गुरु-मंत्र-जप-रहस्य-सिद्धि क्या है,इस विषय को स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी ने अपने सत्यास्मि धर्म ग्रंथ में गद्य और पद्य में वर्णित किया है,जिसका एक कवित्त्व अंश यहाँ भक्तों के ज्ञान वर्धन के लिए दिया है…
मैं कौन हूँ,मैं कौन हूँ
रटने से नहीं होता ज्ञान।
इसी अर्थ संग ध्याना होता
स्थूल स्वरूप में निज भान।।
गुरु बनाना एक पक्ष है
उसे अपने में ले ध्याना होगा।
मैं नहीं केवल गुरु है
इसी भाव को पाना होगा।।
अन्न शरीर से प्राण शरीर तक
और प्राण शरीर से लेकर मन।
अखंड जाप गुरु मंत्र नित करके
स्वयं पाओगे आत्म लक्ष्य सघन।।
सच्च में विद्या चाहो पाना
तो एक ही मंत्र जपो अखंड।
और गुरु में तुम और तुम में गुरु
दो अंड एक कर मिले आत्म ब्रह्मांड।।
और प्रेम जिसे भी अधिक हो करते
उसे संग ले करना ध्यान।
दोनों एक ध्यान बनाओ
तब पाओगे प्रेम आलोकिक विज्ञानं।।
जप सिद्धि जप में छिपी
जप मध्यम स्वर में ध्यान।
स्पष्ट श्रवण कर श्वास संग
जप बने ध्वनिमय ध्यान।।
जप एक स्वर चलता रहे
इष्ट गुरु मंत्र जप नाँद।
मैं मंत्र अर्थ भाव इष्ट
जप कंठ ह्रदय नाभि और नाँद।।
जप करो एक मंत्र कर धारण
जपो रात दिन सिद्ध निवारण।
जपते रहो स्वप्न हो दर्शन
जपते जपते प्रत्यक्ष सिद्ध कारण।।
जप अर्थ है इच्छा दोहराना
जप अर्थ है क्रिया मंथन।
जप अर्थ है मननमय चिंतन
जप अर्थ है ज्ञान अभिनंदन।।
जप ही जीवन भरता रंग
जप जी जीवन आत्म आनन्द।
जप है तो सर्व इच्छा पूरी
जप तग्ये स्वयं बन परमानन्द।।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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