दफेदार नोरंग सिंह सिरोही लोहलाडा सैदपुर बुलन्दशहर।
प्रथम विश्व युद्ध मे देश विदेश ओर विशेषकर भारतीय सेना के महानतम सहयोग के उपलक्ष्य में 100 वर्ष पूरे होने पर विश्व भर में 70 देश एकत्र हुए इस युद्ध मे 1करोड से भी अधिक सैन्य लोग मारे गए थे,उन्हें श्रद्धांजलि देने को ये शताब्दी मनाई गई।जिसमें 28 जुलाई 1914 से 1919 तक चले, इस प्रथम विश्व युद्ध को पूरे 104 साल हो चुके होने परप्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना (जिसे कभी-कभी ब्रिटिश भारतीय सेना कहा जाता है) ने प्रथम विश्व युद्ध में यूरोपीय, भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपने अनेक डिविजनों और स्वतंत्र ब्रिगेडों का योगदान दिया था। दस लाख भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं जिनमें से 62,000 सैनिक मारे गए थे और अन्य 67,000 घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर 74,187 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी।
प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रजों की ओर से भारतीय सेना के सैन्य योद्धा शहीदों की स्मृति में विश्वभर में 100 वीं जयंती मनाई गई,उस उपलक्ष्य में उस विश्व युद्ध मे लड़े सैन्य योद्धाओं की गाथाओं को स्मरण किया गया,बहुत से सैन्य योद्धाओं का पता ही नहीं चल पाया,पर जिनके बारे में पता चला,उनके परिजनों को अपने अपने देश मे कराए गए समारोह में ससम्मान बुलाया गया और उनसे उन सैन्य योद्धाओं की जीवन गाथाओं के प्रेरक प्रसंगों को सुना व सराहा गया,जिनमें से एक सैन्य योद्धा रहें है-दफेदार श्री नोरंग सिंह सिरोही जी।जिनके जीवन के प्रेरक प्रसंग यहां संछिप्त में जनप्रेरना को दिया जा रहा है…

श्री दफेदार नोरंग सिंह का जन्म 10 नवम्बर 1885 को गांव लोहलाडा सैदपुर पोस्ट बीबीनगर जिला बुलन्दशहर में हुआ और इनकी मृत्यु 18 सितंबर 1978 को सहज अवस्था मे गांव में ही हुई।
इनके पिता श्री नाहर सिंह कृषक रहे और इनके पांच भाई-1-हरफूल सिंह(सेना में रहे)-2-गैंडा सिंह(सेना में रहे)-3-रिशाल सिंह-4-रूपराम सिंह(सेना में रहे)-5-नोरंग सिंह(सेना में रहे)।इनकी पत्नी श्रीमती मुखत्यारी देवी व इनके चार पुत्रों में से बड़े पुत्र-श्री मलूक सिंह सेना में कर्नल रहे,व दूसरे पुत्र त्रिलोक सिंह व देवेन्द्र सिंह सेना में सूबेदार रहे व राजेन्द्र सिंह कृषि में व उनकी सेवा में रहे।ओर इनकी एक पुत्री लीलावती जो श्री जगदीश्वर सिंह तोमर चंगोली गांव ककोड़ सिकंदराबाद बुलन्दशहर में ब्याही थी,उन्ही के बड़े पुत्र स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी है।
