साल का सबसे बड़े दिन पर ही पड़ेगा सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण का प्रारम्भ होगा आषाढ़ अमावस्या से ओर बढ़ेगा बड़ा खतरा,,
तो जाने क्या करें,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी से।
खगोल शास्त्र व ज्योतिषीय गणित से इस साल 2020 का 21 जून को लगने वाला सूर्य ग्रहण साल 2020 का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण होगा। जानने की बात ये है कि 21 जून को साल का सबसे बड़ा दिन भी माना जाता है और इसी दिन पड़ने वाला सूर्य ग्रहण वर्ष का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण होगा, इसलिए साधक लोगो के लिए ये दिन बहुत बड़ी साधना का सिद्ध होता है ओर वैसे भी गुप्त नवरात्रियाँ प्रारम्भ होगी तो,ओर भी विशेष बन जाता है। विज्ञान के विद्यार्थियों व जिज्ञासुओं के लिए यह ऐसा मौका होगा, जब सब इस ग्रहण को ज्ञानवर्द्धि को देखना चाहेंगे लेकिन करते हैं की नंगी आंखों से सूर्य ग्रहण बिल्कुल ना देखें। ऐसा करना आपकी आंखों की रोशनी के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
साथ ही जाने की 21 जून साल का बड़ा दिन होता है और अमावस्या पड़ रही है,सूर्य ग्रहण पड़ रहा है।आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का प्रारम्भ है,30 जून तक।
तो इस दिन से क्या साधना आदि नियम करें,,
21 जून का सूर्य ग्रहण सूर्य के ही दिन अर्थात् रविवार को घटित होगा जिस कारण से इसका नाम चूड़ामणि सूर्य ग्रहण कहलाएगा और यही वजह है कि इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सूर्य ग्रहण हमारे देश भारत में भी दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक भी मान्य होगा और ग्रहण संबंधित सभी नियमों का पालन करना हितकर रहेगा।
आषाढ़ मास की अमावस्या को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि और मृगशिरा नक्षत्र में आकार लेगा, इसलिए इस राशि और इस नक्षत्र में जन्मे लोगों के लिए विशेष रूप से इस सूर्य ग्रहण का प्रभाव होगा। यह एक वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा, जिसमें सूर्य के लगभग 99 फ़ीसदी भाग को चंद्रमा की छाया ढक लेगी। यह एक चमकीले छल्ले के रूप में दिखाई देगा।
अमावस्या के चलते ही सूर्य ग्रहण भी प्रारम्भ होगा यो बड़ा पितृदोष की युक्ति ओर मुक्ति का दिन बनेगा,यानी जिन पर पितृदोष है, उन्हें इस पितृदोष का प्रकोप ओर अधिक रूप से बढ़कर प्राप्त होगा।
ओर जो पितृदोष से मुक्त है या मुक्ति की इच्छा रखते है,उन्हें तुरन्त इस दिन विशेष पूजा,जप ध्यान क्रियायोग का खूब अभ्यास करना चाहिए।
आषाढ़ अमावस्या मुहूर्त और समय
जून 20, 2020 को 11:53:51 से अमावस्या आरम्भ होगा,जून 21, 2020 को 12:12:45 पर अमावस्या समाप्त होगा।
ओर साथ ही आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि का प्रारम्भ होगा।
जिनका अपना ही महान महत्त्व होता है,जिसे आज का समाज बहुत ही कम जानता ओर मानता है और भ्रमित रहते है कि,ये गुप्त नवरात्रियाँ तो तांत्रिक लोग मानते है,जबकि हमारे ऋषियों ने पूरे वर्ष को चार वेदों की कर्म धर्म साधना को चार भाग में बांटा हुआ है,
