गोमुखासन की सही विधि से स्वास्थ्यलाभ कैसे ले,,
बता रहें है,महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,,
गोमुखासन का अर्थ है,गाय जैसे मुखाकृति मुद्रा में स्थिर होना।
चूंकि गाय गायत्री गंगा ये सदा शुभ लाभ देने वाले है,यो गाय माता की मुद्रा से हमें बहुत लाभ होते है।
गोमुखासन Gomukhasana
की सही विधि:-
अपने स्वर की जांच करके जिस स्वर से सांस चल रही हो उसी साइड के पैर को मोड़कर ये आसन प्रारम्भ करना होता है,यो अपने योग मेट पर दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें।मानो बाई साइड से स्वर चल रहा है तो,आप अपने बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं नितम्ब (buttocks) के पास रखें।
दायें पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर इस प्रकार रखें की दोनों घुटने लगभग एक दूसरे के ऊपर हो जाएँ।
दायें हाथ को ऊपर उठाकर पीठ की ओर मुडिए तथा बाएं हाथ को पीठ के पीछे नीचे से लाकर दायें हाथ को पकडिये ओर आपकी गर्दन और कमर सीधी रहे।
ध्यान रहे कि,जिस ओ़र का पैर ऊपर रखा जाए उसी ओ़र का (दाए अथवा बाएं) हाथ ऊपर रखना है।
अब इसी मुद्रा में प्रारम्भ में 15 सेकेंड तक रहे आगे एक मिनट तक बढ़ाये ओर गहरे सांस लेकर धीरे से छोड़ते रहे और इसके पश्चात दूसरी ओ़र से इसी प्रकार करें। दोनों ओर से मिलाकर केवल दो बार ही ये आसन करें।




गोमुखासन के लाभ क्या है:-
1-इस आसन से अंडकोष वृद्धि एवं आंत्र वृद्धि में विशेष लाभ होता है।
2-पुरुष या स्त्री के धातुरोग, बहुमूत्र एवं स्त्री के लगभग सभी रोगों में लाभकारी है।
3-यकृत, गुर्दे एवं वक्ष स्थल को बल देता है। संधिवात, गाठिया को दूर करता है।
इस आसन में मूलबंध अवश्य लगाएं और प्रारम्भ में बस गहरे सांस लेने और धीरे से छोड़ने का अभ्यास करते में सांस पर ध्यान करते रहे और गुरु या इष्ट मन्त्र का कम से कम 15 बार जप अवश्य करते रहे।आगे चलकर त्रिबन्ध के साथ कुम्भक का अभ्यास बढा सकते है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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