!!भक्ति बनाम मांग अधिकार!!
आज भक्ति नाम अधिकार बन गया
भक्ति नाम वर वसूली।
भक्ति रखकर बोली बदली
भक्ति चढ़ गई आज शूली।।
भगवन मेने ये किया
ओर तुंझे चढ़ाए सब भोग।
तेरा नाम जपा छोड़ सब
तूने मुझे दिया जग सारा रोग।।
चालीस दिन के दीप जलाये
ओर नंगे पैर चढ़ी पहाड़।
तेरे दर पर माथा रगड़ा
परवाह करी न जाड़ा आषाढ़।।
जोड़े बना कांवर ले आया
ओर जो बना किया भंडारा।
फिर भी मिला न मनचाहा मुझको
मेरा कब भरे तू भंडारा।।
झाड़ू लगाई झाड़ू चढ़ाई
ओर फूल चढ़ाए महंगे।
उठ अंधेरी नहाकर गंगा
तुंझे चढ़ाएं चुनरी संग लहंगे।।
खुद को कभी न खीर बनाई
ओर न रोज बनाया हलुआ।
चालीस दिन के कर लिए चिल्ले
ओर कर्ज बढ़ा बन बैठा ठलुआ।।
हाथ पर रख कपूर जलाया
ओर बढ़ायी तुझको दाढ़ी।
बाल चढ़ाए सिर मुंडवाकर
फिर भी चली न मेरी जीवन गाड़ी।।
कौन से पाप किये मेने है
कौन का दिल दुखाया।
इस जीवन मे याद नहीं मुझ
तेरी शरण न देखी सुख छाया।।
कितनी बांटी गुरु चालीसा
कितने गाये भजन गुरु।
पर पूरी हुई न मनोकामना
वही बैठी जहां से हुयी शुरू।।
अंगूठी पहनी महंगी महंगी
ओर चढ़ाए पांच तुम फल।
दूध चढ़ाया कुंतल भर तक
नहीं मिला मुझे मुझ कल।।
अब भक्ति टूट गयी है मेरी
अब तुंझ पर आता क्रोध।
मुझसे बढ़िया,वो पड़ोसी
जिसे पूजा पाठ ना बोध।।
सुबह उठ खूब है करती
करती न एक पैसा दान।
गाली देती भिखारी बाबा
फिर भी मौज उसके जहान।।
तू भी केवल उनकी सुनता
जो देते तुझको गाली।
कहते कहीं भगवान नहीं है
हंसते हम भक्ति पर दे ताली।।
ये गुरु तरु सब बकवास है
सब के सब है लुटेरे भोगी।
शास्त्र लिखे है भय को गढ़कर
हम करते शोषण बन जोगी।।
अब धीरज टूट रहा है
ओर छूट रही भक्ति की डोर।
नही है बसकी अब तेरी भक्ति
ना मन है तुझको देना मुख कोर।।
बस कल तो ओर देखती तुझको
फिर पकड़ू ओर कोई देव।
सही कह रही एक हितेषी
की आज भक्ति नहीं है खेव।।
खूब खाओ ओर मौज करो बस
न मानो किसी भगवान।
वही सुखी आज सब देखो
जो पूज रहे शैतान।।
यही हाल पति पत्नी का आपस
बचा न बीच कोई प्रेम।
बस यही बदले की मांग बची है
बस रिश्ते नाम अधिकारी प्रेम।।
भक्ति चढ़ी है बदले सौदा
जैसे खुली हो भगवान दुकान।
जाओ कथित भक्ति ले पैसा
खरीद लो बस मनचाहा सामान।।
जैसा कर्म किया तूने है
वैसा फल रहा भोग।
यही समझते,नहीं सब समझे
बस सौदा करते भक्ति दे भोग।।
उत्तर तुम्हीं कथित भक्त छोड़ता
की कोन सही,गलत है कौन?
सौदा किससे कौन कर रहा
किस भक्ति नाम से कौन??
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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