नाग पंचमी का सच्चा योग विज्ञान जाने,,, बता रहे है,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी,,

नाग पंचमी का सच्चा योग विज्ञान जाने,,,
बता रहे है,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी,,

सावन में पड़ने वाली नाग पंचमी पर अष्ट नागों की दूध आदि पिलाने चढ़ाने से पूजा की जाती है,,
ओर शास्त्रों के अनुसार नागों को दूध नहीं पिलाना चाहिए,अधिकतर नाग दूध पीने से अपचय की शिकायत होने से मर जाते है।दूध से स्नान बताया गया है।
इसलिए लोग सांपों को दूध पिलाने के चक्कर मे उनके रहने के स्थान जिसे सांप की बॉबी कहते है,उसके अंदर दूध उड़ेल देते है,परिणाम सांप अचानक से अपने रहने के स्थान पर आए इस अनचाहे पदार्थ से घबरा कर बाहर निकल फुंफकारने लगता है,तब लोग उसे फुंफकरते देख ये समझ की,वो उनके दूध चढ़ाने आदि से प्रकट होकर उन्हें प्रसन्न होकर आशीर्वाद दे रहा है,वे सब प्रणाम करने लगते है,ऐसे में सांप दूध को चाट भी लेता है,बस लोग समझते है कि,हमारा चढ़ाया दूध सर्प पी रहा है,ओर यो दूध पीकर सर्प अपचय से बीमार होकर मर तक जाता है।
वैसे भी कोई जीव हो या सांप,वो व्यर्थ में नहीं काटता है,वो वर्षों में इकट्ठे हुए अपने विष को अनावश्यक खर्च नहीं करता है,उसे ऐसा करने से एक प्रकार से निष्क्रियता का अभाव अनुभव होता है।जिस जीव या मनुष्य का काल आ रहा हो,तो बात अलग है।
सर्पों की पूजा को लेकर प्राचीनकाल के गर्न्थो में अनेक कथाओं की भरमार है,ओर चमत्कार की प्राप्ति के लिए सर्प की पूजा से अनेक सिद्धियों की प्राप्ति की भी कथाएं है,उन्नीसवीं सदी में हसन खां जिन्नी की सर्प की कथा प्रसिद्ध हिंदी के साहित्यकार महावीर प्रसाद द्धिवेदी की अद्धभुत अलाप में भी वर्णित है।
ओर संसार भर में दैविक सर्पो की मणियों के विषय मे भी अद्धभुत कथाएं सभी देशों और प्रान्तों में भरमार है।
ओर भारत भर में सावन की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में विशेष पूजा जाता है,की जिस मनुष्य की जन्मकुंडली में किसी भी प्रकार का कालसर्प दोष हो,वो इस नाग पंचमी पर पूजापाठ करके,नागों को दूध स्नान आदि कराए,उनके दर्शन करें तो,उसका कालसर्प दोष खत्म हो जाता है,मान्यता है कि,कालसर्प दोषी व्यक्ति ने किसी जन्म में सर्पो की अकारण हत्या की होती है,आदि आदि,ओर इस सम्बन्धित अनगिनत उपाय मान्यताएं है।
अब प्रश्न ये उठता है कि,आखिर सर्पों की पूजा के पीछे का असल सच्च क्या है?
