कहाँ है स्त्री शक्ति का जागरण दुर्गासप्तशती में? 👉दुर्गासप्तशती में आदि से अंत तक केवल पुरुष शक्ति शेष है

कहाँ है स्त्री शक्ति का जागरण दुर्गासप्तशती में? 👉दुर्गासप्तशती में आदि से अंत तक केवल पुरुष शक्ति शेष है

👉प्रारम्भ-1-लेखक-मार्कंडेय पुरुष है।
2-वक्ता-ब्रह्मा,शंकर जी पुरुष है
3-श्रोता-महर्षि मेधा,राजा सुरत,वैश्य,समाधि पुरुष है और यहाँ स्त्री पार्वती भी केवल श्रोता है-श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्त्रोत्रम् में शंकर जी पार्वती से देवी के108 नामो को कहते है।जबकि इस ग्रन्थ में स्त्री को या पार्वती को स्वयं वक्ता होना चाहिए था जो की कहीँ भी नही है।
4-युद्ध के कारक-देवता+दैत्य पुरुष है।
5-शक्ति के आवाहक पुरुष देवता है।
👉देव पुरुषो की एकत्र त्रिगुण शक्ति इस प्रकार से है-ब्रह्मा पुरुष के अंदर के ×,y में से एक × स्त्री शक्ति है- ऐं-सरस्वती(वाणी) यानि आत्म तत्व (देव पुरुषो की इच्छा शक्ति है)ॐ ऐं आत्मतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा। व् विष्णु पुरुष के अंदर के ×,y में से एक × स्त्री शक्ति है-ह्रीं-लछमी(माया) यानि विद्या तत्व(देव पुरुषो की कर्म क्रिया शक्ति है)ॐ ह्रीं विद्यातत्त्व शोधयामि नमः स्वाहा। व् शिव पुरुष के अंदर के ×,y में से एक स्त्री शक्ति है-क्लीं-काली(ब्रह्मसू -काम) यानि शिवतत्व(देव पुरुषो की ज्ञान या अंतिम परिणाम शक्ति है)ॐ क्लीं शिवतत्त्व शोधयामि नमः स्वाहा। है अर्थात ये तीनो कथित स्त्री रूपी पुरुष त्रितत्व है यो अंतिम -ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि स्वाहा।यो ये तीनों दिखाई दे रही त्रिदेवी सरस्वती+लछमी+काली भी पुरुष ब्रह्मा+विष्णु+शिव का ही अर्द्ध भाग है जो देखने में स्त्री होते हुए भी ये त्रिदेव पुरुष ही है जैसे पुरुष के बीज वीर्य का प्रत्यछ चित्रण बनाया जाये तो एक तो अर्द्धनारीश्वर का चित्र बनेगा आधी स्त्री+आधा पुरुष अर्थात पुरुष ही है और एक सम्पूर्ण चित्र बनेगा एक पूरी स्त्री व् एक पूरा पुरुष ऐसा चित्र बनने पर भी जो कुछ चित्र बनेगा वो पुरुष का ही एक चित्र बना यही है-ब्रह्मा,विष्णु,शिव के अंदर की स्त्री सरस्वती,लछमी,शक्ति जो पुरुष ही का एक भाग होते हुए एक मात्र पुरुष है।तब बताओ कहाँ है स्त्री?
