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नर देव और नारायण देवी की सत्य कथा व् आरती


सत्य कथा इस प्रकार से है की- प्राचीन काल में अक्षय तृतीया के दिन ही पीतांबरा बगलामुखी देवी, नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के अवतार हुए हैं जिनमे परशुराम अक्षय तृतीया को जन्मदिन प्रचारण के कारण अधिक प्रसिद्ध हुए, परंतु यहाँ -ब्रह्मा और ब्राह्मणी के पुत्र धर्म और उसकी पत्नी रूचि से नर नारायण दो भाई बहिन का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था “जो वर्तमान में 9 जून 2017 को पड़ी है” जो सनातन धर्म में धर्म वे सत्य के प्रचार को जन्मे थे इन दोनों भाई बहिन ने बदरी वन अर्थात जहाँ बदरी बेरी का जंगल था वहाँ जाकर दोनों ने अलग अलग पहाड़ की चोटी पर बैठ कर तपस्या की यो आज भी इन्ही के नाम से नर नारायण नामक पहाड़ की चोटियां है जहाँ दोनों ने तपस्या की उस स्थानों पर आगे चलकर मन्दिरों के निर्माण हुए यो इन मन्दिरों को बद्रीनाथ और केदारनाथ कहते है।ये दोनों महावतार स्त्री और पुरुष के पवित्र सम्बंध के महान प्राय अर्थ है इन्हीं से स्त्री और पुरुष का परस्पर संगत रखते हुए महान ब्रह्मचर्य की प्राप्ति हेतु भक्ति शक्ति का अद्धभुत संगत के रूप में जगत को तपस्या का सन्देश भी है ये ही प्रथम ब्रह्म के पुत्र धर्म और उनकी पत्नी रूचि के पुत्र और पुत्री के रूप में संसार के प्रथम भाई और बहिन स्वरूप है यो ये ही संसार के प्रथम ब्रह्म कुमार और ब्रह्मकुमारी भी कहलाते है इन्हीं की महान प्रेरणा से संसार में भाई बहिन का पवित्र प्रेम प्रकट हुआ और इन्ही से संसार में प्रथम भाई बहिन का संग रहकर घोर तपस्या और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करने का ज्ञानदान भी है जो यम और यमी या श्री शनिदेव और यमुना की भाई बहिन की कथा और महान संत ज्ञानेश्वर और उनकी बहिन महान संत मुक्ताबाई की कथा के रूप में कालांतर में प्रकट है ऐसे ही अनेक महान भाई बहिन की तपस्यारत संगत और ब्रह्मज्ञान है यो इन्ही से प्रथम बार हिंदुओं में भाई बहिन का महान रक्षाबंधन पर्व का प्रचलन हुआ जो आज तक उतनी ही श्राद्ध से मनाया जाता है यो इस रक्षाबंधन के आदि देव और देवी नर और नारायण है यो इस दिन इन्ही की पूजा अवश्य करनी चाहिए इन्ही नर और नारायण की तपस्या को भंग करने को जब इंद्र ने अप्सरा भेजी तब इन्ही नारायण रूप स्त्री बहिन पर तो कोई प्रभाव नही पड़ा और ना ही पुरुष नर पर परंतु इन्ही पुरुष नर ने अपनी जंघा पर अपने हाथ से थपकी मार कर एक नवीन अप्सरा उत्पन्न कर दी जो उर्वशी नाम से विख्यात हुयी ऐसी अनगिनत कथाएँ इन नर नारायण भाई बहिन की है जिन्हें पुरुषवादी युगों ने केवल पुरुष में ही रूपांतरित कर हिन्दू धर्म को विचित्र अनसुलझे सम्बंधों में घेर दिया जिसका परिणाम आज वर्तमान का हिन्दू धर्म नाम पर अपमानित हो उठा रहा है।यो ही आगे पुरुष युगों की प्रधानता ने अनेक स्त्री शक्तियो के अवतारों के नाम भी पुरुषवादी बना दिए उनमें से एक ये नर (पुरुष) और नारायण (स्त्री) अर्थात्मक है जिसमें नर तो पुरुष है ही और नारायण को भी स्त्री वाचक से पुरुष वाचक बना दिया गया है।इस नारायण नामार्थ का संक्षिप्त में अर्थ यो है-
