तुम ही नवरात्रि नवचक्र से
तुम ही अज्ञान अमावस।
तुम ही ज्ञानमयी पूर्णिमा
तुम ही स्वयं को पावस।।
सत्य ॐ सिद्धायै नमः जपो
करके अपना ध्यान।
तुम्हीं त्रिगुण देव देव्यै
यही चैत्र नवरात्र उदित कर ज्ञान।।
मस्तक तुम्हारा शिव है
विष्णु ह्रदय भाग।
नाभि तुममें ब्रह्म विश्व
मूलाधार कुंडलिनी जाग।।
शक्ति तुम्हारी आत्मा
लक्ष्मी इच्छित मन।
सरस्वती तुम्हरे कंठ में
दस विद्या प्राण तुम अंग।।
यो कीजिये रेहि योग नित
अपने अंग अंग करके ध्यान।
तुम्हीं आदि अनादि सदा
अहम सत्यास्मि त्वमेव नाम।।
है,,मनुष्य- तुममें ही पुरुष शक्ति सत्य पिंगला सूर्य है ओर तुममें ही स्त्री शक्ति ॐ इंगला चन्द्र है और इनके प्रेम संयोग से तुम्हारी ही समस्त सृष्टि सिद्धायै है,तुम ही स्वयं में स्थिर होने पर नमः हो,यो इसी अपने आत्मस्वरूप के शब्द नाम से अपना ही ध्यान करो,तब तुम्ही अंड ओर तुम्ही ब्रह्मांड हो,यो तुम ही जन्मे अपने कर्मो से ओर तुम्ही अपने कर्म फल भोगने से जीते ओर पुनः अपनी ही प्राप्ति को मरके जीते हो,यो तुम ही में त्रिगुण सत रज तम के रूप में ब्रह्मा,विष्णु,शिव का वास है,तुम्ह अपनी आत्मा की इच्छा शक्ति से महाशक्ति हो और अपनी कर्म शक्ति से अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने से लक्ष्मी हो और इस सब ज्ञान को जानने से शार्श्वत सरस्वती हो,तुममें दस प्राण ही दस महाविद्या है,यो तुम अपने आते सांस से अपने को प्रकट करते सृष्टि करते हो और जाते सांस से अपने को अपनी आत्मा की परमावस्था परमात्मा में लय करते हुए आनन्दित हो,यो इसी रेहि क्रियायोग को सदा जानते हो,अपने इसी के अभ्यास से तुम अपने मे स्थित नो ब्रह्मांड चक्रों से नो प्रकार के अज्ञान रात्रि की नवरात्रि के अंधकार रूपी अमावस को मिटाकर अपनी कुंडलिनी जो जाग्रत है,उसे विस्तारित करके अपने आत्मज्ञान प्रकाश से पूर्णिमा बनकर,अपने में सदा गूंजते रहने वाले अनाम की- मैं ही सत्य हूँ,मै स्थिर रहते हो।यही तुम्हारी निर्विकल्प मोक्षीय परम अवस्था है।और यही तुम्हारा आत्मसाक्षातकार सत्य है।
🌹जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी🙌
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