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5 अक्टूबर 2017 दिन गुरुवार को आश्वनि पूर्णिमा को भगवान सत्यनारायण और सत्यई पूर्णिमा के अवतार श्रीमद् यज्ञ भगवान दक्षिणा देवी जयंती कथा


आश्वनी पूर्णिमा जन्म अवतरण
यज्ञ और यज्ञई दक्षिणा देवी।
विष्णु सप्तम अवतार यज्ञ है
यज्ञई लक्ष्मी विष्णु विवाह देवी।।
यज्ञ की वामा यज्ञई
पूर्णिमा की तृतीयावतार।
चार वेद ऋचाएँ मंत्र
करती ले आहूति भक्त उद्धार।।
?अवतरण कथा?
शून्य जगत ब्रह्मांड विहीन
नहीं कोई त्रिगुण शेष।
केवल एक्त्त्व शून्य अनंत
व्याप्त शेष मध्य एक अशेष।।
उसी शून्य मोन हलचल हुयी
एक ज्योति बनी विराट।
प्रस्फुटित हुआ शून्य मध्य
विस्तृत हुआ व्योम अकाट।।
निराकार रूप साकार हुआ
अतिसूक्ष्म सूक्ष्म स्थूल।
कर्ता कारण कर्म फल
एक अद्धैत द्धैत अतुल।।
दो प्रकाश हुए शीतल अग्नि
दो उज्ज्वल और अंधकार।
कृष्ण वर्ण सत्य पुरुष तम्
उज्ज्वल वर्ण रज पूर्णिमा नार।।
एक शेष शाश्वत रहा
सत् गुण रूपी एक बीज।।
यही प्रेम नर नर अभेद
जिसमें लय सृष्टि प्रलय तीज।
सत् गुण स्वरूपी बीज परम्
यही एक्त्त्व ईश्वर सत् नाम।
इसमें ही सर्व जन्म मरण तरण
यो यही नित्य सत्यलोक धाम।।
इसी का नामांतरण यज्ञ है
जो त्रिक्षर सप्त स्वरूप।
क्षर अक्षर पुरुषोत्तम
अर्थ काम धर्म मोक्ष अरूप।।
यज्ञ से जन्मी त्रि व्याहृति
नमः फट् स्वाहा।
एक ब्रह्म बीज नमः है
फट् पुरुष अर्थ नारी स्वाहा।।
यत्र ज्ञे यत्र यज्ञ अर्थ है
जहाँ से ज्ञान वहीं है ज्ञेय।
आत्मा में ज्ञान आत्मा से प्रकट
और अंत आत्मसाक्षात्कार धेय।।
यो इस स्वरूप यज्ञ ही
आत्मा ज्ञेय परमात्मा।
यही अहम सत्यास्मि घोष
यज्ञ भगवान अर्थ स्वात्मा।।
यज्ञ से प्रकट ज्ञान जो
वही ज्योति विशाल ज्वाला।
ज्वल प्रज्ज्वल धूधू त्रि वह्रि
भुर्व भुवः स्वः यज्ञ वधू ज्वाला।।
यज्ञ पुरुष और ज्वाला नारी
ये दो मिलकर हैं एक।
यज्ञ उत्तर मुखी पुरुष अर्थ
ज्वाला दक्षिण मुखी नारी नेक।।
यो ज्वाला नाम दक्षिणा देवी
ये ही यज्ञ वर है प्रसाद।
यो दक्षिणा प्रतिदान अर्थ
तभी मिले यज्ञ वर प्रसाद।।
यज्ञ दो प्रकार इस जगत
भौतिक और आत्मिक यज्ञ।
प्राण अपान संघर्ष अग्नि
जाग्रत विज्ञ कुंडलिनी यज्ञ ।
यो यज्ञ सात प्रकार है
अश्वमेध राजसूयज्ञ।
ब्रह्म देव पितृ भूत मनुष्य
सात दक्षिणा वर संग यज्ञ।।
प्रथम यज्ञ प्रारम्भ करो
और अपनी अंजुली लो आशीष।
सम्पूर्ण शरीर स्पर्श करो
नमन करो यज्ञ दक्षिणाधीश।।
सात आहुति यज्ञ दो
तभी यज्ञ करो प्रारम्भ।
यज्ञ पूर्ण पर यही करो
शुभता मिले मिट सब दम्भ।।
यज्ञ कर्ता को दक्षिणा दो
और पाओ मनवांछित वरदान।
यही कथा यज्ञ भगवान जयंती
जिसे सुन भक्त बने महान।।
पूर्णिमा अवश्य यज्ञ करो
और पँच द्रव्य खीरयुक्त दान।
आहुति दो यज्ञ कुण्ड
हो पँच मनोरथ पूर्ण कल्याण।।
वेद पुराण कहे यज्ञ महिमा
यज्ञ से प्रकट सर्व सिद्धि सार।
जो नित भक्त यज्ञ है करता
मिले मनवांछित वर अपार।।
?�जय यज्ञ देव जय ज्वाला दक्षीणा देवी?�
?�जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः?�

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