ये दफेदार नोरंग सिंह प्रथम विश्व युद्ध मे अंगेजो की ओर भारतीय सेना में घुड़सवार सेना में दफेदार की पदवी से युद्ध मे लड़े ओर अनेको वर्ष लापता होकर गांव वापस लौटे ठेसब इन्हें मृत समझ चुके थे,अचानक इन्हें देख सब हैरत में रह गए व प्रसन्न हुए।इन्हें सेना में घुड़सवारी करते भाले से खेले जाने खेल में महारथ हासिल थी।और इस प्रथम विश्वयुद्ध में अपने युद्ध पराक्रम से इन्हें अंग्रेज सरकार की ओर से जंगी पुरुषकार सन 1914 में मिला,जिसकी धन राशि इन्हें व इनकी दो पीढ़ियों तक मिलनी तय थी।युद्ध से लौटकर ये गांव में रहे और सेना की भर्ती में ये प्रमुख सहायक थे,अनगिनत क्षेत्रीय व सदृर के लोगो को सेना में भर्ती कराया,इनके वाद केवल इनके भतीजे सेना में कर्नल रहे श्री नवल सिंह जी ने ही बुलन्दशहर में सेना की भर्ती को दोबारा लाकर कराई,इसके बाद फिर कभी बुलन्दशहर सेना का प्रमुख भर्ती केंद्र नहीं रहा, ये सेना से सेवानिर्वत होकर अपने क्षेत्रीय सामाजिक कार्यो में बढ़चढ़ कर अपनी सेवा देते थे।जिसजे सम्बन्ध में अनगिनत लोगो पर इनके उपकार की गाथाएं आज भी क्षेत्र में प्रसिद्ध है।उस काल के चुनावों में खड़े बड़े से बड़े नेता की पार्टी से टिकट मिलते ही सबसे पहले इन्हीं से आशीर्वाद लेने उनके पास आते थे कि,जिसको इनका सबसे पहले आशीर्वाद मिल गया,वही क्षेत्र में अवश्य विजयी होगा।ऐसी थी इनकी क्षेत्रीय लोगो मे सामाजिक प्रतिष्ठा।जिसके सम्बन्ध में कुछ कथाएं इनकी म्रत्यु के समय लोगों द्धारा श्रद्धांजलि स्वरूप प्रेमवश सुनाई गई,जो इस प्रकार से संछिप्त में है कि-
1-दफेदार नोरंग का जीवन बड़ा ही सामाजिक कर्तव्यों से भरा रहा।उन्ही से समय मे उनके निरक्षण में जिला बुलन्दशहर जिले में सेना की भर्ती होती थी,उन्होंने अनगिनत लोग बिन भेदभाव के सेना में प्रेरित करके लगवाए,जो उन्हें अपना जीवक मानकर काका की उपाधि से पुकारते थे।इस सम्बंध में एक उदाहरण है,की ये अपने छोटे बेटे राजेन्द्र सिंह के साथ गुलावठी कस्बे की ओर जा रहे थे,की रास्ते मे पड़ने वाले काली नदी के पुल पर कुछ नवयुवक राहगीरों की लूटने के भाव से बैठे थे,पर जैसे ही इनकी गला ख्खारने की आवाज सुनी ,वे तुरन्त इन्हें पहचान कर वहां से उठकर अपने गांव की ओर चले गए,ये भी उन्ही के पीछे उसी गांव में जा पहुँचे, वहां के बुजुर्ग इन्हें गांव में आता देख,स्वागत करते बोले कि दफेदार आज उस समय यहां कैसे?तब इन्होंने कहा,की भई गांव में जितने भी लड़के 18 साल से ऊपर के है,उन्हें बुलवाओ,ओर तब बुलवाने पर अनेक युवक आ गए,उनमे से वे युवक भी थे,तब इन्होंने कहा कि सब अपने बिस्तर कपड़े लेकर सुबह मेरे साथ शहर चलना,तुम्हे सबको सेना में भर्ती करूँगा,सब खुश,उस समय नोकरी कहां मिलती थी,उस गाँव के बुजुर्ग बोले,भाई दफेदार जी,ये आपके बच्चे है,जैसा आप चाहो,ओर सुबह स्बको लेकर सेना कार्यालय पर लाकर नपत करा दी,वहां जब अंग्रेज अधिकारी ने उनकी जाति पूछी तो,पता लगने पर,उन्होंने कहा,अरे ये तो चोर जाति के है,तब नोरंग से बोले साहब,यहां चोरी का आतंक फैलाने से अच्छा कुछ युद्ध मे देश की सेवा करते करेंगे,वो अच्छा है।ये सुन सबको अंग्रेज अधिकारी ने पास कर दिया और सब सेना में भर्ती हो गए।
