विश्व शरणार्थी दिवस World Refugee Day, 20 जून पर ज्ञान कविता
इस विश्व शरणार्थी दिवस World Refugee Day 20 June के मौके पर अपनी ज्ञान कविता से जनसंदेश देते स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी इस प्रकार से कहते है कि,
पहर वर्ष 20 जून को मनाया जाने वाला यह विश्व शरणार्थी अंतर्राष्ट्रीय पर्व दिवस है। यह दिवस विश्व भर में शरणार्थियों की स्थिति के बारे में जागरूकता भरे ज्ञान और उनके प्रति सहयोग भावना अपनापन बढ़ाने के लिए समर्पित है। 4 दिसंबर 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने निर्णय लिया कि 20 जून सन 2000 से इस दिन को विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। सभी शरणार्थियों को सम्मानित करने,उनमें अभयता के साथ जिस देश मे आप शरण पाये हो,वहां के नागरिकों ओर वहां के सामाजिक नियमो का पूरी तरह पालन करते हुए अपनी भी जागरूकता बढ़ाने और समर्थन करने ओर देने के लिए यह स्मरण किया जाता है।
विश्व शरणार्थी दिवस के अवसर पर उन 7 करोड़ से अधिक विस्थापित और शरणार्थी महिलाओं, बच्चों और पुरूषों के साथ हैं, जिन्हें युद्ध, संघर्ष या भीषण जातीय व रंगभेद नीति जे भेदभाव भरे नरसंहार के अत्याचारों के कारण अपने घरों से भागकर दूसरे देशों या स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है।
इस सम्बन्धित आंकड़े बताते है कि पिछले 20 सालों में ये शरणार्थियों की संख्या दोगुनी हुई है।
इनमें से अधिकतर तो बलपूर्वक विस्थापित कुछ मुट्ठी भर देशों से ही आते हैं,उन देशों में प्रमुख हैं- सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिणी सूडान, म्यांमार और सोमालिया। पिछले कुछ समय में ही लाखों लोग वेनेज़ुएला छोड़कर भाग चुके हैं।हमारे भारत देश मे भी पड़ोस ओर सदुर के अनगिनत शरणार्थियों की संख्या दिन दर बढ़ी है और इनकी मांगे भी बढ़ने लगी है।सरकार इनकी निरंतर गिनती कराती हुई प्रयासरत है।
आज शरणार्थियों को सबसे ज़्यादा आर्थिक सहायता के साथ उन्हें अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण लगाने की बहुत ज़रूरत है–हमें उनके साथ सहयोग और सोहार्दय के साथ शांति की।
यो इस दिवस पर अपनी ज्ञान कविता से जनसंदेश देते स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी इस प्रकार से कहते है कि,
विश्व शरणार्थ दिवस पर ज्ञान कविता
निकलो भागो इस हम देश
तुम नहीं हो हम संस्क्रति शेष।
ये भूमि नहीं जन्मदात्री तुम सब
तुम हो यहां शरणार्थी हम देश।।
फिर प्रताड़न मनुष्य करें मनुष्य का
छीन उनकी संपत्ति घर।
भूमि छीन भागता इस नारे
निकाल फेंकता दे हर डर।।
कहाँ जाये किसी देश शरण ले
कौन हमें अपनाएगा।
कौन देगा हमें अपनी भूमि
कितने समय हमें वह रुकायेगा।।
यही चिंता और आक्रोश पालकर
मरते मारते एक दूजे लोग।
खून के प्यासे वंश मिटा रहे
नहीं करने दें निज धरा का भोग।।
धर्म नाम नरसंहार हो रहे
जाति नाम हो रहे बलात्कार।
प्रांत देश नाम है युद्ध भयंकर
शरणार्थी नाम छीन मानव अधिकार।।
पहले सभी जीव मार भगाए
उन्हें शरणार्थी बता इस धरती।
अब मनुष्य एक दूजे भगा रहा है
कह तू नहीं हैं हम जात हम धरती।।
कौन नहीं इस धरा भूमि पर
क्या हम शरणार्थी नहीं सब जीव।
केवल खाते इस धरा भोग कर
ओर उधार में गटके इस जल पीव।।
पूछो अपने मन कर चिंतन
हमारा आखिर इस धरा है क्या।
क्या लाये ओर कहाँ से लाये
जो अधिकार जताते किस कर्म कर क्या।।
दिमाग शून्य हर मानुष होगा
कुछ नहीं है हमारा इस धरा अधिकार।
जननी पालक तारक मारक
यही धरा है हम जीव उधार।।
यो सभी यहां शरणार्थी बंदे
यो कभी नहीं करो अहंकार।
सभी का सब कुछ सब अधिकारी
प्रेम सहयोग समर्पण शांति के सार।।
संपदा सभी इसी धरती की
जिसको हम अपना कहते।
कर उपभोग उसे अपना समझ कर
ये झूँठ अज्ञान समझ रो बहते।।
देश भेष व्यवहार संस्क्रति
सबके पीछे एक मानव।
जो सहयोगी परस्पर एक दूजे
वही देवता ओर अकर्ता दानव।।
त्यागों इस झूंठे घमंड को
ओर अपनाओ सबको ह्रदय।
सब अपने है नहीं कोई दूजा
यही धरा से सीखो पराये बिन भय।।
जनसंख्या नियंत्रण करो अब अपनी
जो बढ़ बढा रही धरती पर बोझ।
ओर विकास नाम विनाश को रोको
रहो जो दिया धरा ने जीने को रोज।।
आओ सबका स्वागत देश सब
पर नियम विकास अपनाने संग।
सहयोग मिले सहयोग दें बदले
रहो निज देश समझ नियम बिनकर भंग।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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