अश्व आसन की सही विधि से पाएं घोड़े की तरहां स्फूर्ति ओर स्टेमिना से भरे स्वस्थ शरीर और काम शक्ति की व्रद्धि,,,
बता रहें है,महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,
अश्व आसन या अश्व संचालन योग मुद्रा दो शब्दों से मिलकर बना है।अश्व का अर्थ होता है घोडडा और संचालन का अर्थ है चलाना।इस मुद्रा में जिस प्रकार घोड़े को दौड़ाया जाता है। उस मुद्रा में शरीर को रखकर योग का अभ्यास किया जाता है।इस अश्व योग मुद्रा का अभ्यास कैसे किया जाना चाहिए।यह हमारे लिए किस प्रकार लाभप्रद है इसे बताता हूं कि-






अपने स्वर की जांच करके की कौन से स्वर से सांस अधिक चल रहा है,ओर योग मेट पर सीधे खड़े हो जाये फिर अपने घुटनों को कुछ मोड़ते हुए अपने सामने यानी आगे की ओर दोनों हाथों की हथेलियों से झुक कर जमीन को छुए,अब इस पोजीशन में रहते हुए जो स्वर चल रहा है,मानो दायां स्वर चल रहा है तो,अपने बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाये और बाएं पैर की घुटने से मोड ही अपने दोनों हाथों के बीच में लाएं।
हथेलियो से या जमींन पर बेलेंस बनाती उंगलियों से ज़मीन को दबाएं।धड़ को ऊपर उठाएं।अपनी रीढ़ यानी मेरूदंड को सीधा आगे की ओर खींच कर रखें।
सिर और गर्दन को आगे की ओर मेरूदंड की सीध में रखें।छाती को आगे की ओर झुकाकर नहीं रखें।
इस मुद्रा में प्रारम्भ में 10 सेकेंद्र फिर आगे 30 सेकेण्ड से 1 मिनट तक बने रहें ओर धीरे धीरे गहरे सांस लेते मे मूलबंध लगाये ओर सांस की छोड़ते हुए मूलबंध को ढीला करते रहें।इससे आश्वनी मुद्रा भी सिद्ध होती है और जनेन्द्रिय के रोग कमजोरी आदि स्वस्थ होकर ठीक होती है,मूलाधार चक्र का जागरण होता है।कुम्भक नहीं लगायें।
ठीक ऐसे ही अदल बदल कर दोनों तरफ से केवल दो बार इसे दुहराएं ओर फिर सहज मुद्रा में आ जाये।
अश्व संचालन योग से जंघाओं में स्थित तनाव दूर होता है.
यह मुद्रा मेरूदंड को सीधा बनाने रखने के लिए बहुत लाभदायक होता है।
यह चेस्ट और हिप्स के लिए बहुत अच्छा व्यायाम होता है।इससे फेफड़ों की शक्ति बढ़कर सांस की क्रिया बहुत शक्ति शाली होती है।
ध्यान रहे योगासन में बार बार अभ्यास नही कर,बल्कि दोनों साइड से अभ्यास करते हुए उसी आसन की मुद्रा में रुके रहने का समय बढ़ाये,तभी स्ट्रेंथ ओर स्टेमिना बहुत बढ़ता है और मन की स्थिरता की प्राप्ति होती है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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