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12 फ़रवरी को महर्षि दयानंद जन्मदिवस पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…

12 फ़रवरी को महर्षि दयानंद जन्मदिवस पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…

महर्षि दयानंद जी का प्रारम्भिक नाम मूलशंकर अंबाशंकर तिवारी था, इनका जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा गुजरात में हुआ था। यह एक ब्राह्मण कूल से थे।इनके पिता अम्बाशंकर तिवारी एक समृद्ध नौकरी पेशा व्यक्ति थे,इनकी माता अमृत बाई थी।इनके परिवार में धन धान्य की कोई कमी ना थी।महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चूहे को खाते देख इन्हें तीर्व वैरागय का अनुभव हुआ की-जो ईश्वर अपनी रक्षा नहीं कर सकता,वह हमारी क्या करेगा।इस घटना के बाद इनके जीवन में बड़ा बदलाव आया और इन्होने 1846, 21 वर्ष की आयु में सन्यासी जीवन का चुनाव किया और अपने घर से विदा ली।इनके गुरु विरजानन्द सरस्वती थे,उन्ही ने इनका नाम दयानन्द सरस्वती दिया और गुरु दक्षिणा में भारत में कुरूतियों और अंधविश्वास,पाखंड को उखाड़ फेंकने का वचन माँगा और इन्होंने ये वचन देकर आजीवन पूर्ण किया।
स्वामी जी ने जीवन भर वेदों और उपनिषदों का पाठ किया और संसार के लोगो को उस ज्ञान से लाभान्वित किया। इन्होने मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया।निराकार ओमकार में भगवान का अस्तित्व है, यह कहकर इन्होने वैदिक धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया.10 अप्रैल 1875 में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। 1857 की क्रांति में भी स्वामी जी ने अपना अमूल्य योगदान दिया।इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर लौहा लिया तथा सतीप्रथा विरोध,बाल विवाह विरोध,अछूतों को न्याय,विधवा विवाह समर्थन और स्त्री शिक्षा को बढ़ावा आदि अनेक सामाजिक कार्यों का प्रचार प्रसार किया। स्वामी दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, महादेव गोविंद रानडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज’ की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की। और राजस्थान में महाराजा जसवंत सिंह के दरबार में नृत्यांगना नन्ही को अपना अपमान लगने से उनके खिलाफ अग्रेजों ने और विरोधियों ने एक षड्यंत्र के चलते जहर देने से 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन उनकी मृत्यु हो गई। और वे अपने पीछे छोड़ गए एक सिद्धान्त, कृण्वन्तो विश्वमार्यम् – अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ मानव बनाओ। उनके अन्तिम शब्द थे – प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।इन्होंने अभी वेदों के भाष्य किये और मुख्य ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश घर पढ़ा जाने वाला समाज सुधारक प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
यो स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी ने महर्षि दयानंद जी पर उनके जन्मदिवस पर श्रद्धायुक्त नमन के साथ एक कविता कही है की..

!!🌞महर्षि दयानंद जन्मदिवस🌹!!
[12 फ़रवरी]
आर्य सनातन भारत धारा
आर्य ऋषि सत्य ज्ञान आधारा।
आर्य समाज भारत नव निर्माण
आर्य ज्ञान महर्षि दयानंद नारा।।

जागो भारत जागो नारी
जागो भारत स्वतंत्रता सारी।
जागो सत्य ज्ञान अहिंसा
जागो जगाओ आर्य जाति ब्रह्मचारी।।

तर्क सतर्क ज्ञान अपनाओ
गूढ़ निगूढ़ विज्ञानं अपनाओ।
परा अपरा ईश स्वज्ञान
ब्रह्म योग से बज्र देह बनाओ।।

तप सेवा ज्ञान दयानंद
प्राण नाँद आयाम दयानंद।
आर्य समाज भारत दयानंद
नव युग भारत प्रेरणा दयानंद।।

देश स्वतंत्र सूत्र दयानंद
विभक्ति मिटाते भक्त दयानंद।
जन जन नमन महर्षि दयानन्द।।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission. org

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