ये भी विवाह उपरांत उन्हीं पूर्व भक्तों की श्रेणी में आ गया जो जब अकेले थे कोई साथ नही था तब गुरु साथ लिया और ज्यों ज्यों मनोरथ पुरे हो गए और लगा की मुझमे अब भक्ति से अधिक शक्ति का प्रवाह अधिक है अब गुरु की विशेष आवश्यकता नही पड़ती हमारे संसारी कार्य हमारे इष्ट पूजा से पूर्ण हो रहे है बस यहीं शहर में रहते वर्षो हो जाते है आश्रम और गुरु दर्शन किये हुए यो हटे भी नही और हट भी गए यही निश्चल की अंतिम भक्ति बनी है।इस कथा से ये ज्ञान मिलता है की “गुरु आज्ञा सर्वोपरि,कारज करे सदा स्वयं हरि”गुरु उपेक्षा अवज्ञा करें,शिष्य जीवन अंत न पाये परे”
यो सदा गुरु आदेश का पालन के साथ जप,तप,दान करते रहने से सदा भक्त का कल्याण होता है और स्वार्थ या गुरु में दोष देखने पर भविष्य में बड़े संकट पाता है।