9 जुलाई 2017 गुरु पूर्णिमा पर्व विश्वगुरु भगवान विश्वामित्र जन्मोउत्सव पर उनके जनकल्याण को अविष्कारित वनस्पति आलू और मूंगफली में नर(पुरुष) और नारायण(स्त्री) की दिव्यांश की स्थापना आश्वनी पूर्णिमा “शरद पूर्णिमा’ पर्व की कथा:-
9 जुलाई 2017 गुरु पूर्णिमा पर्व विश्वगुरु भगवान विश्वामित्र जन्मोउत्सव पर उनके जनकल्याण को अविष्कारित वनस्पति आलू और मूंगफली में नर(पुरुष) और नारायण(स्त्री) की दिव्यांश की स्थापना आश्वनी पूर्णिमा “शरद पूर्णिमा’ पर्व की कथा:-
9 जुलाई 2017 गुरु पूर्णिमा पर्व विश्वगुरु भगवान विश्वामित्र जन्मोउत्सव पर उनके जनकल्याण को अविष्कारित वनस्पति आलू और मूंगफली में नर(पुरुष) और नारायण(स्त्री) की दिव्यांश की स्थापना आश्वनी पूर्णिमा “शरद पूर्णिमा’ पर्व की कथा:-
Posted on July 4, 2017 Posted By: Admin
Categories: Satyasmee Mission
श्रीमद्भ सत्यनारायण के चतुर्थ अवतार भगवान विश्वामित्र द्धारा जनकल्याण के तपस्यार्थ हेतु एक ऐसा दिव्य खाद्य पदार्थ वनस्पति का अविष्कार किया जिसका वर्तमान तक भी सारे विश्व भर में प्रचलन है ये सब उन्होंने आश्वनी पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा तथा जागर्ति पूर्णिमा या आश्वनी कुमार और आश्वनि कुमारी देव देवी के अवतरण दिवस है तथा इस दिन चन्द्रमा अपनी समस्त सोलह कलाओं की दिव्यता शक्ति को पृथ्वी पर प्रकाशित करता है।तथा त्रेतायुग में रावण ने इसी दिवस पर अपनी वैदिक रीति से इन आश्वनी कुमार और कुमारी का आवाहन करते हुए चन्द्र विज्ञानं की साहयता से अपनी नाभि में चन्द्र किरणों को अपनी सूर्य रश्मियों से समिश्रण करते हुए सोमरस को प्रकट किया जिसे अपने नाभि कुण्ड में स्थापित किया उसी की प्रत्येक पूर्णिमा के दिन साधना करते हुए अमृत्त्व की व्रद्धि करते रहने से सदैव के यौवन और स्वस्थता की अवस्था को प्राप्त रहता था यो इस महान पवित्र दिवस पर महर्षि ने ऐसा अद्धभुत जनकल्याण कार्य किया था।हुआ यूँ की जब भगवन विश्वामित्र ने गायत्री उपरांत अपना आत्मसाक्षात्कार करते हुए सत्य स्वरूप की प्राप्ति की तब उन्हें तीनों लोको में सर्वत्र सभी देव दैत्यों आर्यो और महर्षियों आदि ने परमाद्धित्य की उपाधि से स्वीकार कर पुकारना प्रारम्भ किया तब इन्होंने त्रिशंकु और आर्यों के लिए एक नवीन सिद्धार्यन स्वर्ग की स्थापना की और भविष्य के अनेक आर्य महर्षियों के लिए नवीन सप्तऋषि मण्डल बनाया और तब उसकी शक्ति वर्धन के लिए हिमालय के गुप्त कैलाश पर्वत पर सप्त सिद्धाश्रमों की स्थापना सहित सम्पूर्ण भारत में अनेक विभिन्न नामों के सिद्धाश्रमों का भी शक्तियुक्त निर्माण किया जो वर्तमान युगों तक समय समय पर पुनः पुनः पुनर्जागृत होकर इसी सिद्धाश्रम नाम से स्थापित और प्रचलित है