अर्थ काम धर्म ओर मोक्ष यानी 1-ब्रह्मचर्य साधना-2-गृहस्थी साधना-3-वानप्रस्थी साधना-4-सन्यास साधना।
ओर इन्ही चारो साधनाओं को ये चार नवरात्रियाँ है-चैत्र नवरात्रि-2-आषाढ़ नवरात्रि-3-क्वार नवरात्रि ओर-4-माघ नवरात्रि।
जिनमें दो चैत्र ओर क्वार नवरात्रि भौतिक मनोकामनाओं की सिद्धि को है और दो आषाढ़ ओर माघ नवरात्रि प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक शक्तियों की जागृति को है,चुकीं भौतिक शक्तियों को प्रत्यक्ष नवरात्रि कहते है और आध्यात्मिक नवरात्रि को गुप्त शक्तियों के जाग्रति का नाम दिया गया है या कहते है।
यो ये गुप्त नवरात्रियाँ प्रत्येक मनुष्य को काम यानी गृहस्थी और मोक्ष यानी सन्यास की शुद्धि ओर सिद्धि देने वाली है।
यो सभी भक्त 20 जून की रात्रि को ही अपने पूजाघर में अखण्ड ज्योत जला दें,ताकि ग्रहण के प्रभाव से भी सुरक्षा रहेगी,ओर जो गर्भवती स्त्रियां है,उन्हें भी सुरक्षा मिलेगी।
वैसे अधिकतर ग्रहण सूतक में पूजाघर में ज्योत जलाने को मना किया जाता है,जो कि अज्ञान का कार्य है।क्योकि ग्रहण में विश्व ब्रह्मांड में अग्नि की मूल स्रोत शक्ति सूर्य है,जब सूर्य स्वयं या फिर चन्द्र द्धारा पृथ्वी पर अपना प्रकाशित करता यानी फेंकता तेज है,वो क्षीण ओर दूषित हो जाता है,यो अखण्ड ज्योत ओर यज्ञ अग्नि द्धारा उस सूर्य तेज को अपने अपने घरों में जाग्रत रखना पड़ता है,यो अवश्य ही अपने पूजाघर में सूर्य के तेज स्वरूप मनुष्य को आत्मशक्ति देती ऊर्जा शक्ति के जीवंत रूप घी या तेल की ज्योत को जलाये।समझे।
ओर सूर्य ग्रहण के प्रभाव से जो पृथ्वी पर सूर्य की रुकती हुई ऊर्जा की किरणों से विकिरण फैलता है,उसके द्धारा जो बीमारियां या नवीन जीवाणु ओर नवीन कीटाणुओं का जन्म या पुनर्जागरण या पुर्नर्जीवन्तता उत्पन्न होती है,उसकी दूषित प्रभाव को रोकने के लिए दिव्य ओषधि से बनी सामग्रियो से यज्ञनुष्ठान व हवन में आहुति देकर या अंगारी जलाकर सामग्री खे कर,धुंवा किया जाता है।उससे मनुष्य के सांस लेने के माध्यम से ये दिव्य सामग्री युक्त धुंआ फेफड़ों से होता रक्त में प्रवाहित होकर मनुष्य को इस ग्रहण से होने वाले रोगों से सुरक्षित रखता है।
यो ग्रहणों पर यज्ञनुष्ठानो का आयोजन किया जाता है।यो आप भी जप तप के साथ जितना अधिक बने यज्ञ किया करें।
अब गुप्त नवरात्रि में अपने मनोरथ के संकल्प के साथ अपने अपने गुरु मंत्र का अत्यधिक जप करें और रेहि क्रियायोग का सुबह-दोपहर-शाम-रात्रि चार समय अभ्यास करें।ओर सदा भोजन करते हुए कम खाएं,ताकि आपको आलस्य कम आये और साधना अधिक हो व शरीर मे जो तम गुण व सत गुण का रजगुण यानी क्रिया होने से संतुलन बन कुंडलिनी जाग्रत हो सके।
यो उन गुप्त नवरात्रि को आप सभी अवश्य मनाये।
कोई अनुभव हो तो हमें बताये,उस ज्ञान प्रश्न का यथासम्भव उत्तर दिया जाएगा।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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