प्रोफेसर राममूर्ति नायडू का जीवन परिचय के साथ साथ,रामूर्ति सहित अनेक प्रसिद्ध बलवान व्यक्तियों द्धारा किये गए, पफ़स्सि योग के असाधारण बलवर्धक प्रदर्शन के अभ्यास को कैसे करें,बता रहें है स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…
प्रोफेसर राममूर्ति नायडू जीवन परिचय:-
अब तक अनेक वीडियो में प्रोफेसर राममूर्ति नायडू जी के विषय पढा सुना होगा,पर यहाँ स्वामी जी ने इनके विषय मे अपने स्व. दादा महेंद्र सिंह तोमर ओर उनके छोटे भाई स्व.पहलवान रघुराज सिंह तोमर गांव चंगोली बुलन्दशहर, जो कि सन 32 से सन 52 तक कुश्ती में अविजित मेरठ कमिश्नरी चैम्पियन रहे,ओर उनके छोटे भाई स्व.वीरनारायण खलीफा जी से जीवंत देखी बातें सुनी थी कि-राममूर्ति जी का जन्म 9 अप्रैल सन 1882 को आंध्र प्रदेश में हुआ था,ये बचपन में बड़े कमजोर थे,एक बार ये अपनी घेर में बैठे भेंसे के ऊपर से कूद रहे थे,ओर अचानक भैंसा उठ गया और ये उससे कूदते में टकराकर गिर पड़े,तब वहाँ एक भृमण पर आए एक योगी ने इन्हें योग एवं प्राणायाम के अभ्यास बताये,जिन्हें करते करते ये असाधारण बल और इसके करतबों से देश भर में प्रसिद्ध हो गए,इनकी ख्याति सुनकर जर्मनी के प्रसिद्ध पहलवान यूजीन सेंडो ने इनके विदेश में गए सर्कस में जाकर इन्हें बल प्रदर्शन करते देखा।इनकी छाती सामान्य तौर पर 48 इंच की थी और जब ये प्राणायाम करते तब इनकी छाती 56 इंच की हो जाती थी।जबकि इनका कद 5 फिट 6 इंच था।ये देख सेंडो इनसे लड़े बगैर विदेश टूर में जाना है,आकर लड़ूंगा ये बात कहकर बच निकला था।एक बार ये इंग्लैंड में अपना हाथी को अपनी सीने से उतारने का खेल दिखा रहे थे,इन्हें चेलेंज दिया गया था कि,हमारे प्रशिक्षित हाथी को उतरवा कर दिखाओ,इन्होंने चुनोती स्वीकार की,ओर हाथी उतारने का करतब दिखाना शुरू किया,जैसे ही हाथी इनके सीने पर से गुजरा, तभी उस अंग्रज प्रशिक्षक ने हाथी को इशारा करके वहीं रुककर अपने पैर की धमक करने को इशारा किया,ओर हाथी ने ऐसा ही किया,जिससे राममूर्ति जी की छाती की पसलियों में बड़ी भयंकर चोट आ गयी,वहीं के वहीं राममूर्ति जी ने बल लगाकर हाथी को पलट दिया।और इस चोट से इनकी पसली टूट गयी,यो इन्हें आयोजन को छोड़ भारत आये और स्वस्थ होकर,फिर यूरोप और अमेरिका आदि से निमंत्रण मिले, इनके चेलेंज पर कोई पहलवान इनसे लड़ने नहीं आया,केवल स्विजरलैंड के दो पहलवान डोरिया ओर चेरिप्लाड ने साहस दिखाया,जिसपर इनके चेलों ने ही इन्हें हरा दिया।फ्रांस मे होने वाले सांडों से आदमियों के तलवार से युद्ध को देख कर इन्होंने कहा कि खाली हाथ से इन सांडो को हरा कर दिखाओ,तब इन्होंने वहाँ मैदान में दो सांडों के सींग पकड़ कर उन्हें रोक दिया।इन्हें लगभग 200 से ज्यादा पुरुषाकार मिले, इन्होंने पूरे भारत मे घूम घूम कर अपने बलवर्द्धक प्रदर्शन दिखाते हुए अनगिनत लोगो को स्वस्थ और बलवर्द्धक प्रदर्शनों के करने के तरीके सिखाये ओर इन्हें प्राप्त व्यायाम पद्धति को सिखाया।जिससे देश भर में बड़े से बड़े बलशाली युवक भी इन्ही की तरहां प्रसिद्ध हुए,भीम भवानी,दयाशंकर पाठक,तारा बाई आदि।एक बार उस समय के विश्व चैम्पियन गामा पहलवान ने इन्हें कुश्ती के लिए चुनोती दी,तो ये बोले कि भई गामा मेरा क्षेत्र अलग है ओर तुम्हारा अलग है,फिर भी यदि तुम कहते हो,तो तुम मेरे धरती पर जमे पेर को वहां से उठाकर दिखा दो,मैं तुम्हे विजेता मान लूंगा,ये सुन गामा ने कहा सही कहा,हमारे क्षेत्र अलग अलग है और इनके बल की प्रसंसा की थी।