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24 जून से 3 जुलाई 2017 नवरात्रि और श्री भगपीठ के अद्धभुत नवांग रहस्य


*श्री का अर्थ है सम्पूर्ण एश्वर्य।
और भग का अर्थ है भगवान।
*और भग का अर्थ योनि को धारण करने वाली ईश्वरी।
*यो इस भग में स्त्री और पुरुष(+,-) की संयुक्त शक्ति का वास है इसी को अर्द्धनारीश्वर भी कहते है।
*यो ये द्धैत यानि दो स्त्री और पुरुष का संयुक्त स्वरूप भग अपने सम्पूर्णत्त्व के कारण ही पूर्णिमाँ कहलाती है।
*पीठ का अर्थ है मूल चक्र अर्थात ये सम्पूर्ण शरीर ही पीठ कहलाता है।जिसमें ये स्त्री और पुरुष शक्ति का सम्पूर्णत्त्व प्रकट और प्रकाशित होता है।
यो श्री भग पीठ का सम्पूर्ण अर्थ है-एश्वर्य युक्त ईश्वर और ईश्वरी रूप अद्धैत सम्पूर्ण स्वरूप यही सम्पूर्णता का नाम ही पूर्णिमा है इसी को योग में कुंडलिनी शक्ति कहते है जो ऋण और धन के एक होने से मूलधार से सहस्त्रार चक्र तक सम्पूर्ण होकर पूर्णिमा बनती है तभी सनातन धर्म में सभी पूर्णिमाओं का अन्य सभी तिथियों से अधिक धार्मिक महत्त्व है।
*भगवान जो पंचाक्षर से बना है -भ यानि भूमि अर्थात मनुष्य का मूलाधार चक्र और ये पृथ्वी यानि हमारी माता का नामार्थ है।
*-ग यानि गगन अर्थात आकाश ये मनुष्य के कंठ चक्र है और ये सहस्त्रार चक्र भी है ये गगन या आकाश पिता का नामार्थ है।
*-व यानि वायु ये मनुष्य का ह्रदय चक्र है जहाँ मन और समस्त भावनाएं और उनका दर्शन होता है।
*अ-अग्नि अर्थात नाभि चक्र यहाँ से मनुष्य के दसों प्राण एकत्र होकर कुंडलिनी बनती है।
*न-नीर अर्थात जल ये मनुष्य का स्वाधिष्ठान चक्र है जहाँ से मनुष्य को प्रथम अहं का ज्ञान और भान होता है यहीं से पुरुष में बीज निर्माण और चैतन्यता और उसकी उर्ध्व या निम्न गति होती है और इसी चक्र से स्त्री में भी बीज का निर्माण और ग्रहणता के साथ गर्भावस्था और जीव की उत्पत्ति आदि होती है।
यो भगवान का संछिप्त है भग अर्थात भ यानि स्त्री+ग यानि पिता=भग।।ये संयुक्त शक्ति ही एक ईश्वर यानि ब्रह्म कहलाता है।स्त्री और पुरुष रूपी भग का एक रूप का दूसरा नाम प्रेम है।
यो ही कहते है की प्रेम ही भग यानि ईश्वर है या भग ही प्रेम है।
भगवान यानि पंचतत्वों का एक होना ही कुंडलिनी जागरण है जिसके नो स्वरूप है यही नवदा भक्ति कहलाती है- 1-श्रवण-2-कीर्तन-3-स्मरण-4-पादसेवा-5-अर्चन-6-वंदन-7-दास्य-8-सख्य-9-आत्मनिवेदन।।
ये ही नो मनुष्य की आत्म भक्ति के नो सोपान या स्तर है जिन्हें श्री भग पीठ में नो पहढ़ियों के रूप में दर्शाया गया है।
इस श्री भग पीठ के मूल में जो योनि कुण्ड बना है वो ब्रह्म मातृक योनि मुद्रा है यह प्रत्येक मनुष्य स्त्री और पुरुष के आज्ञाचक्र में एक उर्ध्व ज्योति के रूप में होती है जिसके मध्य में एक त्रिकोण बना होता है जो तम्+रज+सत् अथवा शरीर+मन+आत्मा का त्रिगुण प्रतीक है इसी से विश्व की सृष्टि हुयी है इसी से त्रिकाल की सृष्टि हुयी है यो यही त्रिकुटी पर्वत भी कहलाता है जिसमें वैष्णवी शक्ति -सरस्वती+लक्ष्मी+काली=वैष्णो देवी का तीर्थ है यही महाकाल का भी तीर्थ है और यही ब्रह्मा+सरस्वती,विष्णु+लक्ष्मी, शिव+पार्वती का भी संयुक्त तीर्थ है यही सरस्वती+गंगा+यमुना= त्रिवेणी का संगम कहलाती है यही अनन्त नामो से वेद पुराण योग में वर्णित है इसी उर्ध्व त्रिकोण योनि स्वरूप में पतन नही केवल विकास है इसी की सिद्धि “योनि सिद्धि” कहलाती है और इसी में केंद्र में ईं बीज मंत्र प्रकट है जो कुण्डलिनी का मूल बीज मन्त्र है ये इस ईं मंत्र के नीचे प्रकट अर्थात जिससे ये ईं प्रकट है वह मूल बीज को पुरुष सत्य और स्त्री ॐ का संयुक्त बीज है जो बिंदु स्वरूप है यही अनादि ईश्वरीय बीज है जिससे सब जीव जगत आदि उत्पन्न और पोषित और फलित होते हूए सिद्धायै भावार्थ देता है और अंत में पुनः बीज में ही लीन हो कर बीज ही बन जाते है इसी बीज को प्रकाशित रूप में त्रिकोण में दिखाया गया है की यही बीज ही नमः है यही प्रस्फुटित होकर फट् रूप चारों दिशाओं में फैलता हुआ अर्थ-धर्म-काम और मोक्ष या ब्रह्मचर्य और ग्रहस्थ और वानप्रस्थ और सन्यास या चारों वेद कहलाता है इसी का सम्पूर्ण प्रकाशित चक्र ही स्वाहा भावार्थ देता 108 पुराण अर्थ है।