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मेरे साधना पथ के पथिक संत और मेरा आत्म गुरुवादी दर्शन


पुरानी बात है जब हमने अपना मकान आज जहाँ आश्रम है वहाँ पर बना लिया था शिक्षालकाल के साथ गांव की खेती का कार्य चल रहा था तबतक मैं अपने में गुरु का आभाव अनुभव करता था की जेसे पूर्वकाल के सिद्ध गुरु थे वेसा मेरा भी कोई सामर्थ्यवाला गुरु हो मैं इस प्रश्न को लेकर ध्यान करता परन्तु न कोई ध्यान में दिखा नकोई नही मिला हमारे गांव के पास कई मोनी बाबा,नंगे बाबा आदि सिद्धों की चर्चा सुनता था उनका भी स्मरण करता ध्यान करता की यदि ये गुरु है तो मुझे दिखे पर कोई अनुभव नही हुआ और एक बार एक नंगे बाबा जो धुप हो तब भी नंगे शरीर गर्म रेत में नंगे पैर ही भरी दुपहरी में घूमते थे वे भांग पीते थे उन्हें लोग वहाँ पास के गांव के सिद्ध बूचा बाबा का सिद्ध और चमत्कारी शिष्य बताते थे वे मुझे अपने खेतों की नहर पर तेजी से आते मिले सभी बच्चों ने उन्हें प्रणाम किया मेने भी उनके पास जा प्रणाम किया और पैर छुए पर वे यूँ ही पास से गुजर गए मुझे लगा की यदि ये गुरु होते या इन्हें सिद्धि होती तो ये जरूर मुझे देख कुछ कहते जो की नहीं हुआ बाद के मेरे प्रसिद्ध होने के काल में उनकी भुत भविष्य बताऊ प्रसंसा सुनता और लगता की क्या वो मुझे नही पढ़ पाये? क्या कहा जा सकता है वही जानें और ऐसे ही एक अमरगढ़ के एक श्वेतवस्त्रधारी पुरुष हमारें प्रेमनगर घर पर दोपहर को आये तब मैं गांव गया था चौक में सभी माता जी सहित और किरायेदार व् मकान मालिकिनी ताई आदि बेठी थी तब वे आये और सभी ने उन्हें बाबा समझा की कुछ चाहिए तो वे बोले नही बस चाय पियूँगा और तब वे माता जी से बोले की तम्हारी क्या चिंता है मुझे पता है माता जी उन्हें बात बताई तब वे बोले की तम्हारे पति स्कुल के मुकदमे को बाहर गए है वे अब जीत गए है आज आएंगे माता जी बोली की बाबा यदि ऐसा हुआ तो आपको अवश्य जो बनेगा दूंगी वे बोले हमे कुछ नही चाहिए विधि के विधानानुसार मैं यहाँ आया हु फिर आऊंगा और चले गए तब ठीक यही हुआ पिताजी मुकदमा जीत गए थे तब कुछ महीने बाद वे फिर आये अब सब उन्हें सिद्ध पुरुष समझते श्रद्धायुक्त थे तब हमारी सत्यवती बहिन की शादी भी हो चुकी थी वे भी आई थी मैं भी वहां था उन्हें सब हाथ दिखाने लगे वे पैर और माथे की लकीर देख कुछ बताने लगे जो भविष्य में विशेष सत्य घटित नही हुआ और जब मेने दिखाया तब वे कुछ नही बोले बस कहा सब ठीक है ना की ये कहा की तुम योगी और वेदों से भी परे एक स्त्री प्रधान नवीन युगप्रवर्तक सिद्धांतजनित ग्रन्थ और पथ का प्रचलन करोगे ऐसे ही एक पिता जी के इंटर कालिज में इतिहास के अध्यापक और बुलन्दशहर में डी ए वी डिग्री कॉलेज के पीछे बाईपास पर निवास करते हुए वर्तमान तक आसपास प्रसिद्ध ज्योतिष के गुरु जी नाम से विख्यात व्यक्ति रहते थे मेरा भी उनसे बहुत सम्पर्क रहता था उनसे वर्षो तक सम्पर्क रहा उन्हें मेने अपना भविष्य पूछा तो कभी मैं पुलिस में भर्ती हो जाता क्योकि दो चाचा पुलिस में अधिकारी थे या मिल्ट्री में भर्ती हो जाता क्योकि ननसाल मिल्ट्री में थी अंत में स्कुल में क्लर्क बनने की भविष्यवाणी करते क्योकि पिता जी दो स्कूलों के प्रबन्धक और अनेक स्कुलो में भी प्रभाव रखते थे और अंत में मैं आज जो हूँ वे सहित सब जानते है तब ऐसे ही गुरु प्रधानता विषय को लेकर अपने गांव में अपने नहर पर स्थित खेतों पर एकांत में ध्यानस्थ बेठा था तब मुझे अन्तर्वाणि सुनाई हुयी जो अब जानता हूँ की ये मन की दो शक्ति धारा में से एक धारा आत्मा में स्थित शाश्वत ज्ञान की होती है की कोई तुझे क्या देगा उसे भक्ति से जो प्राप्त हैं वो मेरा दिया है यो उस पर उधार की सिद्धि है वो स्वयं उसका मालिक नहीं है वो तुझे नही दे सकता है जो योगी है वो अभी कोई है नही और जो तुझे चाहिए वो योगार्थ है वो स्वयं उपलब्ध करना होता है यो जबतक ये चिंतन है की कोई दूसरा है जिसे ईश्वर कहते है तब तक सभी ईश्वरीय नाम और व्यक्तित्त्व है यो उनमे से किसी भी नाम को ग्रहण कर और उस एक ही नाम को जप ध्यान कर तो तुझे व्ही प्राप्त हो जायेगा वही तेरा इष्ट और गुरु होगा और यही ये वाणी शांत हो गयी ये सुन मेने धर्म ग्रन्थ पढ़े और जो भी कोई मंत्र लिखा मिला एक एक करके समयानुसार सब धुँआधाड़ जपे और उनके इष्टों के दर्शन किये और अंत में पाया ये सब मन तक ही है और अंत में मैं अपने को ही देखता तब समझ नही आता था की ये सब अंत में क्या दर्शन है यो बाद के चिन्तनो में पाया की जब तक मन यानि इच्छा तक हो तब तक रूप है अरूप और स्वयं के सत्य स्वरूप की प्राप्ति को इस सभी मन रूपी इच्छाओं के जगत से ऊपर जाना होगा तब आत्मसाक्षात्कार होता है इस बात से ये ज्ञान होता है की सिद्ध और उनकी सिद्धियों का भी एक स्तर भेद होता है बहुत से केवल मन के तम स्तर पर ध्यान केंद्रित करते हुए तमगुण प्रधान मन्त्रों के निरन्तर गुरु प्रदत्त ध्यान नियम विधि से तमगुण के स्तर की सिद्धि प्राप्त कर लेते है जिन्हें जनसाधारण कर्ण पिशाचनी या पिशाच,बैताल नख दर्पण आदि खण्ड सिद्धि कहते है ये केवल उन्ही मनुष्यों के विषय में बता सकती है जो केवल तमगुण प्रधान होते है चाहे वो छोटे घर का या बड़े घर का मनुष्य हो और जो सतगुण प्रधान होते है वे इनके पास जाते ही नही है और ये या वे इनके सम्पर्क में आते ही सिद्धि शून्य हो जाती है यो मेरे विषय में इन लोगो को भविष्य पता नही चला यो आत्मसिद्धि की और बढ़ो आत्म ध्यान करो जो स्वयं की सिद्धि है।

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