इन्होंने उस समय अपना बहुत सा धन देश की क्रांतिकारियों की सहायता को दान किया था।इनकी व्यायाम का तरीका प्राचीन भारतीय दंड ओर बैठक थी,वे इनके नाम से दिखाई गई अबकी सारी वीडियो में दिखाई गई है,बहुत सारी सपाटा बैठक ओर बहुत सारी आगे की ओर झुक कर सर्पासन करके उठती हुई हजारों दंड है।बल्कि इनको इन्होंने कहा कि ये बिगड़ी हुई दंड बैठक है,पचास दंड की जगहां 5 सही दंड बहुत बल देती है,ऐसे ही बैठक भी है,इनकी प्रत्येक एक दंड ओर एक बैठक को लगाने में सांस भरकर कम से कम 3 से 5 मिनट का समय लगना चाहिए।और ऐसी कम से कम 10 दंड ओर 10 बैठक ही बहुत होती है।यो राममूर्ति हजारों दंड बैठक नहीं लगते थे।बल्कि
जिसका सही स्वरूप आपको स्वामी जी के पफ़स्सि योग अभ्यास में मिलेगा।
प्रोफेसर राममूर्ति जी की 2 फरवरी 1942 को मृत्यु हुई थी।यहाँ इनके शिष्य ओर स्वामी जी के बलवर्द्धक प्रदर्शनों के चित्र दिए गए है।
पफ़स्सि योग:-
पफ़स्सि योग की 15 मिनट की 15 एक्सरसाइज करें।वो पहले वीडियो में विस्तार से दी गयी है।और यहाँ कुछ अभ्यास असाधरण बलवर्द्धन के प्रदर्शन कैसे करें ये सहज तरीके से बताये है।जो अनुभव सिद्ध है।बस अभ्यासी की आवश्यकता है।
जंजीर तोड़ने का उत्तम तरीका:-
आप जंजीर तोड़ते में तो अपनी सांस को बार बार खींच ओर छोड़ सकते है,पर पत्थर रखने पर ऐसा करना म्रत्यु को बुलाना है।इस जंजीर तोड़ने के करतब में बार बार सांस खींचना छोड़ना ओर जोर लगाने के प्रदर्शन से दर्शकों को ओर भी जिज्ञासा बढ़ती है कि भई जंजीर तोड़ने में बड़ा ही जोर लगाया जा रहा है।पर अभ्यास होने पर ये सब बहुत हद तक आसान हो जाता है।
अभ्यास के लिए आप एक भारी लकड़ी के तख्ते में कुंदा लगवाकर रखे और उस तख्ते पर खड़ा होकर अब उसमे जंजीर को डालकर अपनी कमर के पीछे से लाकर अपने पेट की ओर कसकर बांधे ओर जंजीर को इतना तंग रखें कि तोड़ते समय ढीली हो जाने पर दोबारा से उसे तंग या टाइट नहीं करनी पड़े,ये सदा याद रखें।जंजीर को सदा अपने आगे की ओर की अपेक्षा अपनी पीठ के पीछे अधिक कसकर यानी टाइट रखकर अपने कंधे को पीठ पीछे की ओर मोड़कर ओर झटका यानी झोका देकर तोड़नी चाहिए।
2:-मोटर रोकने का बढ़िया अभ्यास:-

मोटर को रोकने के अभ्यास से पहले अनेक व्यक्ति को दोनों ओर से रस्सी पकड़ाकर या किसी स्थान पर दो पेड़ हो उनमें दोनों ओर से एक एक रस्सी बांधकर ओर उस रस्सी के दोनों कुंदों को अपनी बांह से पकड़कर एक ही सांस में भरकर तब पूरा जोर लगाकर उन पेड़ो को अपनी ओर खींचने का अभ्यास करें।तब जब तुम्हारा सांस को रोकने का इस अभ्यास सहित कम से कम 4 या 5 मिनट तक न हो जाये,तबतक इस मोटर रोकने के करतब को नहीं करें।और मोटर रोकने के करतब में भी जबतक मोटर का इंजन बन्द नहीं कर दिया जाए तबतक अपनी पकड़ को ढीला नहीं करें।अन्यथा अचानक मोटर के चलने या चलाये जाने पर आपको बड़ी चोट आ सकती है।इस करतब में अपने घटने बिल्कुल कसकर ओर सीधे रखे।घुटने मोड नहीं।ओर गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति आपका विश्वसनीय होना चाहिए,गाड़ी को पहले तीसरे गेयर से प्रारम्भ करे,फिर दूसरे से ओर अंत मे पहले गेयर में डालकर स्पीड बढ़ाई जाती है,इससे प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति को झटका नहीं लगता है।ये सब बातों का ध्यान रखेंगे,तो आप दर्शकों को चमत्कृत कर देंगे।
