तलाक के केसों में न्यायिक फैसले में देरी होने पर वादी पुरुषों को उसके सेक्सुलिटी उसकी काम भाव के निस्तारण के लिए भी कोई कानूनी रियायत होनी चाहिए,इस सम्बंध में मनुष्यता के साथ साथ सामाजिकता को ध्यान में रखकर ये न्यायिक याचिका पर न्यायपालिका को अपना। उचित न्यायिक कारवाही करने की मांग है ओर कर रहें,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…

अधिकतर पुरुष और स्त्री के परस्पर तलाक विवादों के चलते उनके गृहस्थी जीवन के सबसे नाजुक पहलू पर बड़ा भारी असर पड़ता है,जिसमे है,उनका इस मुकदमे के चलते हुए अधिक समय बीतने पर आया उनका व्यक्तिगत शारारिक सम्बन्ध पर स्वतंत्र रूप से प्रतिबंध होना,विशेषकर पुरुष के जनांग जनेन्द्रिय पर उसके काम भाव की पूर्ति के न होने से आई शारारिक कमजोरी,जिसके चलते वो इस तलाक के विवाद के अपने या प्रतिभागी के पक्ष में आये आगामी न्यायिक निर्णय के उपरांत अपनाए गृहस्थी जीवन मे अन्य स्त्री रूपी पत्नी से शारारिक सम्बन्धों में असक्षमता होनी से आये नवीन गृहस्थी जीवन मे विवाद या अलगाववाद की समस्या का निदान कैसे हो?
तलाक के कैसे के चलते पुरुष वादी न तो सामाजिकता में चरित्र के कारण किसी वेश्यालय भी नहीं जा सकता है, न लिविंग रिलेशनशिप में रह सकता है और न किसी नवीन स्त्री से सामाजिकता के अंतर्गत विवाहेतर सम्बन्ध यानी शारारिक सम्बन्ध नही बना रख सकता है।
जबकि प्रतिभागी स्त्री अपने इस तलाक के केस में न्यायिक निर्णय आने तक प्रकार्तिक कारणो व प्रकर्ति सामर्थ्य के चलते (उसकी जनेन्द्रिय योनि की बनावट के चलते) बिना पुरुष के शारारिक सम्बन्धों के सहजता से जीवन जी सकती है,क्योकि उसे शारारिक सम्बन्ध में अपने साथ काम सम्बन्ध बनवाना है,न कि बनाना है,यो उस पर इस तत्काल के तलाक के मुकदमे के निर्णायक अंत तक व नवीन विवाह के होने तक कोई भी शारारिक रूप से पुरुष की अपेक्षा विशेष हानि की संभावना नहीं है,,यो इस प्रकार के विवादों में सर्वाधिक शारारिक सम्बन्धों के विषय मे जनेन्द्रिय हानि पुरुष पक्ष को ही होती है,यो न्यायालय से अनुरोध है,की वो पुरुष के इस शारारिक पक्ष को ध्यान में रखकर कोई चरित्रक व सामाजिकता भरा निर्णय दें।
सामाजिक संज्ञान से प्रार्थी:-
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
सत्य ॐ सिद्धाश्रम शनि मंदिर कोर्ट रोड बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश भारत।