☘हरियाली तीज सत्यार्थ


श्रावण मास में खिल जाती है
प्रकर्ति हरित रूप पुष्प हर पात।
स्वच्छ नभ् मंडल अलौकिक होता
इंद्रधनुष सप्त रंगी मुस्काता स्व द्रष्टात।।
रच जाती स्वयं नवरंगों
और इठलाती मद्य मोहनी चमन।
धरा चमकती पड़ सूर्य प्रभा
चल रूकती ले मद गंघ पवन।।
यौवन नारित्त्व बन भाषित होता
हर नवयौवना नार।
नर में भी प्रस्फुटित होता
प्राकृतिक कामनाएं ले उपहार।।
यही अभिव्यक्ति होती
मैं और तू है एक दूजे पूर्ण।
मिलन का अभिसार गीत गाता
चन्द्र रश्मि धरा बहाता परिपूर्ण।।
झरने नदी चर्मोउत्कृष् पे होते
चंचलता तोड़ती नव मोड़ती तट।
समुन्द्र उन्हें आमन्त्रण देता
आ मिल जा मुझमें खोल ह्रदय के पट।।
बिजली गिरती बादल फटते
घोर गर्जन है ऋतु प्रसन्नता।
प्रलय संग नव सृजन होता
अद्धभुत नाँद श्रवण अभिनवता।।
मोर नाचते काम पंखों संग
कूह पीहू टर चिन जग ध्वनि।
धुल जाते प्रकर्ति माँ हाथों
स्नान कर पग से ले कर कँगनी।।
नवयौवन प्रतीक हरित है
उससे बढ़ता रंग महत्त्व।
इसी रचना को हाथ अंग रचाती
नवयौवना बना प्रेम प्रतीक महत्त्व।।
जो अंदर है वही है बाहर
प्रेम कामनाये महंदी रंग खिलती।
अंग प्रत्यंग महाभाव को करता
प्रकट महंदी रच आनंद को मिलती।।
अर्थ मिल काम संग धर्म है
यही तीन तीज है अर्थ।
मोक्ष प्रकर्ति विषय नही है
जीवन जीवंत प्रेम हरित है अर्थ।।
यो हरियाली तीज है कहते
यो मनाते इसे मध्य हर वर्ष।
यही जानना ज्ञान व्रत है
जो जाने पाये जीवन प्रेम नवहर्ष।।
हरियाली तीज व्रतार्थ:-
तीन झूट ताज्य् करें
पति पत्नी छल कपट।
दूजे की निंदा नही
और दूजे धन झपट।।
ईश्वर इस जगत में
बटा है तीन तत्व।
पुरुष स्त्री और बीज
यही तीज अर्थ ज्ञान गत्व।।
ईश्वर तीन स्वरूप में
इच्छा क्रिया ज्ञान।
हरी ईश्वर याली संसार है
यही हरियाली तीज अर्थ मान।।
तीन काल तीन गुण
तीन देव तीन देवी।
ईश्वर जीव माया तीन
गुरु शिष्य विद्या तीन खेवी।।
जो इन तीन ज्ञान जानता
और सदा करता इन्हें पालन।
मनवांछित वरदान मिले
हरियाली तीज व्रत सिद्ध फल पालन।।
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