आप धार्मिक मन्दिर में मूर्ति या पुस्तको आदि के चित्रों में देखोगे की,अपने भगवान शिव भी अपने गले में ‘वासुकी’ नाम का एक सांप पहनते हैं। भगवान विष्णु ‘अनंद’ नाम के एक विशालकाय सांप के नीचे क्षीर सागर में विश्राम करते हैं और जिसे अक्सर “अनंदशयन” कहा जाता है।ओर नागों की विशेष देवी है-मनसा देवी।जो हरिद्धार में चंडी पर्वत पर निवासती है।मनसा देवी की मान्यता करने से कालसर्प दोष खत्म होता है,व सर्प नही काटते है।
पर इन सब सर्प के देव देवी आदि के दैविक दर्शन आदि के पीछे का सच्च यह है कि,असल मे जब मनुष्य ने अपनी आत्मशक्ति जाग्रत करने की विद्या का उच्चतम विकास किया,तो उसने यम नियम के अंतर्गत अष्ट नियमो को जानकर उनकी आत्मशुद्धि के लिए आत्मा के आठ मलों यानी अष्ट विकारों-काम-क्रोध-लोभ-मद- ईर्ष्या-द्धेष-कटुता-अहंकार।को अपने चिंतन और योगाभ्यास से अभ्यास मंथकर शुद्ध किया।तब यही मनुष्य के विकास में बांधा देने वाले अष्ट विकार ही अष्ट विषधर कहे गए,जिन्हें सर्प की भांति ही गुप्त रूप से दूसरे यानी चूहों आदि के घर मे उसे मार कर अपना घर बनाकर रहने की वृत्ति के कारण ही दोष माना गया।यो अपने शरीर के गुप्त भागों की उर्जाघर में कुंडली मारे इन अष्ट विकारों की शुद्धि अष्ट चक्री कुंडली को अष्ट शुद्धि कर खोलने को ही कुंडलिनी जागरण कहा गया।यही अष्ट विकार ही अष्ट सुकार-सत्य,अहिंसा,ब्रह्मचर्य, अस्तेय,अपरिग्रह,दया,करुणा, शांति,प्रेम-कहलाते है।
यो इन अष्ट विकारों को जानना ओर उनकी शुद्धि करने की योगिक चिंतन संग प्राणायाम ध्यान समाधि विधि ही अष्ट नागों की पूजा उपासना है।ओर इन अष्ट सर्पो की समल्लित शक्ति या इनका राजा वासुकी जो कुंडलिनी का प्रतीक है,उस वासुकी रूपी मूल कुंडलिनी शक्ति के माध्यम से से अपने शरीर रूपी समुंद्र में रेहि क्रियायोग के मंथन यानी कुंडलिनी जागरण कर चौदह रत्नों की प्राप्ति की जाती है।समझे,,
ओर सावन से विष्णु जी का योग निंद्रा में सो जाना और श्री गुरु पूर्णिमा पर गुरु दीक्षा लेकर आध्यात्मिक साधना की ओर अग्रसर होना, ओर चतुर्थ मास में तपोबल बढ़ाना ओर तभी से सभी मांगलिक विवाह आदि संसारी कार्यो को निषेध करना आदि यही ज्ञान देता है कि,ये सावन से लेकर कार्तिक माह तक केवल आध्यात्मिक बल व्रद्धि करने का विधान का समय है,जिसका उपयोग करें।
विष्णु जी का योग निंद्रा में सो जाने का अर्थ है,विष्णु जी का अर्थ है,विश्व के अणु अणु में व्याप्त द्धेत यानी दो या नेगेटिव ओर पोजेटिव शक्ति,आकर्षण ओर विकर्षण या ऋण ओर धन या इंगला पिंगला आदि की जो परस्पर घर्षण या रमण की क्रिया है,उसका भौतिक पक्ष यानी क्रिया ओर प्रतिक्रिया में एक बाहरी कार्य पलटकर अब आंतरिक होकर विश्व मे कार्यरत है।यो मनुष्य को भी अंड सो ब्रह्मांड यानी जो मनुष्य में है,वही विश्व मे है और जो ब्रह्मांड में हो रहा है,वही मनुष्य के शरीर रूपी ब्राह्मण में घटित हो रहा है।यो इन चार महीनों में मनुष्य को अपना आध्यात्मिक बल बढ़ाना चाहिए।जैसे-मनुष्य के चार कर्म व धर्म बल है-अर्थ यानी ब्रह्मचर्य बल शिक्षाकाल जो चैत्र महीने में आता है और काम यानी ग्रहस्थ बल जो आषाढ़ के महीने में आता है और धर्म यानी आध्यात्मिक बल जो सावन से कार्तिक में आता है।
यो विष्णु जी यानी क्रिया शक्ति का अंतर्मुखी ध्यानस्थ होकर योगाभ्यास यानी योग निंद्रा समाधि में जाकर अपनी अष्ट चक्रों को जाग्रत करके या इन अष्ट सर्पों को शुद्ध करके एक बड़ा सर्प यानी एक महाउर्जा जो वक्री चाल से चलते मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक उठकर फिर सहस्त्रार में स्थिर होती है,उस अष्ट चक्रीय की एक मूल चक्रीय कुंडलिनी को जाग्रत करना चाहिए।यही अष्ट दिग्पाल या अष्ट सर्पो की उपासना कहलाती है।जो बिगड़ कर,सर्प पूजा बन गयी है।