👉ये जितने शापोद्धार,अर्गला,कीलकं,कवच आदि पाठ है ये सारे के सारे पुरुष के अंदर से कैसे स्त्री रूपी पुरुषत्व को बाहर लेकर प्रकट किया जाये ये ज्ञान रूपी तंत्र यानि क्रमबद्ध विज्ञानं है जिसका यथाविधि पालन करने से पुरुष अपने अंदर छिपी शक्ति को प्रकर्ति शक्ति के साथ एकाकार करके महाशक्ति में परिवर्तित कर अपना सर्व मनोरथ पूर्ण कर सकता है।
👉सारे ऋषि पुरुष है-ब्रह्माऋषि-विष्णुऋषि,शिवऋषि।भारद्धाजो ऋषिः आदि।
👉सारे देवता नाम भी यो लिखे है-श्री महासरस्वती देवता,श्री महालछमि देवता,श्री महाकाली देवता।जो की ये त्रिदेवी स्त्री शक्ति होती तो इनके आगे देवी लिखा होना चाहिए था।
👉पुरुषो देवो द्धारा दी गयी 9 शक्तियॉ ही पुरुष के अंदर की कुण्डलिनी चक्र के 9 चक्रों में छिपी 9 (×,×,×(3×)की3×3=9 त्रिगुणात्मक शक्ति 9 नवरात्री कहलाती है ये सब पुरुष शरीर में स्थित 9 चक्रों के अंदर जो स्त्री+पुरुष (×,y)है वहाँ से जो स्त्री शक्ति × का उत्थान या उदय किया जाता है ये उसके 9 नाम है जैसे-1-शैलपुत्री अर्थात जो मनुष्य शरीर है उसमे से अर्द्ध भागांग प्रतीक स्वरूप हिमालय की पुत्री ही शरीर की पुत्री नाम है -2-ब्रह्मचारिणी अर्थात जो ब्रह्म ज्ञान यानि अपने अंदर छिपे वीर्य को शुद्धिकरण क्रिया का आचरण या विधि जान अपनी अर्द्ध शक्ति का उपयोग करे वो अर्द्ध स्त्री शक्ति × ब्रह्मचारणी नाम है-3-चंद्रघन्टा अर्थात मन के दो भाग-एक शाश्वत ज्ञान व् दूसरा भाग उस प्राप्त शाश्वत ज्ञान को कर्म रूपी भोग व् व्यवहार रूपी योग के कोशल से अपनी ही अर्द्ध शक्ति × यानि चन्दिका का उपयोग करने वाला हो-4-कूष्माण्डा अर्थात कुत्सित विचारो की ऊष्मा या ऊर्जा का शोधन मन्थन करने की कला को जानने वाला अपनी अर्द्ध शक्ति × यानि कूष्माण्डा उदर यानि नाभि चक्र को जाग्रत करने वाला हो-5-स्कन्दमाता अर्थात भावनाओ की जनक या जननी छेत्र ह्रदय चक्र में छिपी अपनी अर्द्ध शक्ति × सहयोगिनी शक्ति स्कन्ध को उजागर करने वाला हो-6-कात्यायनी अर्थात अपने कंठ चक्र की अर्द्ध शक्ति × को जाग्रत करने वाला हो -7-कालरात्रि अर्थात आज्ञाचक्र जहाँ से काल या छण की उतपत्ति हुयी है जहाँ द्धैत स्त्री +पुरुष यानि ×,y या -,+ का एकीकरण होता है उस चक्र में छिपी अपनी अर्द्ध शक्ति × को जाग्रत करने वाला काल की रात्रि को मिटने वाला कालरात्रि की सिद्धि प्राप्त करता है-8-महागौरी अर्थात जिसने इन सब चक्रों के भेदन के उपरांत दो गुण तम्+रज को एक करके सत् गुण यानि गौर वर्ण को अपने अधिकार में कर लिया है वो साधक महागौरी की सिद्धि प्राप्त करता है-9-सिद्धिदात्री अर्थात अपने अंदर के द्धैत भाव को नष्ट करके केवल एक्त्त्व भाव यानि अद्धैत अवस्था को प्राप्त कर लिया हो वो अपनी सम्पूर्ण शक्ति सिद्धिदात्री की सिद्धि को प्राप्त करता है।अब यहाँ केवल पुरुष ही अपनी अर्द्ध शक्ति यानि × को अपने अंदर से प्रकट करता हुआ अपनी कुण्डलिनी जागरण करता हुआ सम्पूर्णता को प्राप्त हो रहा है जिसका वर्णन दुर्गासप्तशती नाम है यानि दुर्ग माने मनुष्य शरीर और सप्त शती माने अपनी सप्त अर्द्ध शक्तियाँ जो उसके सात चक्रो में छिपी है।यहाँ कहाँ है स्त्री शक्ति यानि ×,× का जागरण की विधि ?
