“सत्य पुरुषायै विद्यमहे ॐ स्त्रियै धीमहि सिद्धायै तन्नो सर्वे ईं पूर्णिमाँ प्रचोदयात्।।”
जो मनुष्य वर्तमान में पूर्णिमा देवी के श्रीभगपीठ की स्थापना करता हुआ उसका सिंदूर और जल से अभिषेक करता है और अखंड घी अथवा तिल के तेल की ज्योति प्रज्वलित करता हुआ इस सिद्धासिद्ध महामंत्र का जप यज्ञ चारों नवरात्रियों में करते हुए अंत में पूर्णमासी की रात्रि को भी करते हुए आगामी दिन प्रथम प्रतिपदा के पहर के प्रारम्भ से पूर्व प्रातःकाल में ब्रह्म महूर्त में सम्पूर्ण करता है तथा अपने अनुसार भोजन बनाकर गरीबों को खिलाता है और सामर्थ्यानुसार दान करता है उसको उसकी सभी चतुर्थ-अर्थ-काम-धर्म-मोक्ष की मनवांछित मनोकामनाएं सम्पूर्ण प्राप्त होती है इसके विषय में ये ही प्रसिद्ध है की:-
वेद पुराण सब गावे महिमा
अर्थ काम धर्म मोक्ष दे असीमा।
सिद्धासिद्ध महामंत्र जपे जो
चारों नवरात्रि और पूर्णिमा।।
तब मिटे निराश दुःख दरिद्रता
सुख पाओ बारम्बार।
जपो सत्य ॐ सिद्धायै नमः
मनवांछित मिले वर अपार।।
??सत्य ॐ पूर्णिमाँ आरती??
ॐ जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ,देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।
जो कोई तुम को ध्याता-2,ब्रह्म शक्ति पाता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
जो करता है ध्यान तुम्हारा,नित सुख वो पाता..देवी-2
जिस चित छवि तुम्हारी-2,सुख सम्पत्ति पाता..देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
ॐ नाम की परब्रह्म तुम हो,ब्रह्म शक्ति दाता-देवी-2
त्रिगुण तुम में बसते-2,तुम आदि माता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
अखंड मंत्र का जाप करे जो,मुँह माँगा पाता-देवी-2
ऋद्धि सिद्धि हो दासी-2,सिद्ध हो वो पूजता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
कोई देव हो या हो देवी,सब रमते तुममें-देवी-2
धर्म अर्थ मिल काम मोक्ष हो-2,जो ध्याता तुम में…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
जो कोई करे आरती हर दिन,कष्ट मिटे उसके-देवी-2
रख जल चरण तुम्हारे-2,जो कहे सिद्ध तब से…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
सिद्ध चिद्ध तपि हंसी युग चारो,श्री भग पीठ निवास-देवी-2
जल सिंदूर जो चढ़ाये-2,सुख चार नवरात्रि विकास…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
अखंड दीप पूर्णमासी करे जो,मुँह माँगा पाता-देवी-2
हर माह करे जो ऐसा-2,परम् पद वो पात…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
वाम भाग में शक्ति बसती,उत्तर बसे हरि-देवी-2
शिव संकल्प तुम्हारे-2,जो कहो ब्रह्म करी…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
।बोलो-जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ की जय।
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