‘नारायण’ शब्द में ही हमें नारी की व्युत्पत्ति का भी संकेत इस प्रकार से मिलता है की मनुस्मृति में नारायण की व्युत्पत्ति बताते हुए कहा गया है-“आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः, ता यदस्यायनं पूर्व तेन नारायणः स्मृतः”। अर्थात “सृष्टिपूर्व ‘नार’ नामक जल ही ‘नर’ ( स्वयंभू पुरुष ) का आश्रय था। इसीलिए वह नारायण है।” पौराणिक ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर यही बात कही गई है कि सृष्टि का आरम्भ जल तत्व से हुआ है उसमें ही पितृत्व व मातृत्व है। यहाँ नर को परमब्रह्म माना गया है अर्थात सृष्टि को उत्पन्न करने हेतु बीज दान करने वाला नर पुरुष है और ‘नार’ अर्थात स्वयंभु परमब्रह्म की अन्तर्निहित विराट योनि यानी मातृतत्व है यो नारायण -नरसूनव- नर पुत्र या पुत्री या नार पुत्र या पुत्री है। सृष्टि निर्माण जल से हुआ है यह सर्वव्यापी परिकल्पना वैश्विक है।इस जल तत्व का स्थान योग शास्त्र में स्वाधिष्ठान चक्र है जो पुरुष में वीर्य बीज का स्थान है और स्त्री में स्त्री बीज रज और गर्भास्थान है जहाँ नर नारी के बीज मिलकर एक तत्व बन जाते है और उस गर्भावस्था में निर्मित जीवनदायी जल पदार्थ में मनुष्य जीव का पालन होता है यो यहाँ नारी के लिए अधिक अर्थ पूर्ण है नारायण नाम तथा नारी की व्युत्पत्ति का एक अन्य आधार भी है। संस्कृत की एक धातु है नृ जिसका अर्थ होता है मानव, मनुष्य, मनुष्यजाति। इसमें स्त्री-पुरुष का भेद नहीं है। नृ से ही पुरुषवाची नर शब्द बना है और स्त्रीवाची नारी भी। कुल मिलाकर प्राचीन ज्ञान सृष्टिनिर्माण में जलतत्व का महत्व ही मुख्य रहा है। यही विज्ञान सम्मत भी है। यो पुरुष प्रधान प्रगतिशील ऋषियों ने इसी अर्थ को प्रयोग करते हुए कहीं पुरुष के महत्व को प्रकट किया और कहीं कहीं स्त्री को भी मिला है यो ही अम्ब का अर्थ भी जल है। अम्बा शब्द का भी मूल आधार संस्कृत धातु में अम्ब् है यो अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका,अंबे आदि शब्द भी इससे ही बने हैं जिनका अर्थ भी माता या मुख्यतया देवी ही है। अम्ब शब्द के अर्थ होते है पिता, आँख, जल इत्यादि। यो स्पष्ट है कि जल सृष्टि का आदि और जीवनदायी आधार होने से नर की अपेक्षा नार या जल में ही स्त्रीवाचक सत्ता अधिक भावार्थ रखती है।वेसे भी स्मरण रखें की सृष्टि में तीन तत्व है-ऋण,धन-बीज जिसके जीवंत नाम है-पुरुष,स्त्री और बीज या इलेक्ट्रॉन,प्रोट्रान,न्युट्रान अतः इन्ही को भारतीय ऋषियों ने पुरुषवादी युगों में पुरुषवादी चिंत्तन के चलते बड़ी भारी उलट फेर की जिसका बुरा परिणाम स्त्री यानि नारी को उठाना पड़ा आज वर्तमान में नारी युग है तभी स्त्री अपनी उन्नति के सर्वोच्चता की और अग्रसर है यो उसे इन प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थों में अपने नारित्त्व के उथित पात्रों को पुनर्जीवन देना होगा यो खोजे अति आवश्यक है
यो भी इसी प्राचीन कथाओं में पाओगे की ईश्वर और ईश्वरी के युगलावस्था को एकल ब्रह्म कहा है उसका अनर्थ कर दिया केवल एक ही पुरुषवादी ब्रह्म और उससे सारी ये सृष्टि स्त्री और पुरुष और बीज हुयी है और उस ब्रह्म व् ब्राह्मणी से जो आगामी संतान हुयी वही उस ब्रह्म और ब्राह्मणी के स्वयं अवतरण यानि नीचे आना या जन्म लेना अर्थ है।