?सत्यास्मि शुभ प्रातः प्रज्ञा उपदेश?
शिष्य बनो शीश त्याग
और ज्ञान की रख कर भूख।
श्रवण सतर्क द्रष्टि खुली
स्म्रति रख मन एकाग्र अचूक।।
मधुर वाणी प्रश्न करो
जिज्ञासा का रख भाव।
अवश्य गुरु उत्तर मिले
कृपा संग मिटे आत्म आभाव।
भावार्थ?जब गुरु के पास जाओ अपना अहंकार रूपी शीश को झुका कर सहज बेठो और गुरु सम्मुख प्रेम वाणी से जिज्ञासा का भाव रखते हुए प्रश्न करो और जब गुरुदेव बोले तब उनकी और ही सतर्क दृष्टि रखते हुए उन्ही की ज्ञान चर्चा को अपने कानों को खुले रख कर अपनी स्म्रति व् मन को एकाग्र करते हुए उनका दिया उत्तर प्राप्त करो तब उस शिष्य रूपी भक्त के सभी आत्म आभाव गुरु कृपा प्राप्त करते हुए मिट जाते है..
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