2-इनके भाई के पोते श्री वीरेंद्र सिंह सिरोही(सेना में ब्रिगेडियर रहे) ओर पाकिस्तान के सन 71के युद्ध मे लड़े,उन्होंने इनकी सामाजिक महानता भरी गाथा को सुनाते हुए कहा कि,इन्ही की वजह से मेरी उस युद्ध मे जान बची थी कि,एक बार हमारी सैन्य टुकड़ी लड़ते लड़ते गलत दिशा में निकल जाने से पाकिस्तानी सेना के कब्जे में आ गयी,तब उसके एक सैन्य अधिकारी ने इनकी भाषा सुनकर इनसे पूछताछ के बहाने से सबसे अलग ले जाकर पूछा कि,तुम कहां के हो,ये बोले मैं जिला बुलन्दशहर के सैदपुर गांव का हूं,वो सुनकर बोला खास सैदपुर के यहां वहां किसी पास गांव के तो,ये बोले हां, मैं गांव लोहलाडा का निवासी हूं,तब वो कुछ मुस्कराता बोला कि,क्या तुम नोरंग सिंह सिरोही काका को जानते हो?ये सुन ये बड़े ही हैरत में रह गए कि,ये क्या,ये कैसे उन्हें जानता है?तब इनकी प्रश्नवाचक दृष्टि देख वो बोला कि,भई मैं वहीं परतापुर गांव का रहने वाला था,जो तुम्हारे गांव लोहलाडे के पास है,हम देश के बंटवारे के चलते हमारा परिवार यहाँ पाकिस्तान में बस गया।और नोरंग सिंह तुम्हारे क्या लगते है?ये बोले मेरे दादा है।तब वो बोला कि,उन्होंने ही देश के गृहयुद्ध में हिंदुओ द्धारा हमारे गांव और हमले करके सबको मारने की योजना के सुनते ही अपने घोड़े पर सवार होकर भाला लेकर पहरा देते हुए सबको सूचना दे चेतावनी दी थी,की अनावश्यक लड़ाई की जरूरत नहीं,हम सब आसपास के गांव के लोग पीढ़ियों से परस्पर अच्छे बुरे समय मे बिन जातिपाति भेद के सहयोग देते रहते आये है,ओर जो ऐसा करेगा,वो मुझे लड़ाई करके ही आगे बढ़ सकता है,ये सुन किसी ने भी ऐसा करने का साहस नहीं किया,सब क्षेत्र निवासी उनकी बड़ी ही इज्जत करते थे।यो हम बच गए,ओर अब तुम उनके पोते हो,तो मेरा उन्हीं के प्रति सम्मान है कि,मैं तुम्हें दिखावटी फायरिंग करूँगा,तुम मरने का नाटक करते चींख मारकर गिर जाना और उस दिशा में तुम्हारी सेना है,वहां चले जाना,ये कह उसने वैसा ही नाटक किया और ये गोलियों की आवाज के साथ गिर गए।और उन सबके चले जाने के बाद ये बताई दिशा में अपनी सेना में पहुँचे।ओर धन्यवाद दिया,ऐसे परोपकारी अपने दादा जी नोरंग सिंह को,व उन्हें भी ये किस्सा आकर बताया था।वे सुनकर बोले कि,सदा जो अच्छा बने वो जरूर करना चाहिए।
