यदि ईश्वर का कोई रूप नहीं है,वो निराकार है,तो उसने कैसे ये दुनियां रूप लेकर बनाई

1-यदि ईश्वर का कोई रूप नहीं है,वो निराकार है,तो उसने कैसे ये दुनियां रूप लेकर बनाई?

2-ओर कैसे वो हमारी बातें इबादत सुनता है?
3-और कैसे वो हमें रूप के बनी वस्तुएं उपहार में देता है?
4-कैसे निराकार ने ये अच्छे कर्म और बुरे कर्मो को जाना?
5-और कैसे हम रूपवान को बताया?
6-जो निराकार है,जिसका कोई आकार नहीं है,वो कैसे सुनता ओर बोलता ओर दण्ड ओर वरदान देता है?
7-जब वो निराकार है तो,कैसे उसने अपने नियमों के उपदेश ओर किताब कह या लिख कर भेजी?
8-कैसे वो एक प्रकाश के रूप में भक्तों के सामने आया,जबकि प्रकाश भी एक रूप ही है।
-यो ईश्वर केवल निराकार है ये बिलकुल गलत अर्थ है।
सत्यास्मि सत्संग कहता है कि,मनुष्य की प्रत्यक्ष यानी स्थूल दिखाई देने वाली पंच इंद्रियां हो या अप्रत्यक्ष यानी सूक्ष्म पंच इंद्रियां हो,वे 1-रूप-2-रस-3-गंध-4-स्पर्श-5-शब्द से बनी या यों कहो कि,उनके अर्थ को ओर अनुभूतियों को प्रकट करती है।तब इनमें से कोई भी एक होगा, तो वो रूपवान ही कहा जायेगा।प्रकाश है तो उसका स्पर्श ओर रस और गंध ओर उसके होने की गर्जन उपस्थिति यानी शब्द भी होनी अनिवार्य है।यो सीधा सी बात है कि,ईश्वर सदा मनुष्य जीव ब्रह्मांड यानी स्थूल सूक्ष्म अतिसूक्ष्म ओर सूक्ष्मातीत प्रकृति के रूप में सदा जीवित जीवंत ओर उपस्थित बना रहता है,जो उसे अनुभूत कर रहा और ओर जिसको अनुभूत हो रहा है और इस दोनों तरफ़ा अनुभूति के बाद भी जो शेष है,वह सब ईश्वर ही है,वह सत्य और सनातन शाश्वत है।यो वो सदा रूपवान है।
यो ही सनातन धर्म कहता है कि,तुम खुद ही ईश्वर के जीवित मूर्ति हो,यो दूसरे किसी भी काल्पनिक ओर बीते यानी मर्त की मूर्ति की उपासना करने की जगहां अपने रूप में जीवित परमात्मा की अपने अंदर उसकी अपने रूप में उपस्थित का ध्यान कर ओर इस बीच के भेद की वो कोई और है और मैं कोई और हूँ इस भेद के बहम को डर को हटा मिटाकर अपने को जान,यही करना रेहीक्रियायोग है और अपने को शब्दों में अर्थ के साथ जानने को बार बार दोहराना ही सिद्धासिद्ध महामंत्र है तथा मैं ही शाश्वत सत्य सनातन हूँ यही पाना “अहम सत्यास्मि” आत्मसाक्षात्कार है।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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