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24 जून 2017 शनिवार से 3 जुलाई सोमवार तक “सर्वमनोरथदात्री गुप्त नवरात्रि” और विश्व गुरु विश्वामित्र वैदिक सर्वग्रहवशीकरण और सर्व सामर्थ्य मनोरथ प्राप्ति सिद्धासिद्ध महामंत्र की महत्वकथा:-

ये उस काल की घटना है जब विश्वामित्र ब्रह्मा और शिव की उपासना करते हुए ब्रह्मस्त्र व् शिवस्त्र प्राप्ति के उपरांत भी वशिष्ठ के ब्रह्मत्त्व से विजय नही प्राप्त कर पाये तब उन्हें अपने भाग्य की विफलता पर बड़ी ही चिंता हुयी इसका कारण उन्हें लगा की ये देवतागण भी इन मेरे विरोधी ऋषि मंडल की और ही है यो ये मेरे साहयक नही बनते ये भी मेरी असफलता को चाहते हुए प्रयत्नशील रहते है तब उन्होंने इन नवग्रहों के वशीकरण हेतु विशेषकर भाग्य के देवता शनिदेव का स्तम्भन हेतु वैदिक रीति से एक विशिष्ठ नवग्रह बंधन यज्ञानुष्ठान करना प्रारम्भ किया ये अनुष्ठान बैशाख की शुक्लपक्ष गुप्तनवरात्री की प्रतिपदा से नवमी तक नवग्रह वशीकरण तंत्र स्त्रोत्र का नियमित एक सो आठ पाठ और नो हजार आहुतियों से प्रारम्भ किया। जिसके परिणाम स्वरूप नवग्रहों के दैनिक कर्म और कर्म के फलों में व्यवधान का प्रारम्भ हुआ वे सब घबराये और गुप्त नवरात्रि की पंचमी के दिन गुरुदेव ब्रह्स्पति जी के पास पहुचे की गुरुदेव कैसे करें ये विश्वामित्र तो वैदिक रीति से गुप्त नवरात्रियों में एक दिन के क्रम से सभी नो दिनों में हम नवग्रहों को अपने वशीभूत करता हुआ स्तम्भित कर अपने अधिकार में कर लेगा और अष्टमी को ये हम सभी ग्रहों के अंतिम ग्रह शनिदेव की वशीभूत और स्तम्भित करते ही सभी कर्मो का फल भाग्य को भी स्तम्भित कर देगा जिसके परिणाम स्वरूप भाग्य के बल से ही पुनः नवीन कर्मों का प्रारम्भ होता है और जब भाग्य ही स्तम्भित हो जायेगा तब नवीन कर्म भी स्तम्भित हो जायेगे यो शीघ्र ही ये सृष्टि चक्र के सभी कर्म और उसके सभी फल स्तम्भित होने से मनुष्य और जन जीव आदि की सृष्टि और परिणाम रुक जाने से सर्वनाश हो जायेगा तब क्या होगा? इसका अति शीघ्र ही समाधान बताओ। तब गुरुदेव ब्रह्स्पतिदेव बोले की देव ग्रहगणों मैं किसी की तपस्या बल को नही रोक या तोड़ सकता हूँ इसके लिए हमे ब्रह्मा व् विष्णु और शिव जी की साहयता लेनी होगी और वही इसका समाधान निकालेंगे सभी ने प्रथम ब्रह्म लोक को प्रस्थान किया ब्रह्मा ने उनके नमन के उपरांत उनके प्रयोजन को जान विष्णु जी के निकट जाकर उनसे समाधान पूछा वे भी शिव जी के साथ ही परामर्श करने के पक्ष में हुए तब सब शिवजी के निकट पहुँचे तो वे उनके प्रयोजन को जानते हुए बोले की हे देवो किसी भी मनुष्य का जन्म ही भूलोक पर होने का अर्थ ही ये है की वो अपनी भूलोक रूपी तपोभूमि पर मनवांछित तप करते हुए मनवांछित सर्वसामर्थाय को प्राप्त कर सकता है केवल मनुष्य ही इस कर्म को त्रिदेव आदि की सामर्थ्य से भी परे होता है यो ही हम भी मनुष्य योनि की लोकलीला हेतु प्राप्त करते हुए तपस्यारत रहकर स्वबल को प्राप्त करते है यो इसका उपाय हम सभी को अपने ध्यान में ये दीखता है की ये द्धितीत नवरात्रि जो गुप्त नवरात्रि कहलाती है ये बनी ही द्धितीय कर्म और उसके फल की प्राप्ति को है ये द्धितीय कर्म है मनुष्य की ब्रह्मचर्य यानि