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वेलेंटाइन सप्ताह के छटे दिन हग डे यानि आलिंगन दिन के प्रेमा भक्ति के नवधा भक्ति में जो प्रेमाभक्ति के 9 प्रेम स्तर बताये है,उनमें से एक है सख्य यानि मित्रता यानि सर्वगुण समानता भाव की प्रेम पराकाष्ठा,जिसमें दो प्रेम में एक हो जाते है,यानि द्धैत से अद्धैत,दो ज़िस्म एक जां हो जाते है,तब घटित होता है-प्रेमालिंगन-जिसे अग्रेजी संस्कृति में हग कहते है।और इसी प्रेमालिंगन दिवस यानि हग डे पर अपनी प्रेरक कविता कह रहें हैं-सत्यसाहिब जी..

वेलेंटाइन सप्ताह के छटे दिन हग डे यानि आलिंगन दिन के प्रेमा भक्ति के नवधा भक्ति में जो प्रेमाभक्ति के 9 प्रेम स्तर बताये है,उनमें से एक है सख्य यानि मित्रता यानि सर्वगुण समानता भाव की प्रेम पराकाष्ठा,जिसमें दो प्रेम में एक हो जाते है,यानि द्धैत से अद्धैत,दो ज़िस्म एक जां हो जाते है,तब घटित होता है-प्रेमालिंगन-जिसे अग्रेजी संस्कृति में हग कहते है।और इसी प्रेमालिंगन दिवस यानि हग डे पर अपनी प्रेरक कविता कह रहें हैं-सत्यसाहिब जी..

श्रवणं कीर्तनं प्रेमा स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
नवधा प्रेमाभक्ति में जो 9 प्रेम के स्तर बताये हैं,वे जीवन्त स्त्री और पुरुष के परस्पर प्रेम को कैसे दिव्य बनाये यानि दो ज़िस्म एक जां,द्धैत से अद्धैत कैसे बने।इस प्रेम विषय के अंतर्गत जब दोनों में तन मन वचन से सच्ची दिले एकता आ जाती है,तब कोई दुरी नहीं रह जाती है,समस्त विरह की समाप्ति हो जाती है।दोनों समान हो जाते है।तभी समांतर में सच्चा प्रेम घटित होता है।अन्यथा राजा और रंक या राजा और भिखारी में केसा प्रेम।
तब दोनों तन से नहीं,मन और वचन के भी प्रेम स्तर पर एक होते है और तब इसी प्रेमावस्था के उदय होने पर परस्पर सच्चा प्रेम आलिंगन घटित होता है।तब कोई दुरी,विरह,वेदना आदि शेष नहीं रहती है।सदा दोनों को अपने में एक हुए रहने का बोध होता है।तब मैं तू खत्म होकर केवल हम रह जाता है।यही है-भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति में प्रेमाभक्ति का दिन-हग डे यानि प्रेमालिंगन दिन।…
!!💕हग डे💞!!

[प्रेमालिंगन💞दिवस]

[एक प्यार ए सफर💞-6]
🌹🌹🌹💞🌹🌹🌹
दिल क्यूँ है बेचैन
क्यूँ आ नहीं रहा चैन।
धड़कन बढ़ी सांसे है तेज
मिट रहा जाने क्या रैन।।
अज़ीब हालत ए हालात हैं
न नींद आँखों में न याद ए अक़्स।
कुछ गुनगुनाहट है बिन लब्ज़
कोई बिन अदा रहा है रक़्स।।
मुश्क़िल तो ये है
न रोके न रुकता।
कहना है कुछ
कह कोई है सकता।।
खिंचती है जां
कहीं और समाने को।
लौटाने की चाहत भी नहीं
फिर इस देह में आने को।।
यही दोनों और है चाहत
मिल कर बिछुड़ने ना।
मिले खिलें महकें चहकें
हो दो ज़िस्म एक जां जीना।।
आ मिलें गले दिल एक हो
मिटे कसक इश्क़ सुहानी।
समा जाएं बाक़ी बिन रहे
बस बचे एक रूह रूहानी।।
🌹🌹🌹💞🌹🌹🌹
सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemision. org

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