जहाँ उन्होंने सत्यनारायण और उनकी अर्द्धांग्नि सत्यई पूर्णिमा की बारह श्रीभग देवी पीठों की स्थापना की क्योकि उस समय अनेक भ्रष्ट ऋषियों ने वेदों के सच्चे स्वरूप को मिटाने का प्रयास प्रारम्भ किया था जिन्होंने सत्यनारायण अर्थात मूल परमात्मा जो केवल सत्य है और इसकी सोलह कला युक्त शक्ति सत्यई पूर्णिमा को इनके त्रिगुण अर्थावतार ब्रह्मा और ब्राह्मणी जो अनादि इच्छा बीज का स्वरूप है जिससे विश्व जीव सृष्टि होती है और द्धितीय विष्णु और लक्ष्मी जो विश्व सृष्टि के पालन और क्रिया स्वरूप है तथा शिव और शक्ति शिवा जो विश्व ज्ञान और मोक्ष के पुनः लय स्वरूप है उनका सन्तुलन भ्रष्ट करते हुए केवल सत्यनारायण के द्धितीय अवतार विष्णु को ही महाविष्णु बनाते हुए उन्हें ही सत्यनारायण घोषित करना प्रारम्भ कर दिया था इसी मिथ्यावाद का खण्डन और पूर्व चतुर्थ वेदों के सत्य स्वरूप की स्थापना को तपोभ्रमण करते तभी आश्वनी पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा भी कहते है तब उन्होंने इस दिवस के वैदिक देव देवी आश्वनी कुमार और कुमारी के अवतरण पर्व पर उनका आवाहन किया क्योकि प्रत्येक माह हो या दिवस या वार व् घड़ी पहर हो या राशि हो या पदार्थ आदि हो वे सभी तीन अवस्था में बनते और बने रहते है-पुरुष-स्त्री और बीज यो सभी माह,दिवस, पदार्थों में आधी स्त्री है आधा पुरुष है और ये दोनों अर्द्धशक्ति मिलकर एक सम्पूर्ण बीज बन शेष रहते है यो आश्वनी कुमार और आश्वनी कुमारी जो की सदैव यौवन अवस्था की प्राप्ति के कारण युवा और युगल प्रेमिक बने रहते है तभी इन्हीं के अवतरण दिवस को ही अनादि सर्वप्रथम रास पूर्णिमा भी कहते है श्री कृष्ण की रास पूर्णिमा बहुत बाद के द्धापर काल में पुनर्जागृत हुयी थी तब इन्ही देव देवी के सहयोग से तपस्यार्थियों के सहज और सम्पूर्ण पौष्टिक भोजन के लिए कन्दमूल फलों से भिन्न एक नवीन वनस्पति प्रजाति का अविष्कार किया जो आलू और मूंगफली के नाम से प्रसिद्ध हैं तब उन्होंने आश्वनी कुमार और आश्वनी कुमारी देव देवी के सहयोग से आलू में नर यानि पुरुष शक्ति का स्थापन किया और मूंगफली में नरायण यानि नार स्त्री शक्ति का स्थापन किया जिसके परस्पर मेल से तपस्यार्थियों और जनसाधारणों को अति पौष्टिक तत्वों की प्राप्ति हो जो धीरे धीरे सम्पूर्ण विश्व में फैलती गयी और आज सभी धार्मिक व्रतों से लेकर सामान्य भोजन तक वर्तमान में अति उपयोगी बनी हुयी है।आज भी वैज्ञानिक मूंगफली के छिपे अनेक पौष्टिक तत्वों के विषय में अनुसंधान कर रहे है ये है हमारे विश्वगुरु विश्वामित्र जी की सर्वकल्याण और विश्वबंधुत्त्व भावना जो की सभी मनुष्यों को अपने आत्मा का ध्यान करने से प्राप्त होती है।
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