो देखते ही कुछ चोंका सा और मध्यम आवाज में बोला की ये धर्म के क्षेत्र में झंडे गाढ़ेंगे और ये इनकी ध्वजा सम्भालेगा और मोन हो गया हमारे पास कोई ऐसा प्रश्न ही नही था यो हम ये उत्तर सुन वहाँ से उठ थोड़ी दूर बैठ गए तब वो अनेक लोगों के प्रश्न उत्तर उपरांत एक झटके से हिचकी सी लेकर अपने पीछे की और गिर गया उसे किसी ने हाथ नही लगाया ये उसका आदेश था तब थोड़ी देर में वो चैतन्य हुआ और पानी पीकर खड़ा हुआ और लोगो से उनके धार्मिक प्रश्नो के उत्तर पुराणों महाभारत आदि ग्रन्थों व् शास्त्रों से देने लगा और बताता की जो तुम बोल रहे हो वो उस ग्रन्थ में छेपक यानि बाद अपनी और से जोड़ा गया है सही ये है फिर सभा समाप्त की और हम सहित वो घर लोटा चाचा ने हमारी उसके साथ धार्मिक वार्ता के लिए उसके साथ सोने की व्यवस्था की थी और वो भी हमें देख सहमत था हम तीन ही जने थे तब रात्रि को वो बोला की व्यक्ति को तीन घण्टे ही सोना चाहिए वही सच्ची नींद होती है बाकि नींद तो मायाविक् स्वप्न की होती है जिससे व्यक्ति उन्हें देखता हुआ माया से घिरा व्यर्थ जीवन व्यतीत करता है और फिर कुण्डलिनी विषय पर वार्ता हुयी बोला की कुण्डलिनी दो प्रकार की होती है एक मूलाधार से जाग्रत होती है दूसरी नाभि से जाग्रत होती वक्री होती हुयी मस्तिष्क के पीछे से सहस्त्रार में प्रवेश करती है बाकि विशेष कोई गम्भीर बातें नही हुयी और ज्यादा रात्रि होने से हम तीनों जमीन पर ही बिछे बिस्तरें पर सो गए प्रातः देखा वो वहाँ नही था हम भी वहां से उठे चाचा ने चाय पिलवाई हम पहले उसी गांव से पास से अपने खेतों पर आये वहाँ हमारे दादा थे उनसे बात की गांव से आई चाय पी और वही शौच से निवर्त होकर हम पैदल गांव से बाहर मुख्य सड़क पर आये बस के इंतजार में खड़े नही होकर पैदल ही दो किलोमीटर ककोड़ आये और वहां भी बुलन्दशहर को बस नही पा दोनों ने विचार किया आज पैदल ही शहर तक जायेंगे और लगभग बाइस किलोमीटर कई घण्टे में अपने घर धर्म वार्ता करते हुए पहुँचे आगे चलकर कुछ वर्षों में मैं धीरे धीरे अपने धर्म साधनाओं को पूर्ण करता हुआ धर्म क्षेत्र में पहुँचा और भाई पढ़ाई पूरी करते हुए दिल्ली पुलिस में सर्विस कर रहा है और ध्यान,धर्म,कर्म करने के साथ साथ अनेक दिव्यदर्शन देखते हुए आज अपना परिवारिक जीवन व्यतीत कर रहा है बाद के कुछ ही वर्षों में पता चला की उस कृष्णा की वो दिव्य शक्ति समाप्त हो गयी और वो घण्टों जलते बल्ब को देखते हुए त्राटक करता पर उसमें पुनः कोई पूर्व सिद्ध प्रकट नहीं हुयी और बाद में वो कहीं चला गया कुछ पता नही चला जेसे की वो घोषणा करता था की वो कृष्ण का कलियुग अवतार है वो लोगो को पुनः प्राचीन धर्म मार्ग पर लाएगा आदि वेसा कुछ नही हुआ अब इस धटना से आपको ये ज्ञान मिलता है की सभी