No comments yet

6 अप्रैल 2019 से सनातन धर्म के स्त्री सिद्धयुग पूर्णिमाँ के 2076 का प्रथम चरण, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2019,भारतीय नव वर्ष विक्रम संवत्, युगाब्द सिद्धयुग वर्ष 2076 नववर्ष हिन्दू “नव संवत्सर पूर्णिमाँ के प्रारम्भ की शुभकामनायें,इस विषय पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें हैं कि….

6 अप्रैल 2019 से सनातन धर्म के स्त्री सिद्धयुग पूर्णिमाँ के 2076 का प्रथम चरण, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2019,भारतीय नव वर्ष विक्रम संवत्, युगाब्द सिद्धयुग वर्ष 2076 नववर्ष हिन्दू “नव संवत्सर पूर्णिमाँ के प्रारम्भ की शुभकामनायें,इस विषय पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें हैं कि….

सत्यास्मि पूर्णिमाँ युग स्वास्तिक सृष्टि चक्र:-
1-सत्यास्मि धर्म दर्शन को स्वास्तिक के स्वरूप में जानें।
2-विश्व ब्रह्मांड का मूल केंद्र है–पुरुष+स्त्री=बीज अर्थात प्रेम रूपी एकत्व अवस्था ईश्वर यो प्रेम ही ईश्वर है।
3-इन्हीं का आत्म स्वरूप सिद्धासिद्ध महामंत्र है- सत्य (पुरुष)+ ॐ (स्त्री)+ सिद्धायै सृष्टि )+ नमः (प्रेम बीज)+ ईं (पुर्न जागरण सृष्टि कुंडलिनी शक्ति)+ फट् ( चार आत्मवत् कर्म और धर्म)+ स्वाहा (108 स्वरूपी सम्पूर्ण आत्म विश्वत् ब्रह्मांड विस्तार)।।
4-इस मूल ईश्वर के तीन भाग है-1-पुरुष-2-स्त्री-3-बीज।
जैसे- 1-बीज-2-पौधा-3-वृक्ष-4-फल-5-बीज।
5-यो बीज से प्रारम्भ है, बीज अपनी तीन विकास अवस्थाओं को पूर्ण करता हुआ अंत में स्वयं में ही विलय हो जाता है।
6-यो ही तीन मुख्य ऋतुयें है-1-गर्मी(पुरुष)-2-वर्षा(बीज)-3-सर्दी(स्त्री)।
7-तीन ही मुख्य कारक ग्रह है-1-सूर्य(पुरुष)-2-चन्द्रमा(बीज)-3-पृथ्वी(स्त्री)।
8-चार अवस्थाएं है-1- अर्थ (शिक्षा)-2- काम (ग्रहस्थ)-3- धर्म-(गुरु)-4- मोक्ष (आत्मसाक्षात्कार)।
9-मनुष्य रूपी पुरुष और स्त्री की कर्तव्य रूपी यही चार अवस्थाओं का प्रतीक है- स्वास्तिक।
10-स्वास्तिक स्वरूपी में-
-प्रथम कोण:- सत्य पुरुष और उसका सम्पूर्णत्त्व का प्रतीक है।
द्धितीय कोण:- ॐ स्त्री और उसके सम्पूर्णत्त्व का प्रतीक है।
तृतीय कोण:-पुरुष और स्त्री के परस्पर प्रेम से ये सम्पूर्ण सृष्टि अवस्था यानि सिद्धायै का प्रतीक है।
चतुर्थ कोण:-सत्य पुरुष और ॐ स्त्री की प्रेम सृष्टि सिद्धायै का पुनः प्रेम की केवल एक्त्त्व अवस्था प्रेम बीज में स्थित होने का प्रतीक है जिसे नमः कहते है।