जो इन सत्य पुरुष और ॐ स्त्री तथा इनके प्रेम मिलन से बनने वाली ये सिद्धायै यानि सभी प्रकार से परिपूर्ण सृष्टि संसार है और पुनः यही अपने मूल स्वरूप नमः बीज में लय होने पर निराकार स्वरूपी ईश्वर कहलाता है तथा इसी निराकार बीज नमः से पुनः ईं कुंडलिनी के रूप में प्रकट होकर फट् यानि प्रस्फुटित होती हुयी स्वाहा यानि विस्तृत होकर पुनः सम्पूर्ण हो जाये पुनः साकार बन जाये इस भावार्थ को अपने से प्रकट करता हो वही सिद्धासिद्ध महामंत्र- सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा।। कहलाता है।।यो इस महामंत्र को जानने वाले को मांत्रिक कहते है और जो इस महाभावार्थ को उसकी सौलह कलाओं- अरुणी,यज्ञई,तरुणी,उरूवा, मनीषा,सिद्धा,इतिमा,दानेशी, धरणी,आज्ञेयी,यशेषी,एकली,नवेशी,मद्यई, हंसी के साथ अपने पंचतत्वी शरीर तन में न्यास करने को तंत्र और इस कला को जानने वाले मनुष्य को तांत्रिक कहते है तथा जो नमः और ईं तथा फट् व् स्वाहा के चतुर्थ क्रम को प्रत्यक्ष करता हुआ इस संसार रूपी भौतिक और आध्यात्मिक जगत यानि यंत्र में उपयोग करता है वह यांत्रिक वैज्ञानिक कहलाता है यही मंत्र और तंत्र तथा यंत्र का एक स्वरूप ही पूर्णिमा ज्ञान है और जो इस सम्पूर्ण ज्ञान का ज्ञाता है वही सच्चा गुरु है तब वो ही अहम सत्यास्मि का आत्मसाक्षात्कारी कहलाता है।यो इसी महाज्ञान को ग्रहण करने वाला शिष्य और देने वाला गुरु है इसी का पर्व गुरु पूर्णिमा कहलाता है यही श्रीभगपीठ का सहज से गूढ़तम ज्ञान है जानो और मानो तथा मुक्त हो जाओ।।
?सत्य ॐ पूर्णिमाँ आरती?
ॐ जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ,देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।
जो कोई तुम को ध्याता-2,ब्रह्म शक्ति पाता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
जो करता है ध्यान तुम्हारा,नित सुख वो पाता..देवी-2
जिस चित छवि तुम्हारी-2,सुख सम्पत्ति पाता..देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
ॐ नाम की परब्रह्म तुम हो,ब्रह्म शक्ति दाता-देवी-2
त्रिगुण तुम में बसते-2,तुम आदि माता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
अखंड मंत्र का जाप करे जो,मुँह माँगा पाता-देवी-2
ऋद्धि सिद्धि हो दासी-2,सिद्ध हो वो पूजता…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
कोई देव हो या हो देवी,सब रमते तुममें-देवी-2
धर्म अर्थ मिल काम मोक्ष हो-2,जो ध्याता तुम में…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
जो कोई करे आरती हर दिन,कष्ट मिटे उसके-देवी-2
रख जल चरण तुम्हारे-2,जो कहे सिद्ध तब से…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
सिद्ध चिद्ध तपि हंसी युग चारो,श्री भग पीठ निवास-देवी-2
जल सिंदूर जो चढ़ाये-2,सुख चार नवरात्रि विकास…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
अखंड दीप पूर्णमासी करे जो,मुँह माँगा पाता-देवी-2
हर माह करे जो ऐसा-2,परम् पद वो पात…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
वाम भाग में शक्ति बसती,उत्तर बसे हरि-देवी-2
शिव संकल्प तुम्हारे-2,जो कहो ब्रह्म करी…देवी जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ।।
।बोलो-जय सत्य ॐ पूर्णिमाँ की जय।
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