साथ है जो प्रारम्भिक अवतरण है उनमे प्रथम अवतार- आदि परषु अर्थात अर्द्ध पुरुष और अर्द्ध स्त्री का युगल अवतार था या वो पूर्ण नर और पूर्ण नारी था ये विशेष स्पष्ट नही है जो की सत्य में पूर्ण नर और पूर्ण नारी था वेसे भी कोई भी अवतार पृथ्वी पर जन्म लेता है किसी भी प्रयोजन हेतु तो भी वो अपनी अर्द्धशक्ति की साथ लाता है जैसे विष्णु के साथ उनकी पत्नी लक्ष्मी तब उन्ही के पृथ्वी रूप राम-सीता व कृष्ण-राधा या रुक्मणी है क्योकि ईश्वर को चतुर्थ धर्म का स्वयं पालन करते हुए समाज की चतुर्थ धर्म पालन का ज्ञान देना और प्रचारित करना पड़ता है उसके जाने के बाद उस सिद्धांत के अनेक आचार्य विवाहित या अविवाहित हो सकते है इसमें कोई संदेह नही है उन्हें ही उस मुख्यावतार के अंशावतार भी कहा जाता है।जैसे यथार्थ में श्री राम सीता पूर्णावतार है और उसी काल में शेष रहे परुषराम है जो अँशावतार यानि उस धर्म के प्रचारक रहे। इसी लिए पुरुषवादी विशेषकर वशिष्ठ ऋषि आदि ने ये नारायण नाम को पुरुष बनाते हुए उनकी पत्नी को नारायणी नाम से पृथक नाम अर्थ दिया ताकि विशेष तर्क उत्पन्न नही हो और करता भी कौन सब और पुरुष ऋषियों का वर्चस्व ही तो था यो नर भी पुरुष और नारायण भी पुरुष अर्थ रहा। इन्होनें अवतारवाद की एक श्रंखला बनाई जिसमे ये सब महान पुरुष को विष्णु जी का अवतरण बनाते चले गए।
यो मूल में नर और नारायण भी पुरुष और स्त्री अवतार हुए जिनका भविष्य में केवल पुरुषवादी अर्थ और संक्षिप्त में उल्लेख मात्र है।आगे लोक कथाएँ मुख वचन से प्रचलित होती रहती है यो आओ नर नारायण की इस सत्य कथा को श्रवण मनन करके अपना पूण्य बल बढ़ाये।
??नर नारायण देवी देव आरती?
जय नर नारायण देवी देव,जय नर नारायण देवी देव।
तुम दोनों हो भाई बहिना-2,धर्म सत्य स्वमेव।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
ब्रह्म पुत्र धर्म पिता तुम्हारे,रूचि जननी तुम्हारी माता-2..रूचि..
ज्येष्ठ पूर्णिमा जन्म तुम्हारा-2,तुम चारों वेद के ज्ञाता।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
नर तुम पुरुष सनातन युग हो,नारायण तुम युग नार-2..नारायण..
ब्रह्मचर्य व्रत रख तुम दोनों-2,करी तपस्या अपार।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
बद्री नाथ केदार नाथ है,तो दोनों के तप धाम-2..तुम दोनों..
नर नारायण नाम पहाड़ हैं-2,तुम शक्ति भक्ति धार।।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
नर ने जगत के नर दी शक्ति,और सत्य का दिया महाज्ञान-2..सत्य..
नार को दी भक्ति नारायण-2,हुयी शक्ति भक्ति ही ध्यान।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
प्रेम पवित्र हो तुम नर नारी,बहिन भाई चला सम्बंध-2..बहिन भाई..
पूर्णिमा रूप प्रकाशित तुम हो-2,पवित्र अर्थ सुगंध।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
तुम हो ब्रह्म कुमार कुमारी,तुम प्रजापति संतान-2..तुम प्रजापति..
तुम संगत है भाई बहिना-2,ब्रह्मचर्य रख महान।।
रक्षाबंधन पर्व तुम्हारा,इस दिन पूज्य तुम मान-2..इस दिन..
बहिन भाई तुम प्रथम जग हो-2,तुम राखी रूप सम्मान।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
रक्षक बन तुम राखी बंधन,शक्ति भक्ति डोर-2..तुम शक्ति..
जो पूजे तुम बांध डोर को-2,मिले भाई बहिन सुख भौर।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
जो करता है तुम्हरी पूजा,मन इच्छित मिले वरदान-2..मन..
बद्री केदार नाथ पुन्य मिलता-2,पाये भक्ति शक्ति मोक्ष महान।ॐ जय नर नारायण देवी देव।।
बोलो?नर नारायण देवी देव की जय?

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