शिक्षाकाल के उपरांत समस्त भौतिक व् आध्यात्मिक लौकिक और अलौकिक मनोकामनाओ की सम्पूर्ण प्राप्ति यो इस द्धितीय नवरात्रि की देवी है पूर्णिमाँ जो अनादि वैदिक परमेश्वर पिता सत्यनारायण भगवान की अर्द्धांग्नि सत्यई की सम्पूर्णता का प्रत्यक्ष स्वरूप सम्पूर्णता को प्रदर्शीत होने वाली महाशक्ति पूर्णिमाँ नाम से जगत विख्यात है ये चारों नवरात्रि के उपरांत उन्हीं का व्रत आता है पूर्णमासी को जो भी मनुष्य इन चारों नवरात्रि को सम्पूर्ण करता हुआ अंत में पूर्णिमा का व्रत करते हुए मनवांछित मंत्रानुष्ठान और यज्ञानुष्ठान करता है वह मनुष्य त्रिलोको को मनवांछित वशीकरण करने की अलौकिक शक्ति प्राप्त कर लेता है यो इस सब नवरात्रि के महादेवी पूर्णिमा ही इसका निदान बताएगी ये विश्वरथ जो वर्तमान में विश्वामित्र के नाम से विश्वविख्यात होने वाला है ये स्वयं हम त्रिदेवो के उपरांत का भगवान सत्यनारायण के ही चतुर्थ मनुष्यावतर है यो इन्हें कोई नही रोक सकता है यो इसका निदान महादेवी पूर्णिमाँ ही बताएगी। ये सुन सभी त्रिदेवो के साथ नवग्रहगण देव सत्यलोक पहुँचे वहां सत्यनारायण देव अपनी योगनिंद्रा में लीन थे और स्वयं सत्यई पूर्णिमाँ उनकी सेवा में वहीं विद्यमान थी सभी को आया देख अति प्रसन्न हुयी सभी का नमन स्वीकार कर मुस्कराते बोली आपका आने का प्रयोजन मुझे ज्ञात है और उसका निदान भी स्वयं सत्यनारायण मुझे बता गए थे की मैं लोकलीला और वेदों को सम्पूर्ण करने हेतु उनकी ऋचाओं को प्रकट करते हुए उनकी महाशक्ति को अवतरित करूँगा तब आप देवी पूर्णिमा उस महाशक्ति को अवतरित होकर सम्पूर्ण करना यो यही सब भूलोक पर चल रहा है यो निर्भय रहो आपका स्तम्भन नही होगा बल्कि आपकी कर्म और फल प्रदान करने की शक्ति में वैदिक ऋचाओं की महाशक्ति सम्मलित होकर अनन्त हो जायेगी अतः आप जो हो रहा है उसे होने दो क्योकि पृथ्वी लोक पर जाते है इश्वरकर्त नियमावली के अनुसार प्रकर्ति में सर्वत्र मायाशक्ति का राज्य होता है उसे कोई नही परिवर्तित कर सकता है उसमें जो यहाँ विचारित करते हुए लोककल्याण मार्ग का अनुसरण किया गया है वहीँ बिन परिवर्तन के भूलोक पर कार्यान्वित होता है यो यही होना है आपकी शक्ति शुद्ध और निर्णायक होगी जो समयानुसार प्रकर्ति में निरन्तर उपयोगिता के कारण अशुद्ध हो जाती है यो वही शुद्धि का ये समय है ये सब जान सभी ने सहमति जताई और अपने अपने लोक चले गए तब नीचे तपस्यारत विश्वामित्र ने अपनी मंत्रोयज्ञानुष्ठान को सम्पूर्ण किया जिसके फलस्वरुप सभी नवग्रहगण उनके समक्ष प्रकट हुए और उनके द्धारा नवीन वैदिक ऋचायुक्त अद्धभुत शक्ति को प्राप्त होकर सम्पूर्ण हुए और इसीके उपरांत विश्वामित्र जी ने चारों वेदों की अपूर्ण वैदिक ऋचाओं को संयुंक्त करते हुए उस महापूर्णिमा महाशक्ति का अवतरण किया जिसका संसार में गायत्री महामन्त्र:- ॐ भुर्व भुवः स्वः.. नाम विश्वविख्यात है जो सनातन धर्म का मूलार्थ है और आगामी अपनी दिव्य संसारी कथाओं में अपने शरणागत आये अपने शिष्य सूर्यवँशी सत्यव्रत अर्थात त्रिशंकु को इस गायत्री के द्धारा अपने स्वर्ग भेजने के प्रयोजन में असफल पाने के उपरांत गायत्री को कीलित किया और इससे भी उर्ध्व महाशक्ति आत्म शक्ति जिसका वेदिक नाम सम्पूर्ण है जिसे अलौकिक भाषा में पूर्णिमाँ कहते है उसका आवाहन किया और इसके बल से त्रिशंकु को नवीन स्वर्ग और नवीन सप्तऋषिमण्डल बनाया और अनगिनत लौकिक और अलौकिक चमत्कार सिद्ध किये जो वर्तमान तक पूर्णिमासी के व्रत को वेदिक रीति से करने पर अवश्य फलीभूत होते और हो रहे है। यो वही विश्वामित्र का “पूर्णिमाँ गायत्री” सम्पूर्ण महामंत्र ये है;-
