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शुभ सत्यास्मि ज्ञान प्रातः

शिष्य निज दुःख समाधान को
जब पूछे सफल उपाय।
तब द्रवित होकर श्री गुरु
जो भी वचन बताये।।
उस बताये वचन को शीघ्र करे
और श्रद्धा रखे भरपूर।
वही कृपा बन फलित हो
दे मनचाहा फल प्रचूर।।
गुरु शक्ति उस नाम है
जो नर नारी संयुक्त।
ये विशुद्ध महाशक्ति परम्
ये काल अकाल महाकाल मुक्त।।
यो ये जीवंत कल्पवृक्ष है
जो गुरु रूप जग प्रकट।
यो तभी कहे वेद पुराण सब
गुरु रूप ईश्वर तुम निकट।।
भावार्थ-ये जितने भी काल अकाल महाकाल या स्थूल, सूक्ष्म,कारण आदि नाम है ये सब के सब समय सीमा के नाम और अर्थ है जैसे तुम एक आत्मा हो और उसकी शक्ति जो अनन्त है उसे जानने पर तुम ही परमात्मा हो जाते है जेसे तुम ही बाल्य से युवा और वयस्क व् विवाहित सन्तान कर्ता आदि होते हुए व्रद्ध होकर अपने ही कर्मो के द्धारा म्रत्यु को प्राप्त होकर पुनः जीवन की प्राप्त करते हो जेसे बीज से पौधा और वृक्ष और फल और पुनः बीज होता है वेसे ही तुम स्वयं हो और गुरु ठीक यही शक्ति है जो स्त्री और पुरुष की संयुक्त शक्ति का महास्वरूप कुण्डलिनी है यो वही महाबीज भी है जिससे सब बीज प्रकट होते और फलते और अंत में उसी में समाहित हो जाते है यो वेद पुराण आदि सभी धर्म ग्रन्थ श्री गुरु को ही जीवंत कल्पवृक्ष कहते है जिसकी छाँह में बैठ कर जो भी भक्त अपने व्याकुल मन से इच्छा करता है वही तुरन्त पाता है परंतु गुरु ज्ञान अर्थ भी है जो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है यो तुम्हारा प्रश्न कितना हितकारी है उसी के अनुरूप गुरु उपाय बताता है और जो संशय रखे बिना जो गुरु ने कहा उसे करता है वही फलित होता है क्योकि गुरु आदि जीवंत महाशक्ति है अब फल तुम्हारे हाथ में है जो गुरु कथन में संशय करता है उसको प्राप्त होने वाला फल उतना ही प्रतिशत लाभ को देता है और तुम्हारा संशय ही तुम्हारा अहित बनकर उस गुरु के दिए फल को दूषित करता हुआ तुम्हें अधूरे रूप में प्राप्त होता है जिसका दोष भी तुम गुरु पर ही डाल देते है यो स्वयं के प्रश्न और उसकी प्राप्ति को किये गए कर्म को भी जांचो तब ही सच्ची सफलता मिलेगी।
?जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः?

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