सत्यास्मि प्रातः ज्ञान सत्संग
संसारी जनों को अपने गुरु या शास्त्र सम्मत ज्ञान का सदा आचरण करना चाहिए,जिससे उनका सदा भला होता रहेगा।गुरु बनाना आसान है,गुरु दीक्षित भक्त को अपने घरेलू जीवन मे गुरु का स्थान क्या क्या है?ये अवश्य जान कर उन्हें अपनाते हुए सदा चलना चाहिए,श्री गुरु ओर ईश्वर मेकभी भेद नहीं समझना चाहिए क्योंकि ईश्वर ही सद्गुरु रूप में इस धरती पर मनुष्य रूप में साक्षात अवतरित होकर लोकलीला करता धर्म जीवन ज्ञान देता है,यो इस सबको नीचे स्वरचित सत्संग केमाध्यम से समझाते कहते है कि,
जिस घर लिखा गुरु मंत्र नहीं
ओर न सेवा हो गुरु धाम।
सदा बहाने भरे जुबान
उस भक्त कैसे हो कल्याण।।
जिस के पूजाघर में गुरु चित्र नहीं
ओर नहीं गुरु साहित्य।
दान नाम पर स्वार्थ सदा
उस शिष्य कैसे हो हित।।
जिस भक्त वाहन गुरु मंत्र नहीं
न लिखा विवाह के पत्र।
उसके मंगल कारज विध्न पड़े
संकट घेरे उसे यत्र तत्र।।
गुरु मुहं देखी बात कहें
झूठी मिलाए गुरु हां।
उस कथित भक्त भला नहीं
मिले उसे हर मानुष की ना।।
यो सदा इन उपदेश अपना चलो
ओर गुरु से बिन रख द्धेष।
गुरु ईश्वर देव प्रत्क्षय रूप
वही तुम कर्मदाता शुभफल मेश।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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