अमावस्या उपरांत नवरात्रि का प्रारम्भ रहस्य

इस जगत में स्त्री और पुरुष दो जीवंत तत्व ऋण और धन के रूप में प्रत्यक्ष है और तीसरा बीज जो (-,+) के रूप में सदैव बना रहता है यो प्रकर्ति में पुरुष पक्ष का प्रतीक है अमावस्या ऋण इससे बीजदान लेकर प्रकर्ति स्वरूपा स्त्रितत्व अपने प्रारम्भिक नो दोनों में उस बीज को अपने गर्भ में पोषित करती हुयी प्रसव करते नवे दिन में प्रकट करती है और उससे दोनों मिलकर पूर्णिमा के दिन सोलह संस्कारो से विशुद्ध करते हुए नामकरण करते है यो इस पूर्णिमाँ के दिन जीव अपने प्रारम्भिक पूर्णता को पाता है और स्त्री मातृत्व भाव को और पुरुष पितृत्त्व भाव को पूर्ण होता है यो वर्ष को एक एकल ब्रह्म की उपाधि दी गयी है ये एक वर्ष को आप मूल बीज भी कह सकते है जिससे ये दोनों स्त्री और पुरुष अपने अपने स्वरूप की सोलह सोलह कलाओं को लेकर अमावस्या और पूर्णिमा के रूप में प्रकट और प्रत्यक्ष होते है यो बारह अमावस और बारह पूर्णिमा है यही जन्मकुंडली में भी है बारह भाव जिनमे ऋण और धन के रूप में स्त्री और पुरुष और बीज के नामार्थ ग्रह आप देखते है जिनमे सूर्य गुरु मंगल पुरुष है और चन्द्र शुक्र स्त्री है और बुद्ध और शनि ग्रह नपुंसक यानि बीज ग्रह है और राहु पूर्वजन्म का शाप और वरदान व् केतु वर्तमान जन्म का शाप और वरदान है जिससे भविष्य जन्म मिलता है यो आप देखोगे की तीन पुरुष ग्रह है और दो स्त्री ग्रह है और दो बीज ग्रह है और दो छाया ग्रह है यो ये छाया ग्रह ही इस ग्रहों पर छाया बनकर ग्रहण डालते है ये छाया वास्तव में स्त्री और पुरुष तत्वों का एक दूसरे की और आकर्षण और विकर्षण होने की प्रक्रिया के होने का नाम है यही कभी अमावस से पूर्णिमा और पूर्णिमा से अमावस तक की जो परिवर्तनशील प्रक्रिया है यही राहु केतु है।इन्हें राग और वैरागय भी कहते है इनके बिना कुछ सम्भव नही है तभी ये ही मनुष्य में सभी भावनाओं के परिवर्तन का प्रतीक है यो परिवर्तन को कभी बुरा नही मानो इनके बिना क्या है यही तो आनन्द है यो प्राचीन काल में भी
यो अमावस के ब्रह्ममहूर्त काल में ही प्रकृति पुरुष का प्रकर्ति स्त्री से योग करता हुआ बीज दान करता है और ब्रह्ममहूर्त में प्रकर्ति उससे पृथक होती है यो ये ही ब्रह्ममहूर्त काल प्राचीन के वेदवेत्ताओं ऋषियों ने अपने समाधिकाल में अनुभव करते हुए चतुर्थ नवरात्रियों के लिए चुना और ठीक इसी समय स्त्री शक्ति की आराधना को प्रकट किया और उसके श्री भगपीठ की स्थापना की जो वर्तमान में केवल एक बहिर अपूर्णता लिए शेष पूज्य है यो ही सत्यास्मि मिशन का उद्धेश्य समस्त विश्व में श्रीभगपीठों को स्थापना का धर्म आंदोलन सुचारू रूप से चल रहा है आप भी उससे जुड़े और सत्य ज्ञान को धारण कर अपने जीवन में सम्पूर्णता पाये एक जल का लोटा उस पर एक नारियल उसके त्रिनेत्रों में एक को मुख चुन कर उस पर भोग लगाना जयों को बोना आदि ये सब केवल इस विज्ञानतत्व का ऊपरी स्तर मात्र है ये नारियल में त्रिनेत्र वास्तव में स्त्री और पुरुष और बीज का त्रिगुण चिन्ह है जिसमे सामान्य साधक को पता ही नही है की कौन सा स्त्री और कौन सा पुरुष और कौन सा बीज का चिन्ह है इसे गुरु ज्ञान से ही पहचान जाता है की फिर भी जो दो बिंदु निकट हो वे स्त्री और पुरुष है ओर जो दूर हो वो बीज है उसी बीज को चैतन्य करने के लिए उसी में भोग लगाते है इतने तो विशेष फल नही मिलता है यही तो तन्त्र विज्ञानं है जो जानना आवशयक है यो अपने गुरुओं से जानो।यो इसी का एक त्यौहार कामाख्या में अम्बुवाची के रूप में मनाया जाता है जो की प्राचीन काल में इस स्थान पर पृथ्वी की रजस्वला का मुख्य बिंदु था और ये वर्तमान में स्त्री शक्ति के श्रीभगपीठ का अलप स्वरूप है यो यहाँ स्त्री तत्व की अधिकता है और यहाँ काम देव को भस्म करना और रति का उसे जीवित करना और रति का रजस्वला होने की जो ऊपरी स्तर की कथा है उसके पीछे जो छिपा ये रहस्य है की हमारे आर्यवृत भारत में ऐसे अनेक श्रीभगपीठ और उनकी नवरात्रि में पूजा और साधना थी की इस दिन से नो दिनों तक जो भी मनुष्य स्त्री और पुरुष है उसे ध्यान जप करना चाहिए ताकि इस समय की जो प्राकृतिक जीवन की सृष्टि ऊर्जा है उसे अपने में समाहित करे और उसके प्रताप से प्रत्येक मनुष्य चाहे वो विवाहित हो या ब्रह्मचारी हो वो स्त्री और पुरुष और विशेषकर गर्भवती स्त्री को अपने शरीर में जो ईश्वरीय बीज-वीर्य और रज है उसमे एक दिव्य शक्ति का संचार हो जिसे प्राप्त करते हुए वो अपनी भविष्य की सन्तान या वर्तमान की सन्तान या ब्रह्मचर्य बल में अत्यंत जीवन्त दिव्यता की व्रद्धि कर पाये यो इसी काल में अमावस्या की समाप्ति के उपरांत ही तुरन्त ब्रह्ममहूर्त में जो की प्रातः तीन बजे से पाँच बजे के मध्य ही होता है उसी में श्रीभग पीठ की स्थापना और अखण्ड ज्योत जलानी चाहिए ये जो वर्तमान में ज्योतिष महूर्त है वे इसी विफयन पर बने है परन्तु उनमे जो छूट दी जाती है वो पूर्णतया निषेध है और होनी चाहिए केवल और केवल ब्रह्म महूर्त में ही बिना नागा किये श्रीभगपीठ की स्थापना करें और जो श्रीभगपीठ के रहस्य को नही जानते है वे इस अतिशुभ महूर्त में अपने अपने गुरु मन्त्रों का जप करते हुए अपने अपने मूलाधार में ध्यान केंद्रित करें और प्रतिदिन कुछ न कुछ भोजन बनाकर गरीबो में दान सहित देकर आये।
तब चमत्कार देखे की कितनी आत्म जागर्ति होती है।यहाँ स्थानाभाव के कारण सभी विषय संछिप्त में कहा गया है फिर भी आपके चिंतन को पर्याप्त है इस विषय पर चिंतन करे और अभी ही इस विधि को अपनाये।।
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