No comments yet

9 जुलाई गुरु पूर्णिमा पर्व पर भगवन विश्वामित्र और राम द्धारा अहिल्या का उद्धार कथा और सत्यता, स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

जन समाज में एक कथा प्रचलित कर दी गयी हैं विशेषकर रामचरितमानस से ज्यादा ये विषय फेला की त्रेता युग में श्री राम ने गौतम ऋषि शापग्रस्त पत्थर बनी अहिल्या को अपने चरणों से छुआ तब वह पत्थर से मानव बन गई और उसका उद्धार हो गया। जबकि वाल्मीकि रामायण में अहिल्या का वन में गौतम ऋषि के साथ तप करने का वर्णन हैं कहीं भी वाल्मीकि मुनि ने पत्थर वाली कथा का वर्णन नहीं किया हैं। वाल्मीकि रामायण की रचना के बहुत बाद की रचना तुलसीदास रचित रामचरितमानस में इसका वर्णन हैं। तीसरे दो विषयों पर विरोधाभास हैं एक की क्या अहिल्या इन्द्र द्वारा छली गयी थी अथवा दूसरा अहिल्या चरित्रवान नहीं थी?इसका हल भी बालकाण्ड सर्ग 51 में गौतम के पुत्र शतानंद अपनी माता को यशस्विनी तथा देवों में आतिथ्य पाने योग्य कहा हैं।49/19 में लिखा हैं की राम और लक्ष्मण ने अहिल्या के पैर छुए। यही नहीं राम और लक्ष्मण को अहिल्या ने अतिथि रूप में स्वीकार किया और पाद्य तथा अधर्य से उनका स्वागत किया। यदि अहिल्या का चरित्र सदिग्ध होता तो क्या राम और लक्ष्मण उनका आतिथ्य स्वीकार करते।
सत्य क्या हैं:-?
अपने गुरुदेव विश्वामित्र ऋषि से तपोनिष्ठ अहिल्या का वर्णन सुनकर जब राम और लक्ष्मण ने गौतम मुनि के आश्रम में प्रवेश किया तब उन्होंने अहिल्या को जिस रूप में वर्णन किया हैं उसका वर्णन वाल्मीकि ऋषि ने बाल कांड 49/15-17 में इस प्रकार किया हैं स तुषार आवृताम् स अभ्राम् पूर्ण चन्द्र प्रभाम् इव मध्ये अंभसो दुराधर्षाम् दीप्ताम् सूर्य प्रभाम् इव || ४९-१५ सस् हि गौतम वाक्येन दुर्निरीक्ष्या बभूव हत्रयाणाम् अपि लोकानाम् यावत् रामस्य दर्शनम् |४९-१६
तप से देदियमान रूप वाली, बादलों से मुक्त पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा के समान तथा प्रदीप्त अग्नि शिखा और सूर्य से तेज के समान अहिल्या तपस्या में लीन थी।
सत्य यह हैं की देवी अहिल्या महान तपस्वी थी जिनके तप की महिमा को सुनकर राम और लक्ष्मण उनके दर्शन करने गए थे। गुरुदेव विश्वामित्र जैसे महान महर्षि राम और लक्ष्मण को शिक्षा देने के लिए और शत्रुयों का संहार करने के लिए वन जैसे कठिन प्रदेश में लाये थे।किसी सामान्य महिला के दर्शन कराने हेतु नहीं लाये थे।
कालांतर में कुछ अज्ञानी लोगो ने ब्राह्मण ग्रंथों में इन्द्र के लिए प्रयुक्त शब्द “अहल्यायैजार” के रहस्य को न समझ कर इन्द्र द्वारा अहिल्या से व्यभिचार की कथा गढ़ ली। प्रथम इन्द्र को जिसे हम देवता कहते हैं उसे व्यभिचारी बना दिया। भला जो व्यभिचारी होता हैं वह देवता कहाँ से हुआ? कुछो के अनुसार इंद्र एक पदवी है जो कम से कम सो अश्वमेघ यज्ञ आदि पूण्य कर्म करने के उपरांत प्राप्त होती है अब स्वयं चिंतन करो की जो इतना प्रतापी सम्राट रहा हो वो ऐसे नीच कर्म कैसे कर सकता है? अर्थात नही करेगा।