आज के युग में कैसे व्यक्ति जीते जी नरक चौदस के दर्शन और दंड और उससे बचने के उपाय के विषय में बता रहें हैं स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी..

आज के युग में कैसे व्यक्ति जीते जी नरक चौदस के दर्शन और दंड और उससे बचने के उपाय के विषय में बता रहें हैं स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी..

पहले जमाने में प्रत्येक व्यक्ति अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल स्वर्ग और नरक के रूप में ऊपर के लोक में जाकर शुभ अशुभ पुरुषकार या दंड पाता था।अब ईश्वर ने उसके लिए इसी धरती पर व्यवस्था कर दी-वो है रोग बनाम नरक के चोदह प्रकार के दंड..

1-प्रति वर्ष के तीन माह बुखार जुखाम के रोग रूपी दंड को लेकर कष्ट पाते हुए डॉक्टर के यहाँ बेठकर इंतजार करो और फिर इंजेक्शन आदि के कांटे लगवाकर स्वस्थ सहित आर्थिक दंड भोगो।
2-त्वचा रोग से खुजली से लेकर सनबर्निंग से उत्पन्न खुजेले कष्ट को झेलते दूसरों से उपेक्षा पाने का दंड प्राप्ति।
3-एक्सिडेंट में चोट से लेकर अनेक पीड़ादायक ऑपरेशन का शारारिक विक्षिप्तता, मानिसक असंतुलन और कर्ज रूपी आर्थिक दंश झेलने का दंड प्राप्ति।
4-शुगर के अनेक स्तरों पर दंड पाते हुए पीड़ादायक मृत्यु की प्राप्ति।
5-लगभग सभी भोजन के विषाक्त होकर पुष्टता विहीन और स्वादहीन खाने का दंड प्राप्ति।
6-वायु प्रदूषण से होने वाले सभी बिमारियों को लिए जीने का दंड प्राप्ति।
7-ध्वनि प्रदूषण को झेलते हुए उससे प्राप्त अनिंद्रा,ब्लडप्रेशर और अशांति आदि के रोग दंड की प्राप्ति।
8-आँख कान विकार और अपंगता के कष्ट के दंड की प्राप्ति।
9-जवानी में नपुंसकता और बांझपन के दंड की प्राप्ति।
10-अपने प्रयत्न से पैदा की गयी संतान की इच्छा रखते हुए सन्तानहीनता के दंड की प्राप्ति।
11-दूसरे की संतान को पालकर अंत में उसका भी सुख नहीं पाने के दंड की प्राप्ति।
12-पुरे जीवन संघर्ष करके धन वेभव इकट्ठा करके अंत में बुढ़ापे में वही सबका अंत घोर अपमान के साथ अपनी ही संतान आदि के द्धारा निसहाय होकर पाने के दंड की प्राप्ति।
13-प्रेम और विवाह के सुख का अंत असमय होकर सभी प्रकार की पीड़ादायक विवादों के साथ सम्बन्ध विच्छेद के दंड की प्राप्ति।
14-अंत में इन सब कारणों के दंडों की प्राप्ति के उपरांत अंतिम अवस्था में वेंटिलेटर पर मृत्यु का निरही अवस्था में इंतजार का दंड प्राप्ति।

नरक चौदस का सहज उपाय:-

यो कभी न छोडो कमी इन
जन सेवा तप धर्म दान।
ये ही बचाये चौदस नरक दंड
दे चार उत्तम कर्म मोक्ष कल्याण।।

यो हे शिष्य-तू सदा इस मिले सुंदर जीवन में अधिक से अधिक बिन कहे जन परिवार की सेवा कर और बिन कहे अधिक से अधिक गुरु इष्ट मंत्र का नियमित जप यज्ञ कर तथा अधिक से अधिक धर्म के कार्यों में बिन मांगे और बिन लालच के समय समय पर खूब दान कर।तो तुझे इस सब चौदह नरकों से छुटकारा मिलकर अर्थ धर्म काम और मोक्ष की सहज प्राप्ति का इसी जीवित संसार में स्वर्ग सुख मिलेगा।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission. org

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