सिंहासन की सही विधि व इसमें कैसे उपयोग होते है,मूलबंध ओर उड्डीयानबन्ध व जलंधरबन्ध ओर कैसे शक्ति होती जाग्रत जाने,,
बता रहें हैं,महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी,,
सिंहासन(Simhasana-Lion Pose) का सीधा सा अर्थ है,शेर के समान मुद्रा बनाना। जैसे जंगल मे सभी जीवों का राजा सिंह होता है,ठीक ऐसे ही आसनों में भी सिंहासन का विशेष महत्त्व है,यह आसन अनेक रोगों में विषेकर गले के रोगों में लाभकारी है। योगियों ने इस आसन में तीन बंधों को लगाने से केवल कुम्भक ओर योनिमुद्रा की सिद्धि सहज हो जाती,ये ज्ञान बताया है। यह ब्रह्मचर्य की प्राप्ति में बड़ा सहायक है। इस आसन में सिंह के समान गर्जना करना पड़ता है, इसलिए इस आसन को एकांत व शांत स्थान पर करना चाहिए।चूंकि घर या पार्क में ऐसे गर्जन नहीं किये जा सकते है,तो साधक को केवल कुम्भक पर ध्यान देना चाहिए।इसमें प्राणायाम के अंतर्गत वही मुख्य साधना है।
सिंहासन को मुख्यतौर पर 3 प्रकार से कर सकते हैं।ओर अनेक साधक इसे एक दो तरीके से करते है,पर मुख्य यही तीन तरीके। है,,
सिंहासन की पहली विधि:-
1-सिंहासन (Singhasana
- Lion Pose) में पहले अपने स्वर को जांच लें।
2-इसके लिए पहले दोनों पैरों को परस्पर जरा सा अंतर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएं।
3-फिर पंजों पर घुटनों के बल बैठ जाएं।
4-इस स्थिति में दोनों एड़ियों को ऊपर उठाते हुए इस प्रकार बैठें कि गुदा के पास स्थित प्रमेह यानी सीवनी नाड़ी पर पांव की एड़ियां लग जाएं।सिंहासन की इस मुद्रा में शरीर का सम्पूर्ण भार पंजों के ऊपर स्थित होगा।
5-इसके बाद ठोड़ी को कंठ से लगाएं और मुंह को खोलकर जीभ को जितना निकाल सकते हैं,उतना बाहर को अपने अंतर प्रयास से खींचते हुए निकालें। अब दोनों आंखों से शाम्भवी मुद्रा में या सामने की ओर एक ज्योति की कल्पना करते देखते हुए ध्यान लगाते हुए देखें या सपने दोनों नेत्रों को आज्ञाचक्र की ओर स्थिर करके वहां ज्योति की कल्पना कर जप करते ध्यान करें और हाथों को अपने दोनों घुटनों पर रखें। इसके बाद सांस लें और मूलबंध लगाएं साथ ही सांस को अंदर की ओर खींचते हुए उड्डीयानबन्ध बंध हल्का सा स्वयं लग जाता है,इसी अवस्था मे अपने गुरु मंत्र को 5 या 10 बार जपते हुए गले से हल्के से घर्षण यानी घरघराहट के रूप में सांस को बाहर को छोड़ें।
केवल एक बार ही ये सिंहासन को करे बस करते हुए इसमे अधिक से अधिक देर तक ठहरने ओर सांस की कुम्भक में रोकने का सहज अभ्यास करें।

सिंहासन की दूसरी विधि:-
1-इस सिंहासन मुद्रा (Singhasana- Lion Pose) के लिए अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर घुटनों को आगे की ओर यानी सामने की ओर करके बैठना है।
2-इसके बाद अपनी दोनों एड़ियों पर बैठते हुए आगे की ओर झुकें और दोनों हाथों को दोनों घुटनों के बीच लाये ओर वहां अपनी हथेलियो को जमीन पर रखते हुए अपनी दोनों हाथों की उंगलियों को अंदर की ओर करके रखें।
3-अब शरीर का लगभग भार दोनों हाथों पर डाले पर दोनों हाथों को लगभग सीधा रखें।
4-इसके बाद सिर को थोड़ा सा ऊपर की करते हुए अपनी जीभ को मुंह से जितना सम्भव हो उतना बाहर की ओर निकालें।
5-इसके बाद अपनी आंखों को दोनों भौहों के बीच आज्ञाचक्र की ओर एकाग्र करें, या चाहे तो सपने आंखों के सामने की ओर स्थिर रखे,चाहे सिर ऊपर की हो या सामने की ओर हो और एक गहरा सांस लेकर केवल कुम्भक करते हुए मूलबंध लगाकर उड्डीयानबन्ध लगाते हुए,इसी अवस्था मे 5 या 10 बार गुरु मंत्र या इष्ट मन्त्र जपते रहें,फिर जैसे ही कुछ सांस टूटने लगे, तब सांस को धीरे से छोड़ते हुए अपने गले से घरघराहट की ध्वनि निकालें।