“सत्य पुरुषायै विद्यमहे ॐ स्त्रियै धीमहि सिद्धायै तन्नो सर्वे ईं पूर्णिमाँ प्रचोदयात्।।”
जो मनुष्य वर्तमान में पूर्णिमा देवी के श्रीभगपीठ की स्थापना करता हुआ उसका सिंदूर और जल से अभिषेक करता है और अखंड घी अथवा तिल के तेल की ज्योति प्रज्वलित करता हुआ इस सिद्धासिद्ध महामंत्र का जप यज्ञ चारों नवरात्रियों में करते हुए अंत में पूर्णमासी की रात्रि को भी करते हुए आगामी दिन प्रथम प्रतिपदा के पहर के प्रारम्भ से पूर्व प्रातःकाल में ब्रह्म महूर्त में सम्पूर्ण करता है तथा अपने अनुसार भोजन बनाकर गरीबों को खिलाता है और सामर्थ्यानुसार दान करता है उसको उसकी सभी चतुर्थ-अर्थ-काम-धर्म-मोक्ष की मनवांछित मनोकामनाएं सम्पूर्ण प्राप्त होती है इसके विषय में ये ही प्रसिद्ध है की:-
वेद पुराण सब गावे महिमा
अर्थ काम धर्म मोक्ष दे असीमा।
सिद्धासिद्ध महामंत्र जपे जो
चारों नवरात्रि और पूर्णिमा।।
तब मिटे निराश दुःख दरिद्रता
सुख पाओ बारम्बार।
जपो सत्य ॐ सिद्धायै नमः
मनवांछित मिले वर अपार।।
??सत्य ॐ पूर्णिमाँ आरती??
ॐ जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ,देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।
जो कोई तुम को ध्याता-2,ब्रह्म शक्ति पाता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
जो करता है ध्यान तुम्हारा,नित सुख वो पाता..देवी-2
जिस चित छवि तुम्हारी-2,सुख सम्पत्ति पाता..देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
ॐ नाम की परब्रह्म तुम हो,ब्रह्म शक्ति दाता-देवी-2
त्रिगुण तुम में बसते-2,तुम आदि माता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
अखंड मंत्र का जाप करे जो,मुँह माँगा पाता-देवी-2
ऋद्धि सिद्धि हो दासी-2,सिद्ध हो वो पूजता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
कोई देव हो या हो देवी,सब रमते तुममें-देवी-2
धर्म अर्थ मिल काम मोक्ष हो-2,जो ध्याता तुम में…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
जो कोई करे आरती हर दिन,कष्ट मिटे उसके-देवी-2
रख जल चरण तुम्हारे-2,जो कहे सिद्ध तब से…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
सिद्ध चिद्ध तपि हंसी युग चारो,श्री भग पीठ निवास-देवी-2
जल सिंदूर जो चढ़ाये-2,सुख चार नवरात्रि विकास…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
अखंड दीप पूर्णमासी करे जो,मुँह माँगा पाता-देवी-2
हर माह करे जो ऐसा-2,परम् पद वो पात…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
वाम भाग में शक्ति बसती,उत्तर बसे हरि-देवी-2
शिव संकल्प तुम्हारे-2,जो कहो ब्रह्म करी…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
।बोलो-जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ की जय।
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