ओर ये नाग पंचमी का भी अर्थ मनुष्य शरीर मे जो गुप्त से लेकर प्रत्यक्ष पंच तत्व है,-पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु- आकाश ओर इनके स्थान-मूलाधार-स्वाधिष्ठान-नाभि-ह्रदय-कंठ।
यो ये पंच नाग रूपी पंचतत्व शोधन ही नाग पंचमी का पूजन अर्थ है।जो जीवंत नागों की पूजा बन गयी है।
सावन में पुरुष तत्व की सुप्ति ओर स्त्री का जागरण:-

विष्णु जी के योग निद्रा होने का यहां अर्थ है कि,पुरुषतत्व का सोना यानी बाहरी ओर से निष्क्रिय होना है और विष्णु जी की योगमाया का उनकी सेवा करने का यानी स्त्री तत्व का जागरण या सक्रिय होना अर्थ है।
उधर सावन में शिव विवाह भी यही आध्यात्मिक अर्थ देता है,की पुरुष को इस ऋतु सावन से कार्तिक माह तक पार्वती यानी स्त्री तत्व अपने तपोबल से उसको यानी पुरुष तत्व को उसकी अंतर्चेतना जगत में स्थित होने पर जाग्रत रखती है।
यो इस सावन से कार्तिक तक योग या मन्त्र आदि के साधक को प्रकति की जागृति की बड़ी संगत सहायता मिलती है।यो साधक ऐसे में जितनी भी योगिक,मांत्रिक, यांत्रिक जप तप साधना करता है,उसे प्रकति स्पोर्ट देती हुई सिद्धि की ओर ले जाती है।और साधक की कुंडलिनी बहुत तेजी से जाग्रत होती है।तभी सावन के सोलह सोमवार का व्रत का विधान करना स्त्रियों को,उसमें भी विशेषकर युवती कन्याओं को विशेष रूप से इसी योगविज्ञान के रहस्य के अंतर्गत शिव की उपासना की मनोरथ भरी कथा के साथ साथ बीच मे पड़ने वाली नाग पंचमी की यानी शिव के गले मे पड़े वासुकी सर्प की उपासना को बताया गया है।की इस सावन में प्रकृति में स्त्री तत्व जाग्रत ओर सक्रिय है,यदि कोई भी स्त्री इस समय योग जप ध्यान करेगी,वो शीघ्र कुंडलिनी जाग्रत कर लेगी।
नाग मणि का रहस्य:-
दिव्य सर्प के सिर में मणि होने और उसके प्रकाशीत होने ओर अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होने का अर्थ भी योग रहस्य है कि,नाग मतलब कुंडलिनी जो आज्ञाचक्र पर पहुँचकर अष्ट विकार रहित होकर दिव्य हो जाती है ओर उसके अंतिम छोर पर मनोरथ पूर्ति करने वाली अलौकिक मणि का मतलब है कि,जब कुंडलिनी विशुद्ध शक्ति में बदल जाती है तो,वो मणि बन जाती है।जैसे सभी देवी देवताओं के तीसरी आंख दिखाई जाती है।जो प्रज्ञा ज्ञान आदि का प्रतीक है।जहाँ लौकिक ओर अलौकिक दोनों जगत की सभी शक्तियों के पूर्ण करने की शक्ति होती है।यही मणि है यानी मन की आणि यानी शक्ति यानी अनन्त मन यहां सिमट कर एक मात्र शक्तिमयी हो गया है,सारतत्व बन गया है।यानी विल पावर बन गया है।ओर इसी सम्पूर्ण एकाग्र हुए विल पावर बने मन की सम्पूर्ण एकाग्रता से ही समाधि ओर सम्पूर्णता की प्राप्ति है,जो सहस्त्रार चक्र में समाप्त होती है।
यो जो कुंडलिनी की अंतिम अवस्था को प्राप्त कर लेता है,वो अलौकिक शक्तियों का स्वामी बन सम्पूर्ण त्रिजगत में प्रकाशित हो जाता है।
यही है-सर्प मणि का अर्थ,की जैसे लोक किंवदंती है कि,जितना सर्प सो साल से ऊपर का हो जाता है,उसके दाढ़ी निकल आती है,उसके मस्तक में मणि बन जाती है,यानी जितनी साधना विशुद्ध होकर पूर्ण हो जाती है,वो सिद्धि बन जाती है।समझे।
तो भक्तों,नाग पंचमी ओर अष्ट नागों की उपासना के असल अर्थ में प्रकट इस कुंडलिनी योग विज्ञान के रहस्य के ज्ञान से आपको बहुत हद तक सब समझ में आ गया होगा,कुछ ज्ञान रह गया तो,वो फिर कभी बताऊंगा,तबतक अपनी योग साधना रेहि क्रियायोग के निरन्तर मंथन से अपने शरीर रूपी ब्रह्मांड का शोधन कर पंचतत्वों के नागों सहित अष्ट विकारों का शोघन करते हुए अष्ट सुकारो का जागरण कर,कुंडलिनी नामक महासर्प वासुकी की जागृति करो और आत्मसाक्षातकार करो।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Scroll to Top