गुरु के अर्थ और ज्ञान महिमा के विषय मे अपने ग्रँथ “सत्संग” में स्वरचित दोहों से शिष्यों को उपदेश देते कहते है,स्वामी सत्यसाहिब जी…

गुरु के अर्थ और ज्ञान महिमा के विषय मे अपने ग्रँथ “सत्संग” में स्वरचित दोहों से शिष्यों को उपदेश देते कहते है,स्वामी सत्यसाहिब जी…

ग’ज्ञेय अज्ञेय सदैव गुरु
उ’मंग बन अभंग देआत्मज्ञान।
र’मित प्रेम भोग योग परे
उ’र्वा से फल सहित गुरु भगवान।।

गुरु जीवंत पर ब्रह्म
गुरु है वेद पुराण।
गुरु सत्य जीवंत व्रत
गुरु जीवंत निर्वाण।।

सत्य’रूप में गुरु पुरुष
ॐ’रूप में गुरु माता।
सिद्धायै’रूप में सृष्टि गुरु
नमः’प्रेम रूप गुरु शिष्य नाता

गुरु आसन है तीर्थ सब
गुरु कमण्डल सारे संगम।
गुरु त्रिवेणी नदी सप्त
गुरु योग परम् विहंगम।।

गुरु पद चौसठ योगनी
गुरु पद भैरव बावन।
गुरु त्रिपुंड त्रिदेव बसे
वेद पुराण गुरु पद्म गावन।

श्री गणेश भैरो हनुमान
बसे गुरु मूलाधार।
स्वाधीश्ठां बसे अछरब्रह्म’मैं’
गुरु नाभि सृष्टि आधार।।

गुरु ह्रदय सब ईष्ट बसे
गुरु कंठ वेद गायत्री।
गले माला सब पाश फास
गुरु मुक्ति दे नव रात्रि।।

आज्ञाचक्र गुरु देव के
सृष्टि उदय और हो अस्त।
त्रिकाल बने एक क्षण यहाँ
लय प्रलय हो जब गुरु मस्त।

सहस्रारचक्र गुरु शिष्य एक
शिष्य गुरु बन शेष।
सर्वत्र एकोहम् गुरु
गुरु प्रेम रूप अशेष।।

गुरु वाक्य मंत्र है
गुरु शरीर है यंत्र।
गुरु मिलन ही तंत्र सब
और मुर्ख जाये अन्यंत्र।।

गुरु अंगुली पंचदेव बसे
गुरु हाथ मध्य स्वस्तिक।
गुरु मणिबंध त्रिदेवी सेवी
जो जाने वही आस्तिक।।

गुरु मुट्ठी बसे संकल्प बल
गुरु खुले हाथ वरदान।
गुरु माला बसे सृष्टि चक्र
गुरु हाथ शिष्य कल्याण।

सूर्य चंद्र गुरु नेत्र बसे
गुरु केश बसे सब व्योम।
गुरु मुखमंडल प्रेम बसे
गुरु मुख से निकले सोम।

तीन लोक चौदह भुवन
मिले गुरु नेत्र कटाक्ष।
गुरु कृपा बसे भोग योग
गुरु कथन सत्य का साक्ष्य।

गुरु शरणं जो भी आवे
गुरु कृपा है कर्तव्य।
काल सकाल अकाल परे
गुरु नाम पूर्ण मन्तव्य।।

केश मूंछ दाढ़ीवान हो
या गुरु हो मुंडित सर।
ब्रह्म ग्रहस्थ संयासी हो
बाल युव व्रद्ध या अजर।।

गुरु काल अकाल परे पद
आदि अनादि गुरु आयु।
ज्ञान गुरु प्रकाश ईश
ज्यो जीवन हर प्राणी वायु।

वैरागी भस्मी या सहज
या वस्त्र लँगोट दिगम्बर।
शून्य हो या ज्ञानवत
गुरु नक्षत्र भरा है अम्बर।।

पंथ से ले अपंथ तक
सभी गुरुमय राह।
मुक्त संग बंधन गुरु
गुरु से परे गुरु अथाह।।

ईष्ट-देव के सब गुरु
गुरु का ना कोई गुरु।
गुरु ही अंतिम पद परम्
गुरु स्वयं बन गुरु तरु।।

भोग शिष्य के गुरु कर ग्रहण
अपमान ग्रहण कर करे निवारण।
जग देखे केवल गुरु कर्मा
शिष्य पाप शाप यो गुरु तारण।।

गुरु से पंगा
जग में नंगा।
विद्या खोये
मोक्ष संग गंगा।।

गुरु बनाने मैं गया
वहाँ खड़े गुरु गोविँद।
कौन चुनू किसी एक को
गुरु में समा गये गोविंद।।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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