देवी मंदिर निर्माण और पुत्र प्राप्ति


ये सन् 90 के दशक की बात है मेरठ के बड़ौत के प्रतिष्ठित परिवार और प्रतिष्ठित एडवोकेट चौ.धीर सिंह और उनकी पत्नी प्रमिला सिंह विवाह के वर्षों बाद तक निसंतान रहे जो भी जो उपाय पूजापाठ बताता वो सब किये लेकिन सफलता नही मिली लेकिन भक्तों ये स्मरण रहे की कोई भी की गयी ईश्वरीय पूजापाठ कभी भी निर्थक नही जाती है वो आपके पूर्व जन्मों के बुरे कर्मों के फल को काटने के लिए एक सफल प्रयत्न अवश्य होता है जो आपके पूण्य बल की नींव बनती है उसी पर आपकी मनोकामना की इमारत खड़ी होती है अब कब हो ये धैर्य का विषय है यो फल की एक बार चिंता करते हुए अब केवल अपने कर्म किये जा जिससे पूण्य बल बढ़े और यही यहाँ इन भक्त के साथ हुआ ये हमारे पिता जी के बुआ के बेटे डॉ.बिजेंद्र सिंह ढिल्लन जो मेरठ की पूर्वत प्रतिष्ठित परिवार रहा है उन्होंने इन्हें यहां मेरे विषय में अपना लाभ अनुभव बताया और अपने साथ लेकर मेरे पास आये तब इनका भविष्य फल देखा की एक पुत्र है वो भी देवी कृपा से क्योकि इनके पूर्व जन्म में मन्दिर निर्माण का संकल्प था वो उस जन्म में पूरा नही हुआ यो ही सन्तान दोष लगा हुआ है यो वही उपाय बताया ये सुन ये दोनों भक्त बोले की मन्दिर अभी बनवाये या सन्तान होने के बाद मैं इनका संशय देख की सही भी है मानो मन्दिर भी बन गया और सन्तान नही हुयी तो मन्दिर के प्रति श्रद्धाभाव नही रहेगा वो एक बोझ बन जायेगा तब इसका समाधान किया की आप नो नई ईंटें एक लाल कपड़े में बांध कर अपने पूजाघर में नीचे रख दे और उनके ऊपर नो दिनों की देवी और गुरु के नाम की अखण्ड घी की ज्योति जला दे और सन्तान के लिए डाक्टरी प्रयास करें इन्होंने इस सब पर श्रद्धा युक्त होकर यहाँ से जाकर यही किया चूँकि पहले भी ये डॉक्टरी प्रयास कर चुके थे वो असफल रहा था अबकी बार पुनः मुम्बई जाकर इलाज कराया और मेरे बताये अनुसार देवी संकल्प कृपा से इनके सन्तान सुख बना अब इन्होंने मन्दिर निर्माण प्रारम्भ करा दिया भक्त प्रमिला को नित्य भयंकर स्वप्न दीखते की लोकी सब्जी कट रही है आदि आदि ये फोन कर पूछती की गुरु जी ये भयंकर स्वप्न का फल तो बुरा होता है पर मैं इन्हें निर्भय करता की कोई चिंता मत करो अब गुरु शक्ति और दैविक कृपा है कुछ नही होगा तुम जप ध्यान करती रहो और समयानुसार इनके 21 अप्रैल को पुत्र हुआ जिसका नामकरण “अक्षत” रखा गया और इस अच्छे बड़े भव्य मन्दिर में अनेक दिव्य प्रतिमाएं मुख्य भवन दुर्गा माँ का और नो देवियों की परिक्रमा भवन तथा हनुमान जी का भवन बना और मुख्य द्धारा स्तम्भ पर एक पत्थर पर राजयोगी स्वामी सत्येंद्र जी सत्य ॐ महाराज और शिव दुर्गा देवी की कृपा से इन दोनों भक्तों का नाम और उस समय के पूर्व प्रधानमन्त्री श्री चन्द्रशेखर जी द्धारा शविवर 23 अक्टूबर 1999 उद्घाटन किया गया आदि लिखा और लगभग दस हजार व्यक्तियों का भोज कराया गया और मन्दिर में पुजारी को रहने की स्वतंत्र स्थान है और उसे सेवा के लिए इनकी और से नियमित वेतन मिलता है उस समय मुझे इन्होंने सादर बुलाया और मैं अपने शिष्य राजीव और मनजीत के साथ वहाँ प्रथम पूजन करके चला आया था तद्धउप्रान्त कार्यक्रम हुआ था क्योकि यहाँ भी गद्दी और भक्त आते थे और मंदिर की व्रतकथा माता सर्वमंग्ला दुर्गा(मेरठ) प्रकाशित करायी और चालीसा आरती का कलेंडर भी वितरित किया था तब इसी मनोर्थपूर्ण मंदिर में आस्था पूर्वक दीप जला पूजा करने से अनेक निसंतान दम्पत्ति के संतान और मनोरथ पूर्ण हुए जिनमें उस समय के मन्दिर के सामने के घर में किराये पर रहने वाले तिवारी जी जो वन विभाग में उच्चाधिकारी थे उनकी पत्नी ने इस मन्दिर की मान्यता और पूजा की तो उन्हें भी पुत्र रत्न की प्राप्ति शीघ्र हुयी।और यहीं से उस समय मन्दिर के सामने ही मेरठ जेल के दी.आई.जी. का कार्यालय है वहाँ के डी.आई.जी. जेल जो बाद में आई.जी. जेल बनकर लखनऊ से सेवानिवर्त हुए थे ये भक्त मुन्नालाल प्रकाश जी और उनका परिवार पत्नी,दो बेटे व् एक पुत्री भी यहाँ से गुरु मंत्र लेकर वर्तमान तक भक्त बने है और यो तब से सब वर्तमान समय तक इन तीनों चौ.धीर सिंह पत्नी प्रमिला और अक्षत भक्तों पर गुरु और ईश्वर की असीम कृपा है जिसके फलस्वरुप ये कई बार मेरठ बार एसोशियेशन के प्रसिडेंट बने कई बार स्वेच्छा से चुनाव नही लड़े और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अलग से बेंच बने इसके भी अध्यक्ष रहे और एमबीए स्कुल के संस्थापक व् सहयोगी भी है सदा नववर्ष के अखण्ड यज्ञ और भी समयानुसार आश्रम के कार्यक्रमों में आते व् आश्रम की पुस्तकों के प्रकाशन आदि में अपना यथासम्भव सहयोग देते है।इस कथा ये ज्ञान होता है की जो भी पूर्वजन्म की बोली मनोकामना है उसको चाहे जन्मकुंडली से या सिद्ध गुरु से पूछ कर उपाय करने से समयानुसार अवश्य इच्छित फल की प्राप्ति होती है और उसके उपरांत भी गुरु और उनके कार्यों से जो जुड़ा रहता हुआ गुरु प्रदत्त मंत्र जप दान करता रहता है वह अवश्य भविष्य में भी सुखी रहता है।
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