👉मूल मंत्र- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।का सम्पूर्ण भावार्थ भी यो है की वाणी(ऐं)माया(ह्रीं)ब्रह्मसू-काम(क्लीं इसके आगे छठा व्यञ्जन अर्थात च वही वक्त्र अर्थात आकार से युक्त (चा), सूर्य (म),’अवाम श्रोत’–दछिण कर्ण (उ), और बिंदू अर्थात अनुस्वार से युक्त (मुं), टकार से तीसरा ड, वही नारायण अर्थात’आ’ से मिश्र (डा), वायु (य), वही अधर अर्थात ‘ऐ’ से युक्त (यै) और ‘विच्चे’ यह निवार्ण मन्त्र उपासको को आनन्द और ब्रह्मसायुज्य देने वाला है।।मन्त्रार्थ हुआ-हे चित्स्वरूपणि महासरस्वती ! हे सद्रूपिणी महालछमी ! हे महाकाली ! ब्रह्मविद्या पाने के लिए हम सब समय तुम्हारा ध्यान करते है । हे महाकाली-महासरस्वती-महालच्छमी स्वरूपिणी चण्डिके ! तुम्हे नमस्कार है।अविद्यारूप रज्जु की द्रढ़ ग्रन्थि को खोल मुझे मुक्त करो।अब इसमें कहाँ है स्त्री शक्ति जागरण?यहाँ केवल पुरुषो द्धारा केवल अपनी ही अर्द्ध स्त्री रूपी × या + रूपी पुरुष शक्ति का जागरण रूपी मनोरथ है।
6-शक्ति कहाँ से आयी?-पुरुष देवताओ के तप के तेज से आयी जो पुरुष के अंदर की ही (+,-)में से एक(+)यानि पुरुष के अंदर की स्त्री शक्ति है जो पुरुष ही है यो सभी पुरुष देवताओ के अंदर का तेज बल जो स्त्री है उस स्त्री का एकीकरण का नाम है दुर्गा।जो देखने में स्त्री है पर है वो पौरुष शक्ति बल यानि पुरुष है।
7-इस पुरुष देवताओ की अर्द्ध शक्ति का एकीकरण बल मिलकर ही दैत्य पुरुष को अपने स्त्री भ्रम में लेकर विनाश किया।
8-युद्ध के उपरांत पुरुष देवताओ को ही वरदान दिया’एकादशोअध्याय11वे अध्याय के अंतिम श्लोक-54-इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।। व्55में-तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंछयम्।ॐ।। अर्थात्-इस प्रकार जब जब संसार में दानवी बाधा उपस्थित होंगी,तब तब अवतार लेकर मैं शत्रुओं का संहार करूँगी।।यहाँ ये स्त्री रूपी पुरुष शक्ति अपने पुरुष देवो को ही अभय वरदान दे रही है ना की किसी स्त्री को लेकर कोई शब्द कहा है।
9-और 12वे अध्याय के 31वे श्लोक में देवी देवताओ को मनचाहे वरदान देकर ‘वहीँ’ अन्तर्धान हो गयी।अर्थात जिस पुरुष देवो के अंदर से वो प्रकट हुयी थी उन्ही पुरुष देवो में समा गयी।अब पुरुष देव जो केवल(-,या-y)थे वे पुनः अपना(×)पाकर (-,+ या ×,y)पहले जैसे सम्पूर्ण पुरुष बन गए और दैत्यो से निर्भय होकर समस्त सुखो का आनन्द लेने लगे।।
10-अब आप ही बताये इस दुर्गासप्तशती में स्त्री कहाँ है?और कैसे स्त्री अपनी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत कर सकती है? किसी भी विधुत बल्ब को जलाने के लिए +,- की जरूरत होती है जो की स्त्री में नही है वहाँ स्त्री में केवल दो एक्स×,× होते है तब कैसे जगेगी स्त्री की कुण्डलिनी?यही सम्पूर्ण ज्ञान जो की कथित स्त्री शक्ति ग्रन्थ दुर्गासप्तशती में नही दिया है वह केवल और केवल सम्पूर्ण स्त्री शक्ति के जागरण हेतु शीघ्र प्रकाशित-सत्यास्मि धर्म ग्रन्थ में विस्तार से दिया गया है।जिसे आप शीघ्र सत्य ॐ सिद्धाश्रम से माँगकर पा सकते है।जय सत्य साहिब जी।जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः।समस्त सत्यास्मि परिवार।इस महाज्ञान को अधिक से अधिक शेयर करके ज्ञान पूण्य लाभ उठाये।

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जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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