नारी निवारण जगा,आत्म निर्वाण..अपनी इस कविता के माध्यम से स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी स्त्री शक्ति को उसके अंदर छिपी उसकी आत्मा की परमशक्ति को उजागर करने की प्रेरणा देते कह रहे हैं की..
क्यों सर्व क्रांति पुरुष है वाद।
क्यों स्त्री क्रांति स्त्री है अज्ञात।
क्यों स्त्री भोग्या नपुंसक भ्रम है
क्यों स्त्री संगठित निष्क्रिय साथ।।
भरी है मथुरा कान्हा दासी
भरी है काशी स्त्री उदासी।
भरी है स्त्री भीड़ अज्ञात
भरी है शिवलिंग विवाह कर दासी।।
क्यों भय है अनंत ईश का
क्यों मुक्त नहीं है भोग।
क्यों असत्य का हाथ पकड़ती
क्यों स्त्री सत्य ज्ञान ना योग।।
जिन्हें वीर स्त्री जग कहता
वो भी विफल रहीं सब युद्ध।
एक विजेता ना युगयुगांतर
ना विश्व शांति दूत बन शुद्ध।।
ओ-नारी ढूंढ कौन मैं?
और-नारी बन भोगता स्वयं।
ओ-नारी कुंडलिनी जगा स्वयं की
ओ-नारी अंवेषण कर निज अहम्।।
ओ-नारी कारण निज ढूंढो
ओ-नारी निवारण स्त्री निज ज्ञान।
ओ-नारी निस्तारण जगा स्व बल
ओ-नारी निर्वाण स्त्री आत्म भगवान।।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
🙏जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः🙏
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