सिंहासन की तीसरी विधि:-
1-सिंहासन (Singhasana- Lion Pose)की इस योग क्रिया में दोनों पैरों को पीछे की ओर मोड़कर,पंजों को नीचे टिकाते हुए एड़ियों पर बैठे जाएं और घुटनों को सामने की ओर जमीन से टिकाकर रखें।
2-अब आसन की इस स्थिति में दोनों एड़ी व पंजों को मिलाकर रखें ओर अपने दोनों घुटनों को जितना सम्भव हो बाहर की ओर को अलग करके रखें।
3-अब दोनों हाथों को,अपनी बाहर की ओर की दशा में फैली अपनी दोनों जांघों के घुटनो पर रखकर अपनी दोनों एड़ियों पर बैठते हुए बेलेंस बनाएं और एक गहरा सांस खींचते हुए मूलबंध ओर उड्डीयानबन्ध लगाते हुए अपनी जीभ को मुख से अधिक से अधिक से बाहर को निकाले ओर अपने अंदर केवल कुम्भक करते हुए 5 या 10 बार गुरु या इष्ट मन्त्र जपते हुए रुके रहें।ओर जबतक रुका जाये रुके फिर अपनी सांस की धीरे धीरे छोड़ते हुए जीभ को अंदर ले ले और विश्राम करें।केवल एक बार ही अधिक से अधिक देर तक रुकने का केवल कुम्भक ओर त्रिबंधो के साथ अभ्यास बढ़ाया करें।इसे बार बार नहीं करें
इस विधि मे भी अपनी दोनों आंखों को आज्ञाचक्र की ओर स्थिर रखना है या शाम्भवी मुद्रा में सामने की ओर ध्यान करना है।

इस आसन को बच्चे से लेकर स्त्री-पुरुष ओर वर्द्ध तक सभी अवस्था के लोग कर सकते हैं।
सिंहासन में ध्यान कहाँ करें:-
खुली आँखों से अपने सामने की ओर या आज्ञाचक्र पर दृष्टि एकाग्र करते ध्यान करना चाहिए।
सिंहासन से रोग में 12 स्वास्थप्रद लाभ:-
1-यह आसन आपकी रीढ़ यानी मेरूदंड को मजबूत व स्वस्थ बनाता है तथा देखने व सूंघने ओर स्वाद लेने की शक्ति को बढ़ाता है।
2-यह शब्दो के अंतर उच्चारण की त्रुटि को ओर हकलाहट को दूर करता है।
3-इस आसन से गले के इंफेक्शन व टांसिल आदि रोग ठीक होते हैं।
4-घबराने वाले व्यक्ति के यह आसन करने से उसकी घबराहट ओर भय दूर होता है।
5-इसके अभ्यास से चेहरे व आंखों के आस-पास पड़ी झाइयाँ व झुर्रियां ओर त्वचा का ढीलापन खत्म होता हैं।
6-इससे थाइराइड ग्रंथि में लाभ मिलता है तथा जनेन्द्रिय संबन्धित सभी रोग दूर होते हैं।
7-आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, गुर्दे, जिगर व तिल्ली स्वस्थ होकर अपना कार्य ठीक तरह से करने लगते हैं।
8-इससे आंख, नाक, कान, जीभ आदि मजबूत होते हैं तथा जीभ, तालु और दांत व जबड़े ताकतवर होते हैं।
9-यह आसन पीछे की गर्दन और अंदर बाहर से गले की जकड़न,तालु ओर ऊपर का तालु के खिंचाव तनाव को ठीक करता है ओर आवाज की खराबी को दूर करता है।
10-इस आसन से आंखों की रोशनी तो बढ़ती ही है साथ ही आंखों का भेंगापन ठीक होता है।
11- इस आसन से मूलबन्ध, उड़ीयान बंध और जालन्धर बंध कसकर लगाने से अपानवायु ओर प्राणवायु का नाभिचक्र में एक साथ संगम होकर वहां की 72 हजार नाड़ियों में प्राण शक्ति का ऊर्ध्व प्रवेश ओर गति होकर कुंडलिनी जाग्रति होती ओर ह्रदय में शक्ति प्रवेश से आध्यात्मिक दर्शनों का विकास होता हैं।
12-स्त्रियों के गर्भशाय सबंधित ओर योनि के ढीलेपन की समस्या सम्बन्धित सभी परेशानियां खत्म होती है।
13-पुरुषों में सभी गुप्तांग के रोग नष्ट होते है,वीर्य व्रद्धि होकर ब्रह्मचर्य रक्षा के साथ,लिंग की कमजोरी खत्म होती है।
14-जिन गृहस्थियों में परस्पर काम भाव मे उदासीनता के साथ अरुचि होने लगती है,उन्हें शीघ्र ही आनन्द के साथ संयम के साथ रुचि होकर सम्पूर्ण आनन्द लाभ मिलता है।
15-पथरी की परेशानी में बड़ा लाभ होता है।
सावधानी:-
इस आसन को पेट और ह्रदय के ऑपरेशन करने वालो को स्वस्थ होने तक नहीं करना चाहिए।
!!करें नित्य सिंहासन!!
!!स्वस्थ बन करें रोगों का नाशन!!
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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