यही अद्धैत अवस्था है।
और इसी प्रलय से पुनः दोनों अपनी प्रेमवस्था बीज से जिसे वेद शून्य कहते है। उस शून्य बीज से चैतन्य होते है।
-तब दोनों “एकोहम् बहुस्याम” यानि एक से अनेक हो जाऊ का प्रथम घोष करते है।
11-स्वास्तिक-का इन चारों कोणों का मध्य भाग मूल बीज ‘ईश्वर’ का प्रतीक है।जो मूल बीज है ये ही ‘ईं’ मूल शक्ति है।यही अंतिम मोक्ष है।
और स्वस्तिक के चारों कोणों के अंत में जो छोटे से कोण निकले होते है वे ही ‘फट्’ नामक मनुष्य के अंतिम चार कर्म और धर्म के प्रतीक चार ‘वेद’ है।
12-और स्वस्तिक के चारों और का ‘एक व्रत’ का अर्थ भी मनुष्य के इन चार कर्म धर्म का सम्पूर्णत्व अनंत विस्तार का प्रतीक ‘स्वाहा’ अर्थ है।यही व्रत ही ‘मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही ये सम्पूर्ण विश्व ब्रह्मांड ब्रह्म है।
13-यो सम्पूर्ण स्वास्तिक ही मनुष्य की विश्व में केवल एक मात्र आत्मसाक्षात्कार अवस्था को सम्पूर्ण रूप से प्रदर्शित करता, सिद्धासिद्ध महामंत्र- सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा है।
14-ऐसे ही ये तीन स्वास्तिक- ‘पुरुष-स्त्री-बीज’ का त्रिकोणीय योग बनता है।
जिसके एक दूसरे से संछिप्त मिलन योग से जो तीन विलय क्षेत्र बनते है। वे एक दूजे को सहयोग देने का अर्थ है। यो इन तीन विलय क्षेत्रों को तीन बार ‘प्रलय’ कहा जाता है अर्थात एक का दूसरे में लय होना है।
15- इस तीन स्वास्तिकों को एक करता एक व्रत ‘विश्व ब्रह्मांड’ कहलाता है।
और इसके अंदर और स्वास्तिकों के बाहर के तीन त्रिकोणीय क्षेत्र तीन बार की प्रलय से तीन बार की पुनः ‘सृष्टि’ कहलाते है।
16-और इस तीन स्वास्तिक के तीन व्रतों के मूल स्थान में मिलने से बना ‘बिंदु त्रिकोण’ पुरुष+स्त्री+बीज= ‘ईं’- विश्व ईश्वर बीज है।
17-स्वास्तिक के चार कोण ही मनुष्य की चार ‘नवरात्रियाँ’ है।
18-मूल ईश्वर रूपी बीज से-पौधा+वृक्ष+फल+बीज का चतुर्थ चक्र ही स्वास्तिक अर्थ है।
19-स्वास्तिक के ये चार कोण ही ‘चार युग’ है।यो तीन स्वास्तिक के चार+चार+चार=बारह कोण ही पुरुष के चार युग+स्त्री के चार युग+बीज के चार युग=बारह युग है और इन बारह युगों का एक युगांतर है, तब प्रलय-बीज-पुनः सृष्टि यो ही ये तीन स्वास्तिक अर्थ है।
20-ये तीन ही मनुष्य-पुरुष की तीन और स्त्री की तीन और बीज में अव्यक्त की त्रिगुण तम्+रज+सत् प्रकर्ति है और यो ‘सत्य पुरुष’ के ये तीन अवतार ब्रह्मा+विष्णु+शिव है और ‘ॐ’ ‘स्त्री’ के सरस्वती+लक्ष्मी+काली तीन अवतार है और बीज के तीन गुण ये सारी त्रिगुण प्रकर्ति है।
21-यही त्रिगुणों का योग 9 ही नवरात्रि है।
22-यही स्त्री का 9 माह गर्भकाल है।
23-सिद्धायै में 9 अक्षरों प्रारम्भ से गर्भ पूर्णता और प्रसव उपरांत मुक्ति तक विस्तारित नवरात्रि अर्थ है।
24-यही जीव की सम्पूर्णता ही पूर्णिमाँ कहलाती है।
25-नवरात्रि के नो दिन में तो स्त्री के दो पक्ष ही पूर्ण होते है- माँ तक। इसके उपरांत आगामी पूर्णिमा पर स्त्री माँ+जीव बच्चा+पुरुष पिता+गुरु, जो नवीन जीव का सोलह कला युक्त होकर नामकरण करने से गुरु ब्राह्मण कहलाता है।यही तीनों का समलित एक नाम ‘पूर्णिमा’ अर्थ है।यही नवरात्रि की सम्पूर्णता है।
ये ही नोवी स्थिति ही स्वास्तिक का मूल केंद्र है।
26-यही स्वास्तिक का मूल केंद्र ही मनुष्य की आत्मसाक्षात्कार की अंतिम अवस्था ‘अहम् सत्यास्मि’ कहलाती है।
27-यो अब इस स्वास्तिक के द्धारा सभी को सहज रूप से विश्व ब्रह्म ज्ञान समझ आ गया होगा की-इसी क्रम में इसी दिन यानि शुक्लपक्ष की चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा पहले दिन की प्रातःकाल से सृष्टि चक्र का नवीन प्रारम्भ हुआ और होता है।इसी क्रम में अनादिकाल से चलते हुए अब पुरुष के चार युग समाप्त हो चुके है। अब स्त्री के चार युगों का प्रारम्भ हो चुका है। जिसमें स्त्री का प्रथम युग “सिद्ध युग” का प्रथम चरण चल रहा है। तभी आज भी जो पुरुष स्त्री के सम्पूर्णत्त्व में अपना सहयोग दे रहा है, वही पुरुष सहयोग दिखाई देता है और जो पुरुष का सहयोग नही दिखाई दे रहा है, वही पुरुष की रूढ़िवादी सोच है। जो समयानुसार स्त्री अपने इन युगों में बदल देगी। यो आओ इस स्त्री युग के प्रथम चरण की “नवयुग नववर्ष पूर्णिमाँ” की शुभकामनाओं से चैत्र नवरात्रि को मनाये।और स्त्री के सम्पूर्णत्त्व की महावतार महाशक्ति “श्रीमद् सत्यई पूर्णिमाँ” का आवाहन इस सिद्धासिद्ध महामंत्र- “सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा” से यज्ञ अनुष्ठान करते हुए करें।शेष आगामी लेख में विश्व सृष्टि को समझायेंगे।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission. org

Post a comment