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शुभ सत्यास्मि ज्ञान प्रातः


तन प्राण मन आत्मा
ये त्रिगुण तीनों एक।
इन्हीं एक्त्त्व नाम ब्रह्म
यही जपना तपना नेक।।
सत्य बोलना साक्षात् तप
गुरु मंत्र महान सर्व जाप।
गुरु आज्ञा सेवा बड़ा दान
इन तीनों कर पाये स्वं आप।।
?भावार्थ-हे शिष्य जो अपने तन को अपनी आत्मा का जीवंत वस्त्र मानता है और मन को अपनी आत्मा की समस्त शेष अशेष इच्छाओं का समूह केंद्र मानता है और अपने प्राणो को अपनी आत्मा का क्रियात्मक शक्ति मानते हुए स्वयं में आत्म स्वरूप ध्यान करता है की ये सब मैं ही आत्मस्वरूप हूँ और इस उपस्तिथि का अनुभव करता है वह अवश्य आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति करता है और इसके लिए अपने गुरु निर्दिष्ट गुरु मंत्र को ही सबसे महान जप मनाना चाहिए तथा सदैव सत्य आचरण करता सत्य बोलने का प्रयास करता है उससे बड़ा कोई तप इस संसार में नही है साथ ही गुरु की आज्ञा को प्रथम मानता है और उनकी सेवा करने में अपना सर्वत्र न्योछावर करने में तनिक भी लाभ हानि का आंकलन किये बिना अविलम्ब तत्पर रहता है वही संसार का सबसे बड़ा दानी कहलाता है तब वो इन्ही तीनों कर्मो को करने से स्वयं के ध्यान में केंद्रित होकर अति शीघ्र आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त हो जाता है तो शिष्य इस गुरु कथन को आत्मसात करो और मुक्ति मार्ग पर चलो।
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