एक लक्ष्य यानी जीवन मिशन
बता रहें है,किसी के जीवन में दिखाई दे रही वर्तमान की बुलंदियां,उसके अनगिनत जन्मों की तपस्या को एक ही लक्ष्य बनाकर रखते हुए अंत मे पाता है,यो इस सबको क्रमबद्ध रूप से अपनी कविता के माध्यम से स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
जीवन स्वयं एक लक्ष्य है
जो पिछले जन्मों का है चिंतन।
उसे बदलते कर्म पथ बना
छोटे से बड़े रूप कर मंथन।।
ऐसा क्या करूँ मेरा नाम हो
यही पहली पनपती सोच।
आगे बढ़ता उस राह पर
जिस पर होती इस सोच की पहुँच।।
उसी पहुँच की प्राप्ति
करता ले हर सम्भव सहयोग।
कभी हारता बाजी जीतकर
कभी लक्ष्य से होता योग वियोग।।
कोई भी लंबा पथ नहीं पकड़ता
वो पकड़ता चल जोड़ छोटे बड़े पड़ाव।
थकता कभी देता खुद या दूजे दोष
फिर चल देता हिम्मत की पहन खड़ाव।।
यो अपने जीवन के उसूलों की
करना सीखों कदर।
वही जिंदा रहे तो तुम हो
जिंदा रखों बन अपने सदर।।
यही जन्म दर जन्म चले
बन एक लक्ष्य एक पथ।
तभी पाता किसी एक जन्म में
अपने चरम लक्ष्य संग सत।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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