3-एक बार इनके खेतो के पास के ओर गाँव को आने वाले रास्ते के पास के मुस्लिम आबादी वाले गांव परतापुर में एक सिद्ध ओर बहुत भविष्य देखने की उनमे प्रचंड शक्ति थी,उन ब्राह्मण प. राधेश्याम जी रहते थे,उन्होंने इनके ऊपर चल रहे सामाजिक पंचायत में जन न्यायिक बात को लेकर हुए बड़े विवाद के मुकदमे को लेकर इनसे अपना हाथ मे रेखाओं से बने एक मन्दिर की आकृति को दिखाते हुए कहा कि,भई नोरंग सिंह मेरे हाथ मे मन्दिर बना है और ये मन्दिर तुम अपने पैसे से बिन चंदा लिए बनवाओगे,तो तुम विजयी होंगे,जबकि इनकी अपने मुकदमे के सम्बन्ध में ऐसी कोई मनोकामना पूर्ति वाली इच्छा नहीं थी,फिर भी बोले ,ठीक है-पण्डित जी।और अपनी पेंशन व अपने बड़े लड़के कर्नल मलूक सिंह की तनख्वा से शिव जी का मंदिर बनवाया,जो वहां के मुस्लिमों ने ईंटे ढोकर कर खुद अपनी ओर से सेवा देकर बनवाने में सहायता की,ओर ये मन्दिर आज भी वहां बड़े भव्य रूप में एक सोसायटी के माध्यम से चलता है।
4-एक बार इनके द्धारा सामाजिक न्यायिक पंचायत में बुलाये जाने पर,वहां सत्य बात के पक्षधर होने पर हुए जन संघर्ष में इनके सिर में आई चोट से वापस गांव लौटते में इनके अचानक घोड़ी से मूर्छित होकर गिर जाने पर,वहां पास के खेत मे काम कर रही एक ब्राह्मणी ने इन्हें वहां से खींचकर छाया में लिटा कर पानी पिलाया ओर इनके घर सूचना दी,इस बात से प्रसन्न होकर इन्होंने अपनी पेंशन में से आधी पेंशन उस वर्द्धा ब्राह्मणी के आजीवन तक नाम कर दी,ओर जब तक वो जीवित रही,उसे बराबर जाती रही,ओर उसी के लड़के को सेना में भर्ती करा दिया,वही ब्राह्मण सेना में नायक सूबेदार बना,उसी ने ये कथा वहां बैठे लोगों को सुनाई थी।
5-अमरसिंह एकग्रिकलचर डिग्री कालिज लखावटी के ये फाउंडर मेम्बर रहे,इन्होंने तब उसके प्रारम्भिक निर्माण में अपनी व अपने परिवार के अधिकारी जनों व सामाजिक सदृर तक के लोगो से धन एकत्र करके अनेक बार बड़ी सहायता की थी।
6-हीरो मेमोरियल सैदपुर इंटर कालिज सैदपुर की स्थापना से लेकर अपनी स्वेच्छा तक उसके आजीवन मैनेजर रहे,ओर आगे चलकर इन्ही के बीच के पुत्र राजेन्द्र सिंह नेता जी ने उसका उच्चतर विकास कराते हुए आजीवन प्रबंधक बने रहे थे।
7-पशुओं के प्रति प्रेम:-
ऐसी घटनाएं तो अनेक है,जिनमे ये दो यहां दी है कि-एक बार इनके बीच के पुत्र राजेन्द्र सिंह खुद बेलो को कोल्हू में जोड़कर हांकते हुए उसके चक्कर लगवाकर गन्ने का रस निकलवा रहे थे,ओर उनके कई बार आगे नहीं बढ़ने पर अपने हाथ मे लिए बेलो को हांकने को बने अंकुश से उन्हें मार रहे थे,की तभी कार्यवश उधर उनके पिता नोरंग सिंह आ गए,उन्होंने बेलों को मारते देख,उन्हें मना किया कि,इन हमारे लिए कमाने वाले जीवों को ऐसा नही मारते है,इन्हें सुस्ता लेने दे,उन्हें इस सुनते नहीं देख,फिर क्या था,अब इन्होंने दो बेलो में से एक की जगहां अपने बेटे को ये कहते जोड़ दिया कि,अब मैं तुझे बताता हूं कि,कैसे ये बेल काम करते है और साथ ही उन्हें उस चमड़े के अंकुश से भी बार बार मारा,ओर कोल्हू के चक्कर लगवाने प्रारम्भ करे,अब ये देख वहां काम कर रहे लोगो की उन्हें तो रोकने के हिम्मत नही हुई,बल्कि वे चुप वहाँ से भागकर पास ही काम कर रहे इनके बड़े भाई को बता आये,ये सुनकर वे गुस्से में इनको जोर बोलते हुए भलाबुरा कहते उधर को आये,अपने बड़े भाई की आवाज सुनकर ये तुरन्त वहाँ से छोड़कर चले गए,इनके बेटे को अंकुश लगने से कई दिन बुखार रहा था।