वैसे मेरी राय है कि पहले अनेक व्यक्तियों को दोनों ओर से खींचने का ही प्रदर्शन करना चाहिए।
3:-सीने पर पत्थर रखने ओर तोड़ने का तरीका:-

सबसे पहले पत्थर रखने से पहले प्रत्येक अभ्यासी को कम से कम 3 मिनट का सांस रोकने का अभ्यास पूरी तरहां से कर लेना चाहिए।तब इस करतब में हाथ डाले।अन्यथा जान जोखिम में पड़ सकती है।इस विद्या का सूत्र है कि-जैसे आप अपने हाथ पर कोई ईंट या पत्थर रखे और दूसरे हाथ से किसी कठोर पत्थर से उसे मारकर तोड़े तो पत्थर टूट फटेगा ओर आपके हाथ को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा।ठीक यही यहाँ सीने पर पत्थर रख कर तोड़ने का अभ्यास ओर करतब है।पत्थर को सीने पर रखते समय अपने दोनों हाथ अपने सीने से ओर पेट से कुछ ऊपर रखें और एक हाथ की मुट्ठी को दूसरे हाथ से कस कर पकड़े और दोनों कोहनी को कसकर अपने सीने के दोनों ओर उठाये रखें ताकि फेफड़े का सारा भाग बहुत कसा हुआ रहेगा तथा इस करतब से पहले ही अपनी कमर पीठ और गर्दन के नीचे मोटा कपड़ा या गद्दा अवश्य बिछा ले।जिससे आपकी गर्दन और छाती बराबर रहे।क्योकि गर्दन नीचे रहने से पत्थर रखते या तोड़ते सनी सांस पर पड़ने वाला झटके से सांस का दबाब दिमाग मे लगने से आपको मूर्छा आ सकती है।वैसे ऐसा होने पर आपके सहायक द्धारा आपके सिर को थोड़ा उठाने से ये अवस्था तुरन्त ठीक हो जाएगी।बहुत अभ्यास के बाद प्रदर्शन करने की अच्छी समझ आ जाती है। लगभग 4 व्यक्ति तक तो सामान्य ही सीने पर खड़े किए जा सकते है,इससे अधिक के लिए आपको एक मजबूत तख्ता लेकर पहले अपने सीने पर मोटा कपड़ा रख ले,ताकि सीने पर तख्ते ओर आदमियों के चढ़ने से हिलने या खिसकने से छीलन पैदा नहीं हो।
4:-बाहों के चारों ओर जंजीर बांधकर तोड़ना:-















इसमे भी जंजीर तोड़ने के अभ्यास की तरहां ही सांस बार बार नहीं ले,बस अपने पीठ से लेकर दोनों हाथों के बाहरी भाग पर प्रारम्भ के अभ्यास में कोई बड़ा सा इकहरा तोलिया अवश्य लपेट लें,ताकि जंजीर की रगड़ ओर दबाब से पीठ और बाँह छिले नहीं,आगे चलकर बिना कपड़े ही जंजीर तोड़ी जा सकती है।
इस जंजीर तोड़ने के अभ्यास के पहले आप पतली रस्सी को इसी प्रकार से कपड़ा लगाकर तोड़ने का अभ्यास रोज करें,तब पतली से मोटी रस्सी तोड़ने के अभ्यास हो जाने पर जंजीर के तोड़ने का अभ्यास करना चाहिए।ये सभी प्रकार की जंजीर तोड़ने के अभ्यासों में करना चाहिए।
आगे चलकर अपने सीने के चारों ओर ऐसे ही रस्सी को बांधकर तोड़ने का अभ्यास करें।प्रारम्भ में एक बार ही जोर लगाकर रस्सी टूटे या न टूटे,अभ्यास छोड़ दे,क्योकि आपके फेफड़ों को उस प्रकार के दबाब का भी अभ्यास होना चाहिए।फिर कुछ दिनों में कसरत के बढ़ते ओर अभ्यास के बढ़ते ये सब करतब आराम से कर सकेंगे।
प्रारम्भ में अपनी जंजीरे बनवानी होती है,जिनमें कच्चे लोहे ओर मुलायम लोहे का उपयोग होता है,अभ्यास के पक जाने पर केसी भी लोह रॉड या जंजीर हो वो तोड़ी या मोड़ी जा सकती है।
ये सब बातें इन करतबों के करने वाले गुरु की संगत से ओर भी अच्छी तरहां सीखी जाती है।पर दिए गए अभ्यास पूरी तरहां प्रमाणिक है,यो बस करने वाला होना चाहिए।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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