मनुष्यों को उसके पूर्व जन्मों के शुभ अशुभ कर्मों के परिणाम से ये नवीन वर्तमान जन्म की प्राप्ति होती है और उन्हें निम्न व् मध्यम और उच्च से उच्चतम परिवार या पृष्टभूमि मिलती हुयी दरिद्रता और धन एश्वर्य प्रसिद्धि आदि क्रमबद्ध या अचानक मिलती है योगी कहते है की सिद्धि तीन प्रकार से प्राप्त होती है स्वयं के वर्तमान कर्म से और दूसरा पूर्वजन्म कर्म से और तीसरा ओषधि से पूर्वजन्म व् वर्तमान जन्म का प्रारब्ध और फल एक ही बात है और दूसरा ओषधि से जो सिद्धि प्राप्त होती है उसे सामान्य भाषा में यो समझे की मानो आपके सिर में दर्द है अपने कोई दर्द निवारक गोली खायी और आप ठीक यो विभिन्न जड़ी बूटियों और पारद का विज्ञानवत उपयोग योग व् तन्त्र शास्त्रों में विभिन्न सिद्धि प्राप्ति करने का मंत्र के साथ उपाय बताया है का और यही किसी योगी ने आपके सिर पर अपना आशीर्वाद किया तब आपका कष्ट मिट गया या आपको इष्ट दर्शन सिद्धि लाभ हुआ ये सब भी पूवजन्मों के ही कर्म फलों से प्राप्त होता है वो चाहे ओषधि से सिद्धि प्राप्ति हो या योगी से सिद्धि प्राप्ति हो तब इसमें नया क्या है को सब हमारे ही पूर्वजन्मों के कर्मो के परिणामों से प्राप्त होता है तब इसमें गुरु कृपा का क्या अर्थ हुआ? तो उत्तर है की जो गुरु है जिसे शास्त्र लक्षणयुक्त योगी कहते है वो अपनी आत्म सम्पूर्णता की प्राप्ति पर अपने आत्मज्ञान के विस्तार को अनेक मुख्य लोगो को चुनता है और उसी क्रम में अनगिनत लोगो का उद्धार करता है ये प्रकर्ति में सतगुण का ही विस्तार करना है इसे ऐसे समझे की ईश्वर तीन साकार गुणों में यानि-स्त्री(+),पुरुष(-) और बीज(+,-) रूप में अनन्त विभाज्य होता हुआ भी अखण्ड और नित्य बना रहता है ये ही जेसे-स्त्री सतगुण है और पुरुष तम् गुण है और बीज रजगुण है क्योकि बीज के विलय और पुनः सृष्टि को ही क्रिया होती है यो बीज ही क्रिया शक्ति होने से शाश्वत स्थिर ईश्वर है क्योकि बीज से सब सृष्टि होती हुयी बीज में सब सृष्टि का लय होता है यो ज्यों ज्यों सब बीज में लय होता चलता है तब बीज की और सबके समाहित होने से बीज में सबके स्थित और स्थिर होने की अवस्था और इसके उपरांत इस बीज से पुनः सृष्टि होने व् समस्त सृष्टि के विस्तार तक जो एक क्रमबंद्ध प्रक्रियां है आप यहाँ ये जाने ये प्रक्रिया स्वयंभूत है कारण और कर्म और कर्मी का होना आत्म आनन्द है जेसे पुष्प और गन्ध दोनों एक ही है यही सबको ईश्वर का शाश्वतता गुण धर्म ज्ञान आनन्द आदि स्वभाव कहा गया है यो सर्वजीवों की अपने अपने स्वरूप में पूर्णता उपरांत एक क्रम से लय होते हुए एक महालयवस्था जिसे धर्म प्रलय कहता है उसमें सब समाहित हो जाते है इसे पुनः इसी उदाहरण से समझे की एक बीज से पौधा और पोधे से वृक्ष और व्रक्ष से अनंत फल और