!!सत्यास्मि सत्संग ज्ञान!!
बिन सेवा आशीष फल
कभी फले न भक्त के शीश।
तीनों के वचन असत्य हो
न गुरु न शिष्य न ईश।।
चाहे सही मौसम ओर बीज हो
ओर भूमि हो उपजायी।
पर सतह पर गिरा बीज भी
गुड़ाई सेवा बिन नहीं फलदायी।।
अर्थ:-
हे शिष्य,, जो भक्त या शिष्य गुरु अथवा अपने इष्ट भगवान देव देवी की बिना सेवा करे,केवल उनसे अपने लिए आशीर्वाद प्राप्ति की इच्छा करता है,ऐसे भक्त या शिष्य को,उसके नमन करने पर प्रत्युत्तर में कहे, गुरु के या देव देवी के आशीर्वाद वचन की कल्याण हो या शुभम अस्तु या अभीष्ट प्राप्त हो,वो असत्य सिद्ध हो जाते है,क्योकि गुरु के ह्रदय में तो दया, करुणा हित चिंता होने पर भी दाता भाव रहता है और वो सबकी ओर जाता भी है,पर शिष्य में सेवा और सत्कार का भाव नहीं होने से,उसे वो प्राप्त नहीं होता है।
यो गुरु इष्ट वचन,फिर से लौटकर गुरु व इष्ट में ही समा जाता है,जो शिष्य को मिलता भी है,तो उसके कहे नमन शब्द का उत्तर केवल आशीर्वाद कहने पर भी ,वो केवल शब्द ही बन कर प्राप्त होने से कुछ भी फल नही देता है।
यो आशीर्वाद शब्द का अर्थ और इसका फल,केवल शिष्य ने यदि गुरु इष्ट सेवा विभूषिका की होती है,तब उनके बीच प्रेम नामक सेतु यानी पुल से आदान प्रदान होकर मिलता ओर फलित होता है।
जैसे खेती करते में,चाहे कितना ही अच्छा बीज हो,ओर कितनी ही उपजाऊ जमीन हो,ओर कितना हो अच्छा वातावरण भी हो,तब भी खेत मे पड़ा बीज,भूमि के सतह पर पड़ा,बिन सेवा रूपी गुड़ाई,नलायी ओर पानी के कभी भी बढ़ कर फलदायी नहीं बन सकता है।
यो गुरु जी आपको मेरा नमस्कार है,ये कहने पर गुरु की ओर से कहे तुम्हारा कल्याण हो,भी फलदायी नहीं होगा,यो गुरु की शिष्य के द्धारा केवल सेवा किये जाने पर ही,फल बनने का कारण प्रेम नामक शक्ति से ही आशीर्वाद वचन फलदायी होता है।
यो ही सेवा करो तो मेवा मिलेगी,,का अर्थ है।
!!सत्यसाहिब जी!!
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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