बिना सिद्ध पीठासन स्थापना के मंत्र सिद्धि नही होती है

साधना के क्षेत्र में चलते चलते एक दिन मुझे पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन हुए तब मैने एक ग्रन्थ मंगाया की इनका पाठ क्या है तब एक प्राचीन ग्रन्थ में यथार्थ पंचमुखी हनुमान जी का संस्कृत का पाठ प्राप्त हुआ उसे मैने पढ़ा तब एक दिन एक भक्त नितिन अग्रवाल जो बहुत अच्छे वेश्य् परिवार का इकलौता पुत्र था ग्रेजुएशन बीकॉम कर चूका था अपनी फेक्ट्री देखता था और विभिन्न तंत्र मंत्र साधना करता था जेसे की अधिकतर साधक केवल मंत्र जापक ही बने रहते और कुछ कल्पित चित्र स्वप्न में देख प्रसन्न होते रहते है की आज कुछ साधना के विषय में दिखा जबकि कुछ होता नही है यो मेरे दैनिक साधना सत्संग और पास बैठकर ध्यान करने पर उसे अनुभव हुआ और जब उसे यहाँ दिए साधना के तर्क ज्ञान से पता चला की स्वतंत्र साधना गद्दी आसन बनाये बिना कोई सफलता नही मिल सकती है और अन्य महापुरुषों की व्यक्तिगत जीवन परिचय में उनके साधना कार्यों को पढ़ कर समझ भी आया की उनके भक्ति भाव के पीछे कितनी गुप्त साधनाएं थी तब वो बोला मुझे भी ये पंचमुंडी साधना करनी है तब कहाँ से लाऊ ये समस्या हुयी क्योकि बंगाल आदि क्षेत्रों में और उतरप्रदेश क्षैत्र में साधना क्षेत्र इतना व्यापक नही है यहाँ केवल भगवान के जन्मस्थल और वो भी कैद और दर्शनार्थी मात्र है और देवियों के पीठ है जहाँ कोई साधना स्थल नही है यो कैसे हो तब मेरे पास अनेक प्रतिष्ठित हड्डियों के डॉक्टर आते थे तब उनसे बात की उनके पास जो मेडिकल कालेज समय लोगो को समझने के अधूरे कृतिम सिर थे तब एक मेरे आश्रम पर अघोरी बाबा आया उसने उसे मेरे कहने पर अपने पास से व्यवस्था कर दी तब मैने उसे शुद्ध किया और उसके लिए आसन तैयार किया वो बोला गुरु जी मुझे तो डर लगता है मैं बोला चल आज मैं देखता हूँ तब उस रात्रि मैने स्नान करके दिगम्बर बैठकर अपने बनाये उस आसन पर जलते दीपक को आगे रखकर वहीं बैठकर पंचमुखी हनुमान जी के स्त्रोत पाठ को ग्यारह बार धीरे धीरे स्पष्ट पढ़ता हुआ करता रहा..
ॐ अस्य श्री पंचमुख हनुमंत स्त्रोत मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि गायत्री छंद श्री हनुमान देवता राम बीजम् मम शक्ति चन्द्र कीलकम् ओंकार कवचाय ह्रौं अस्त्राय हुँ फट्.. जिसके एक पाठ करने में लगभग 5 मिनट तो लगते थे और तब ध्यान लगाकर बैठ गया मच्छर काट रहे थे पर ये साधना जगत है यो सब सहन करने पर ही साधना होती है तब देखा की मैं अपने गांव के अपने खेतों पर नहर की पटरी पर एक छोकर के पेड़ के पास एक मित्र के बड़े भाई बाबुद्दीन भाई के साथ खड़ा हूँ तब पास खेत में दृष्टि पड़ने पर देखा की एक वहां बड़ी सफेद कलाई से पुती हुयी सुंदर बड़ी कब्र है उसे देख मैं बोला अरे ये पहले तो यहाँ नही थी अब कहाँ से आ गयी बाबुद्दीन भाई बोले ये बहुत पहले यहाँ था अब निकल आई है और सिद्ध पीर की है इनको बुलाने का तरीका ये है की माचिस की तिल्ली जलायी और किसी के पहने पसीने के कपड़ों पर इससे ऐसे करो तो एक आक्रति बन जायेगी तब ये आ जाते है मेने तभी भाई के कपड़ो पर ही वैसा करके बना दिया तो वो एक मगरमच्छ की रेखांकित आक्रति बन गयी और सब द्रश्य बदल गया अब एक अलग स्थान सा है सम्भव कमरा सा है उसमे पहले एक सिंहासन लेकर दो सामान्य वस्त्र पहने व्यक्ति आये उन्होंने वो सिंहासन रख दिया तब एक गोल्डन स्वर्ण सिलाई से बना एक सिल्वर सूट पहने बिना सेहरा बंधे एक पैतालीस साल का सावला रंग का व्यक्ति दूल्हा सा बना प्रकट हुआ और आकर उस सिंहासन पर बैठ गया