8-उस समय श्री नोरंग सिंह अपने सिर में लगी अनेक युद्धों में चोटों के कारण अनेक बार आंखों के ऑपरेशन आदि कराने पर भी धीरे धीरे वृद्धावस्था में आंखों से अंधे हो चुके थे।तब वे अपने गांव के घेरे में खाट पर लेटे राम राम जपते रहते थे, ऐसे ही एक बार इनके पोते वीरपाल सिंह सेना से छुट्टी गांव आये और वे दोपहर के बाद घेर में भैसों को चारा डालते हुए,किसी बात को लेकर अपने से ही बुदबुदाते हुए भैसे को डंडा मारने लगे,ये सुनकर इन्होंने अपनी खाट पर लेटे हुए,उन्हें जीवो को मारने को मना किया,तो वे इनकी बात का प्रतिरोध करते कहा की,आप शांत रहो, मैं काम कर रहा हूं,बस क्या था,इस प्रतिरोध से इन्होंने अपने पास दीवाल पर टँगा अपना भाला उतारा, ओर उनसे पुनः कुछ कहा,ताकि उनकी आवाज से उपस्थिति का पता चल जाये और जैसे ही वीरपाल सिंह काम करते हुए कुछ बोले कि,उसी आवाज की दिशा में अपना भाला जोर से फेंक कर मारा,यदि उस दिशा में वीरपाल सिंह से पहले बुग्गी नही खड़ी होती तो,वे तो तभी भाले की चोट से घायल या मारे ही जाते।वो भाला बीच मे जा धंसा था,सब कांप गए,पर किसी न भी इस घटना पर उनसे कोई भी शब्द तक नही कहा।कि ऐसा क्यों किया?क्योकि सब जानते थे की ये जीव हो या मनुष्य किसी को भी अनावश्यक कष्ट देने वाले के प्रति बड़ा ही कठोर दंडात्मक न्याय करते थे।
राम नाम के उपासक व संतो के सेवक:-ये सदा लेते बैठे राम राम जपते रहते थे और कबीर का दोहा गुनगुनाते थे कि,
न मन मरा न माया मरी,
मर मर गया शरीर,
मन की तृष्णा ना मरी,
कह गए दास कबीर।।
ओर एक
अरे अर्जुन रथ तू हांक ले,
तेरी भली करें भगवान।।
इन्हें प्रथम विश्व युद्ध मे भारतीय सेना की ओर से विशेष साहस के प्रदर्शन करने पर ब्रिटिश जंगी पुरुषकार सन 1914 में प्राप्त हुआ,जिसमें इनकी तीन पीढ़ियों तक उसकी धनराशि मिलेगी,पर इनके स्वर्गवास 18-9-1978 के बाद अन्य किसी ने उस पुरुषकार धनराशि को लेने के सम्बन्ध में कोई पहल नहीं कि,यो वो आगे चलकर बैंक खाते में जमा होकर वापस सरकार को ही चली गयी।
ओर आज इनकी समाधि इनके खेतो पर बनी हुई,लोगो को प्रेरणा देती है,इनके स्वजनों व परिजनों आदि द्धारा ज्येष्ठ दशहरे पर वहां गुरु ग्रँथ साहब का पाठ या हवन व प्रसाद बांटा जाता है,।ऐसे भारतीय महान सैन्य नायक को हमारा श्रद्धपूर्वक नमन।
लेखन में सहयोगी इनके पौत्र:-
श्री नेपाल सिंह सिरोही(उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी है)
(मेरे महान नाना जी)
लेखक:-
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
सत्य ॐ सिद्धाश्रम बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश।
