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भगवान श्री शनिदेव चालीसा


दोहा
श्री गणेश वंदन करूँ,पुनि पुनि नवाऊ मैं माथ।
शनि की कृपा सदा रहे,सब नवग्रहों के साथ।।
कष्ट मिटे संकट मिटे,मिटे कर्ज और घात।
सुमरु मैं शनिदेव को,सुबहा मध्य और रात।।
चालीसा प्रारम्भ
जय जय शनिदेव हितकारी।
सुनिए प्रभु जी अरज हमारी।।
हम पर अपनी कृपा करिये।
सभी विघ्न कष्टों को हरिये।।
सूर्य पुत्र और छाया माता।
यमुना बहिन और यम है भ्राता।।
शिव के शिष्य हनुमंत के प्यारे।
इनके भक्तों पे नजर ना डारे।।
रूप तुम्हारा है विकराला।
तीक्ष्ण द्रष्टि से भड़के ज्वाला।।
ॐ शं शनैश्चार्य नमः।
शनि मंत्र सुखदाय हमः।।
शनि के चार चरण है नामा।
लोह स्वर्ण चाँदी और ताँबा।।
लोह चरण से जब शनि आते।
टीम मन धन की हानि कराते।।
ताँबा रजत अति सुख कारी।
स्वर्ण चरण अति मंगलकारी।।
ऐसे तुम न्याय के साथी।
कैलाश छोड़ शिव बन गए हाथी।।
कृपा तुम्हारी पवन कुमारा।
जराई लंका बनाई कारा।।
गोरी पुत्र पड़ी शनि की छाया।
कटा शीश तब गज मुख पाया।।
अष्ट वाहनों के तुम हो स्वामी।
गज सिहं स्वान गर्दभ मृगामी।।
चील गिद्ध घोड़े की सवारी।
अतुलित बल प्रताप अति भारी।।
सती पर पड़ी शनि की छाया।
दक्ष यज्ञ तन सति जलाया।।
गौतम पर की कृपा महान।
पाये बुद्धत्व हुए भगवान।।
राज्य छोड़ जंगल को ध्याये।
महावीर तब परम् पद पाये।।
ऐसा ना कोई देव भगवान।
जिसे ना शनि शक्ति का भान।।
जब द्रष्टि कृष्णा पे डारी।
कहलाये रणछोड़ मुरारी।।
कुपित द्रष्टि हरिश्चंद्र पे डारी।
बिछुड़े राज्य पुत्र और नारी।।
नृप विक्रम पर हुए सवार।
निगली खूंटी नो लखा हार।।
विक्रम को तब चोर बताया।
हाथ पैर से हीन बनाया।।
फिर निवास तेली घर पाया।
थी जिस पर शनि कृपा अथाया।।
दीप राग गा दीप जलाये।
कर पूजा शनि देव रिझाये।।
फिर से उनके दिन बौराये।
कर विवाह रानी घर लाये।।
जिस पर शनि हाथी संग आते।
राज्य मिले सुख सम्पत्ति पाते।।
राजा नल पर शनि जब आये।
हरा राज्य वन वन भटकाये।।
फिर जब नल ने पूजा कीन्ही।
राज्य दिया विपदा हर लीन्ही।।
प्यासे पांडव जब अकुलाये।
देख ताल मन में हरसाये।।
रहता था वहाँ यक्ष बलशाली।
प्रश्न पूछे करे रखवाली।।
पांडव उत्तर ना दे पाये।
मृत्यु को तब गले लगाये।।
किया युधिष्ठर प्रश्न निदान।
मिला सभी को जीवन दान।।
है यही वही सिद्ध स्थान।
जहाँ हुआ शनि मंदिर निर्माण।।
यहाँ शनि रहते सपरिवार।
करते भक्तों का उद्धार।।
जो जन यहाँ आ शीश झुकाते।
मिटे रोग सुख शांति पाते।।
जिस पर हो ढैया साढ़े साती।
इकतालीस दिन करे आरती।।
उसके सभी कष्ट मिट जाते।
शनिदेव की कृपा पाते।।
जो यहाँ आकर दर्शन करते।
उस पर क्रोध शनि नही करते।।
जो करे पाठ शनि चालीसा।
कहे सत्येंद स्वामी दे शनि आशीषा।।
दोहा
सिद्ध शनि मंदिर यही,ऐसा पावन धाम।
जो भी मांगे सभी मिले,करके शनि प्रणाम।।
शनि जयंती रथ यात्रा,जो करे कराये भक्त।
शनि दशा हितकारी हों,शनि लाभ पाये वो भक्त।।
पूरी हो मनोकामना जो सोचा सो पाये।
श्री गणेश हनुमान वचन,सिद्ध शनि जो ध्यायै।।
बोलो?जय शनिदेव महाराज की जय?

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