अनन्त फलों का अंत अनंत बीजों में लय होता है तब भी एक समय ये आता है की अनन्त बीज भी एक ही बीज में समाहित होकर एक बीज बन शेष बने रहते है और जब मूल बीज का पुनः स्व इच्छा और आनन्द के कारण विस्तार होता है तब ये ही अनन्त बीज विस्तृत होते हूए ये समस्त सूक्ष्म और स्थूल अनन्त सृष्टि बन जाती है ये अनन्त विभिन्न प्रजाति रूपी बीज का एक बीज कैसे है तो जाने की त्रिगुण-सत्+तम् और इन दोनों की क्रिया रज के समिश्रण से ही ये समस्त विभिन्न प्रजाति और बीज बने है जेसे मनुष्य व् जीव एक ही है स्त्री और पुरुष और उनमें काले,सांवले,गोरे,नाटे,पतले,मोटे आदि अनन्त स्वरूप में पँच इन्द्रिय लिए एक से ही है यो विभिन्नता में भी एकता ही है यही अखण्ड में खण्ड और खण्ड का एक होकर अखण्ड होना है इसे बार बार पढ़े समझे तब सहज समझ आएगा।यो ये दो सत् और तम् गुण अपनी विभिन्न क्रियाओं के विस्तार से अनन्त है और पुनः स्वयं में सिमटते हुए अंत में एक अवस्था प्रेम को प्राप्त होते है जेसे दो स्त्री और पुरुष अपने अनन्त एश्वर्य आदि की प्राप्ति से पूर्व भी और अंत में भी भोग अवस्था को ही प्राप्त होते है और तब परस्पर प्रेम आनन्द को लेते देते हुए अंत में अपनी उपस्थिति भूल कर केवल जो ले और दे रहे थे अर्थात प्रेम उसी को प्राप्त हो जाते हुए उसी में अपनी अपनी स्थिति अनुसार बने रहते है और पुनः उससे एक प्रेमवस्था से बाहर निकल अपने अपने स्त्री और पुरुष होने के लिंग का भेद पाते है यही है खण्ड से अखण्ड और पुनः खण्ड होने की क्रिया और दर्शन यो जो इस अवस्था को सम्पूर्णता से प्राप्त करता या करती है वो योगी है वो इसी अपने दो स्वरूपों की निम्न से उच्चतम तक स्थिति को अनेक बीजों से पुनः प्रकट और चैतन्य करता है जैसें एक बीज से पौधा वृक्ष फल बीज ठीक यही कर्म बनता है यही जीवित योगी करता है तब वो कोई किसी के पूर्व कर्म नही देखता बस चुनता जाता है और उनमें अपना शक्तिपात करता जाता है और उसी प्रेम आनन्द शक्तिपात के परिणाम स्वरूप अनेक स्त्री और पुरुष उसी के जेसे लोग आत्म जाग्रत होते जाते है यही यहाँ हुआ वो कृष्ण पूर्वजन्म के गुरु शक्तिपात से इस स्थिति को पहुँचा और उसी क्रम में इस जन्म में पूर्वजन्म की योग उन्नति जिसे सिद्धि या फल कहते है उसे खा और खिला कर शून्य हो गया अब फिर से घोर तप जप करेगा तब कहीं आगे बढ़ेगा ऐसे मेरे अनेक शिष्यों में किये शक्तिपात के परिणाम से उनकी उन्नति और अवनति या केवल पुनः वहीं की स्थिरता आदि उदाहरण आगामी लेख में पढ़ने को मिलेंगें।ये सब ज्ञान गुरु प्रदत्त ध्यान करने से अधिक सहज समझ आता है यो सदा गुरु आदेश को मानते रहने वाले को सब प्राप्त होता है और गुरु अवज्ञा से सर्वनाश होता है।
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