अंगुष्ठपादासन कैसे करे,ओर शरीर को कैसे बनायें संतुलित और एकाग्र,,,
बता रहे है,महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी,,,
अंगुष्ठपादासन करने में तीन प्रकार की शारारिक स्थितियां बनती है-प्रारम्भ व मध्य ओर सम्पूर्ण
1-प्रारंभिक स्थिति :-
उकड़ू अवस्था मे बैठना।
इस अवस्था मे कहां ध्यान दें:-
अपने शरीर के सन्तुलन करने पर देते हुए मूलबंध लगाकर,अपनी आती जाती सांस को सामान्य लेते और छोड़ते रहे।
ओर केवल इसी अवस्था के अभ्यास की आप केवल 1एक एक बार ही अपनी दोनों टांगों से दोहराये।
अगला मध्य अवस्था का अभ्यास :-
अब आप अपने दोनों पैरों के दोनों पंजों के बल उकड़ू बैठ जायें।साथ ही आपका सारा शरीर स्थिर और तनाव रहित रहे।अब जो स्वर अधिक स्पष्ट चल रहा हो,मानो बायां स्वर चल रहा है तो,आप उस स्वर से सामान्य श्वास के साथ बाईं एडी पर बायें नितम्ब के साथ बैठ जायें और दाईं टांग को बाईं जाँघ पर रख लें। ध्यान रहे कि,आपका बायां घुटना फर्श को नहीं छूना चाहिए।अपने दोनों हाथों की उंगलियों की मदद से अपना सन्तुलन बनाएं।याब जब संतुलन बन जाये तबअपने दोनों हथेलियों को एक साथ छाती के सामने नमस्कार मुद्रा में लायें या फिर दोनों हाथों को अपने ऊपर रखे पैर के घुटने ओर पैर के पंजे को पकड़कर बायें पंजे पर अपना सन्तुलन बनाये रखें, इस आसन में यथासंभव देर तक बने रहें। इसके बाद आप अपनी प्रारम्भिक स्थिति में वापस लौट आयें।ओर अब दूसरे पैर से ठीक ऐसा ही आसन करें।
क्या लाभ है,जाने:-
यह आसन आपके टखने,पिंडलियों और पैर की मांसपेशियों को मजबूत करता है और इसलिए घुटनो की सूजन दर्द को मिटाता है और जिनके पैर के तलवे सपाट है,उनके सपाट पैरों के लिए अच्छा लाभदायक होता है। यह आपकी मानसिक एकाग्रता के साथ शारारिक सन्तुलन की भावना को दृढ़ता को बढ़ाता है।
इसमे मूलबंध लगाकर सामान्य सांस लेने छोड़ने से आपका प्राण स्थिर होकर प्राणमय कोष में प्रवेश करता है।ध्यान का विकास होता है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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