उसकी बाह में चोट के घाव पर टांके के चिन्ह थे और अपने सामने देखता हुआ मुझसे बोला हाँ बताओ क्यों बुलाया मुझे बहुत दूर सात सो कोस से आना पड़ता है क्या चाहिए तब मेने जिधर वो देख रहा था उधर देखते हुए की वहाँ एक नृत्यकी नाँच रही थी मैं बोला की मेरी देखने की शक्ति और बढ़े यो कुछ उपाय बताओ और मेने उन दोनों जो पास में खड़े थे देखते हुए पूछा ये कौन है तो वे बोले ये मुन्ना भाई है और जिन्न है तब उसने बोला की क्या पढ़ते हो मैं बोला हनुमान चालीस तो उसके पास खड़े दोनों व्यक्ति हंस कर बोले की अरे ये वो पढ़ता है.. जिसने लिखा है की भुत पिशाच निकट नही आवे महावीर जब नाम सुनावे.. अरे ये हमने कितनी बार पढ़ी है इससे कुछ नही होता और हंसने लगे तब ये सुन देख की खुद ये भुत प्रेत से व्यक्ति और ये जिन्न ये दोहा सुनकर ना डरे और ना कोई फर्क पड़ा तो इस हनुमान चालीसा का क्या प्रभाव है? तब वो जिन्न मुन्ना भाई बोला की इससे पढ़ने से कुछ नही होता बस मन का भय दूर होता है और वशीकरण पढ़ा करो वशीकरण..तब मैं सोचने लगा की वशीकरण का मंत्र कौन सा है ये ना पता चला ना बताया तब वो खुद बोला लाओ मैं ही इतनी शक्ति तुम्हारी बढ़ाये देता हूँ और उसने अपने अंगूठे से मेरे आज्ञाचक्र स्थान पर नाक की और से सिर की और को तिलक करते हुए जोर से दबाते हुए खींचा जिसकी टीस के अनुभव से मैं ध्यान से जाग्रत होता चला आया अब मैं उठ कर बैठा कुछ विचित्र सा भय सा लगा की मेरी पीठ के पीछे ऊर्जा का स्फुरण का आभास हो रहा है यो तब बिन पीछे को देखे मैने अपनी गंगाजली में से गंगा जल लेकर पिया और पीछे को छिड़का तब अपनी गद्दी पर आकर बैठ इस सब पर की हनुमान चालीसा के उस दोहे को जिसे हम ये सोचकर पढ़ते है की भुत प्रेत नही आएंगे ये भुत खुद ही पढ़ते कह रहे थे की अरे हमने कितना इसको पढ़ा है इससे कुछ नही होता तब अब क्या करूँ हनुमान चालीसा से विश्वास ही उठ गया तब क्या पढूँ उसका स्मरण आया की वो कह रहा था की वशीकरण पढ़ा करो तो वो कौन सा मंत्र या पाठ है मुझे पता नही है? तब फिर जब भी मैं अपनी गद्दी पर दिगम्बर होकर बैठता तब गर्मी थी तो उसकी ज्योत में मैं दूर से कुछ घरों के व्यक्ति ऊपर छत पर सोने लगने के कारण और भी कई कारणों से नही कर पाया और ना ही नितिन भक्त उसके बहुत दिनों तक झाँका
तब कुछ महीनों बाद मैने वो सब सामग्री हटाकर नहर में बहा दी तब एक दिन मुझे ध्यान में स्मरण हुआ की अरे वो वशीकरण तो स्वयं मैं पढ़ ही रहा था वो था पंचमुखी हनुमान जी का स्त्रोतपाठ अब क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत वो सामग्री कहाँ से लाऊ वो तो सब नहर में बहा दी थी।और बहुत वर्षो तक वो पंचमुखी स्त्रोतपाठ पढ़ता रहा यो बिन साधन के उससे कोई लाभ नही हुया यही है साधन सामग्री और सिद्ध गद्दी के ऊपर बैठकर साधना करने से ही सिद्धि होती है अन्यथा केवल आग आग कहने से आग नही लगती और भाँग भांग कहने से भांग नही चढ़ती है यी ही केवल मंत्र जपने से सिद्धि नही होती है।
तो भक्तो इस साधना घटना से ये ज्ञान सीख मिलती है कि यो ही प्रत्यक्ष गुरु के ज्ञान की साधना में प्रत्यक्ष आवश्यकता होती है वो तभी बताता की अरे ये तू पढ़ और कल्याण हो जाता। और यही घर में पूजाघर बनाने के पीछे सच्चा रहस्य है जो किसी को नही पता केवल मूर्तियां रखने से पूजाघर नही बनता और न ही वहाँ बैठकर पूजा करने से कुछ भय या सिद्धि मिलती है यो यदि सम्भव हो सके तो अपने गुरु से अपने पूजघरों में सिद्धासन बनवाने की और विचार करना चाहिए।

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