*द्वितीय अहिल्या को गौतम मुनि से शापित करवा कर उस पत्थर का बना दिया जो असंभव हैं।क्योकि ये ऋषि त्रिकालज्ञ होते थे ना की भर्मित ऋषि थे जिन्हें कुछ भी कपट आदि पता ही नही चलता था वो भी विशेषकर उन्हीं के लिए रचा जा रहा हो तब तो ये अति सावधान होते हुए उसका निराकरण कभी का कर लेते ऐसी अनुपयोगी शापित वाणी अपनी जीवन संगनी जिसे ये अनेको काल से जानते हो उसको बिना जाने शाप दे दे जो की ऋषि की क्रोध काम पर विजय नही पराजय सिद्ध करता है।
*तीसरे उस शाप से मुक्ति का साधन श्री राम जी के चरणों से उस शिला को छुना बना दिया।
मध्यकाल को पतन काल भी कहा जाता हैं क्यूंकि उससे पहले नारी जाति को जहाँ सर्वश्रेष्ठ और पूजा के योग्य समझा जाता था वही मध्यकाल में वही ताड़न की अधिकारी और अधम समझी जाने लगी। इसी विकृत मानसिकता का परिणाम अहिल्या इन्द्र की कथा का विकृत रूप हैं।सत्य रूप को स्वामी दयानंद ने ऋग्वेदादीभाष्य भूमिका में लिखा हैं की यहाँ इन्द्र सूर्य हैं, अहिल्या रात्रि हैं और गौतम चंद्रमा हैं. चंद्रमा रूपी गौतम रात्रि अहिल्या के साथ मिलकर प्राणियो को सुख पहुचातें हैं. इन्द्र यानि सूर्य के प्रकाश से रात्रि अहिल्या निवृत हो जाती हैं अर्थात गौतम और अहिल्या का सम्बन्ध समाप्त हो जाता हैं।इन सब तर्कों और प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की अहिल्या उद्धार की कथा काल्पनिक हैं। अहिल्या न तो व्यभिचारिणी थी न ही उसके साथ किसी ने छल किया था। सत्य यह हैं की वह महान तपस्विनी थी जिनके दर्शनों के लिए , जिनसे ज्ञान प्राप्ति के लिए महर्षि गुरुदेव विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को वन में गए थे।उनसे विद्याध्यन उपरांत अपने ग्रहस्थ जीवन में पत्नी के साथ उत्तम व्यवहार करते हुए कैसे जीवन सुखद किया जाये ऐसा दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था।जो सत्यास्मि में वर्णित है यो सत्यता को उजागर करते हुए सत्यता को अपनाये।।
जाने जो सम्मान अर्थ
और जाने स्वं नारी मर्यादा।
वे कभी नही करते कर्म
जिस टूटे निज दूजे व्याधा।।
जपि तपि दानी ज्ञानी
और स्वं पुरुष आत्मसाक्षात्कारी।
विश्वामित्र महायोगी परम्
शिष्य राम कराये न अपमानित नारी।।
अहिल्या ब्राह्मणी ब्रह्म पुत्री
उसे चरण नही छुवाते।
ना चरण रखें उन मस्तक
पूजते मातृ भाव रख ध्याते।।
केवल दो अर्थ इस कथा है
एक कालांतर आश्रम दर्शन।
गौतम अहिल्या पवित्र कथा
बैठ यहाँ गुरु मुख सुन राम है हर्षन।।
कहे विश्वामित्र वचन राम से
महाराज वृद्धाश्र पुत्री दिव्यविभूति।
तत्वज्ञानी आत्मिश्वर मानि
हे राम नमन करो जीवंत श्रुति।।
गौतम ऋषि भ्राया संगनी
जन जीव अभेद परोपकारी।
आतिथ्य सेवक ऋषिवर
वरदाता अहिल्या महानारि।।
अक्षय पाद गौतम कुलहंसी
शतानन्द विजया माता।
तेजस्व घनघोर विधुतमयी
राम नमन मात नत ध्याता।।
तपबली प्रेरित सदबुद्धि
सचला विद्य ज्ञानी नारी।
अहिल्या सती पूजनीय देवी
चरण वंदन नमन रामधनुधारी।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
www.satyasmeemission.org

Post a comment