वेलेंटाइन सप्ताह के सातवें दिन किस डे यानि प्रेमाचुम्बन दिन के प्रेमा भक्ति के नवधा भक्ति में जो प्रेमाभक्ति के 9 प्रेम स्तर बताये है- श्रवणं कीर्तनं प्रेमः स्मरणं पादसेवनम्।

वेलेंटाइन सप्ताह के सातवें दिन किस डे यानि प्रेमाचुम्बन दिन के प्रेमा भक्ति के नवधा भक्ति में जो प्रेमाभक्ति के 9 प्रेम स्तर बताये है- श्रवणं कीर्तनं प्रेमः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
उनमें से एक है- सख्य और आत्मनिवेदन के मध्य की स्थिति प्रेमालिंगन और प्रेमाचुम्बन भाव। जिसकी प्रेम पराकाष्ठा में, दो प्रेम में भाविहलता को मिटाने को प्रेम अधरपान करते हुए एक हो जाते है,यानि द्धैत से अद्धैत,दो ज़िस्म एक जां हो जाते है,तब घटित होता है-प्रेमालिंगन के मध्य प्रेमाचुम्बन-जिसे अग्रेजी संस्कृति में किस कहते है।और इसी प्रेमाचुम्बन दिवस यानि किस डे पर अपनी इस कविता से प्रेमिकों के चरम राधे कृष्ण प्रेम प्रसंग के इस पक्ष को दर्शाते कह रहें हैं-सत्यसाहिब जी..

श्रवणं कीर्तनं प्रेमा स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
नवधा प्रेमाभक्ति में जो 9 प्रेम के स्तर बताये हैं,वे जीवन्त स्त्री और पुरुष के परस्पर प्रेम को कैसे दिव्य बनाये यानि दो ज़िस्म एक जां,द्धैत से अद्धैत कैसे बने।इस प्रेम विषय के अंतर्गत जब दोनों में तन मन वचन से सच्ची दिले एकता आ जाती है,तब कोई दुरी नहीं रह जाती है,समस्त विरह की समाप्ति हो जाती है।दोनों समान हो जाते है।तभी समांतर में सच्चा प्रेम घटित होता है।अन्यथा राजा और रंक या राजा और भिखारी में केसा प्रेम।
तब दोनों तन से नहीं,मन और वचन के भी प्रेम स्तर पर एक होते है और तब इसी प्रेमावस्था के उदय होने पर परस्पर सच्चा प्रेम आलिंगन और प्रेमाचुम्बन घटित होता है।तब कोई दुरी,विरह,वेदना आदि शेष नहीं रहती है।सदा दोनों को अपने में एक हुए रहने के प्रेम रस का पान करने का अमृतत्व का बोध होता है।तब मैं तू खत्म होकर केवल हम का प्रेम रस और रास शेष रह जाता है।यही है-भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति में प्रेमाभक्ति का 7 वां दिन-किस डे यानि प्रेमाचुंबन दिन।…

!!🌹किस डे🌹!!

[चुंबन💞 दिवस]

[एक प्यार ए सफ़र-7]

पास ज्यों ज्यों आते गए
बार बार मिलने के बदले अंदाज।
लव्ज़ खत्म होते गए
बन बन सांसों के साज़।।
दिन कब गुज़रे
कब गुज़रे रात।
ऑंखें खुली रहें या बंद
फड़कते होंट बिन कहे बात।।
दिले कसक और बढ़ीं
झुलस उसकी झलकी ए होंट।
भूल गयी जीभ उन्हें गिला करना
कह आह लग तालु की ओट।।
लगा रहने बदन ठंडा
पर गर्मी की तपिश बढ़ती रही।
प्यास बुझे न कुछ भी पीकर
चढ़ती रही।।
बाहर की नजर में बदला न बदला
अंदर की नजर बदला नजरिया।
दिल तो बन गया आईना एक
एक ही शख़्स ए अक़्स दिखे हर ज़रिया।।
यो ऑंखें चढ़ी रहें
नशा ए इश्क़ तरन्नुम ले।
चाहत है बिन कुछ कहे
हर ख़याल में उन्हें ही ले।।
सब कुछ है पर कुछ भी नहीं
जिसकी तलब है वही नहीं कहीं।
मैं मिटा और अब वही है यहां
जो कह रही वही नहीं रही।।
ये हाल ए नजदीकी हुयी ज्यों
एक दूजे बैठे पास।
मन गीत मीत संग गा उठा
धधक उठे रग़ड़ ले साँस।।
इसी कसक में खिसक एक दूजे
बाहें फेल बनी आग़ोश।
समा गए दूजे में दूजा
एक बन हो गए ख़ामोश।।
प्यासा दिल सांसों से चाहे
साँस चाहे बुझाए होंट।
बुझे तो बुझे जिया की लागी
दो मिले प्यासे जब होंट।।
मिले जब कसकर गले
न बुझे दिल जले।
बढ़ गयी और भी तमन्ना
उसे मिटाने होंट जा खुद मिले।।
लब मिले लबालब होने
ज्यों सूरज रौशनी मिले जा चाँद।
और चाँद दमके चांदनी की चमक
चमक चूम खिले कली फूल बन चाँद।।

सत्यसाहिब जी..
Www.satyasmeemision. org

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