प्रेम पूर्णिमा व्रत का भारत के कन्याकुमारी के समुन्द्रों के संगम की प्रकर्ति में अद्धभुत दर्शन का प्रमाण देते हुए बता रहे है,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी….

प्रेम पूर्णिमा व्रत का भारत के कन्याकुमारी के समुन्द्रों के संगम की प्रकर्ति में अद्धभुत दर्शन का प्रमाण देते हुए बता रहे है,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी….

आप संपूर्ण विश्व मे अकेली इस प्राकृतिक अद्धभुत आश्चर्य लीला को देखे की हमारे इस प्रेम पूर्णिमा ओर इसके व्रत के सम्बंध में भी सम्पूर्ण संसार मे भारत के कन्याकुमारी में पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में सुदूर दक्षिणी ध्रुव तक हिन्द महासागर तक फैला हए इस संगम क्षेत्र में,सबसे मनमोहक नजारा तो चैत्र की चैत्र पूर्णिमा की शाम का होता है जब पश्चिम में सूर्य अस्त होता है और पूर्व में चंद्र उदय के साथ ही अपनी अद्भुत चांदनी बिखेरता है ओर ठीक अगले दिन तक कि शेष पूर्णिमासी को भी सूर्य उदय होता है ओर चन्द्रमा अस्त होता है,ये दोनों का अद्धभुत संगम का आध्यात्मिक अर्थ है की-सूर्य पुरुष शक्ति है और चंद्रमा स्त्री शक्ति है इन दोनो का एक संगम रूपी योग सहयोग ही विश्व मे स्त्री का पुरुष के प्रति ओर पुरुष का स्त्री के प्रति समर्पण और सहयोग दिखता है।कि हमें भी परस्पर एक दूसरे के पूरक होकर ऐसे ही एक दूसरे को अपनी ऊर्जा रूपी सहयोग देना चाहिए।ताकि प्रकर्ति में प्रेम संतुलन बना रहने के साथ साथ जीवन्त स्त्री और पुरुष में भी प्रेम सहयोग का सद्व्यवहार बना रहे और यही तो प्रेम की चैत्र पूर्णिमा ओर इसका सच्चा अर्थ में सहयोगी रहने का वचन ही व्रत कहलाता है और यही सत्यास्मि मिशन का प्रेम पूर्णिमा व्रत के मनाने का एक गृहस्थी आदर्श है,जिसे सभी को मनाते हुए अपना अपना पूर्ण समर्थन और बढ़कर सहयोग देना चाहिए,इसका अभी बड़ा अभाव है,जो भविष्य में बढ़कर पूरा होगा।
जब प्रकति इस प्रेम की पूर्णिमा का इस प्रेम सहयोग नियम से व्रत मना रही है,तो हमें क्यो नही मनाना चाहिए ,ये प्रेम पूर्णिमा व्रत?अवश्य मनाना चाहिए।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission.org

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