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रानी शर्मा की गुरु मंत्र भक्ति और केंसर से मुक्ति तथा भक्तिअंत


ये भक्त बहुत वर्षों से जुडी हुयी थी परन्तु प्रारम्भ के वर्षों में केवल कोई समस्या होती तभी आश्रम आती थी एक बार ये अपने एकलौते लड़के मोहित के विषय में पूछने आई मेने कहा की ये सामान्य और विघ्नों के साथ पढ़ेगा इसके जीवन में अनेक संकट अचानक आएंगे जैसे गन्दे पानी में डूबना और भविष्य में तुम पर भी मृत्यु तुल्य रोग आएगा ये बोली गुरु जी मैं तो ये जानती हूँ की गुरु की शरण में रहने पर सब संकट कट जाते है बस अपनी शरण दिए रहना और मैं तो आपकी ही हूँ और भी भक्त उस समय वहाँ बैठे थे मैं बोलो की तुम ये रटा हुआ क्यों बोलती हो मेरी कहाँ से हो? वो बोली कैसे और सभी भक्त बोले हम कैसे आपके नहीं है बताओ? मैं बोला की भई रानी तुम्हारा मन और तन तुम्हारे पति अशोक का है और धन तुमपे है नही तब तुम कैसे मेरी हुयी सब हंस पड़े बोले सही कह रहे हो गुरु जी हम रटा हुआ ही आरती में भी बोलते है की-तन मन धन सब तेरा.. मैं बोला आशीर्वाद है चिंता नही गुरी मंत्र जपती रहो तब एक दिन वे आई बोली गुरु जी आज तो आपका लिखा सत्य हो गया और कृपा से बच गए की ये मोहित घर से सड़क की और जा रहा था पास में गन्दा बड़ा गहरा नाला है जो कृष्णानगर से डीएम रोड तक जाता है ये अचानक सामने से आती दूसरी बाइक से अपनी साईकिल बचाने में उस नाले में जा गिरा उसकी दीवारे भी ऊंचीं है वहाँ भी नही चढ़ पाया और डूबने लगा तब कौन उस गन्दे नाले में गुसे? तभी आपकी कृपा हुयी की एक बुड्ढे बाबा ने अपनी छड़ी का मुड़ा हत्था इसे पकड़ाया तब इसने उसे पकडा तब और लोगों ने ऊपर खींचा ये गन्दा ही घर आया तब आपकी बात याद आई आशीर्वाद रखो गुरु जी..मैं बोला आशीर्वाद है चिंता नही..तब के बाद ये आश्रम में ज्यादा आने लगी सेवा देने लगी आगे चलकर इन्हें स्तन कैंसर हुआ और इनकी किमियोथेरेपी चली तब इनकी गुरु मंत्र भक्ति प्रकट हुयी ये फोन कर मुझसे कहती गुरु जी चाहे मैं किमियोथेरेपी कराकर किसी भी वक्त रात्रि को दिल्ली से आउ आप जरूर मिलना मैं बोला जरूर मिलूंगा तब ये आती मेरे से आशीर्वाद लेती इनके बाल उड़ गए आँखे कम देखने लगी पर ये गुरु मंत्र का अखंड जप करती ही रहती और कहती की मरना भी हो तो कम से कम जप करती ही मरुँ फिर कहती गुरु जी इन दो लड़का लड़की बच्चों का क्या होगा अभी छोटे ही है मैं बोला कुछ नही सब ठीक होगा तब ये कर्ज से इलाज करा रही थी की सरकारी सर्विस में देर से मिलेगा जरूरत अभी है तब दान भी खूब करती की कम से कम मेरे रोग में धन खर्च हो रहा है कुछ पूण्य दान में जाये कुछ पाप कटे भक्तों ये ही है पूर्वजन्म का कोई पूण्य बल जिसके फलस्वरुप इनकी आस्था गुरु से नही गिरी अन्यथा अनेक भक्त ये कहते गुरु को दोष देते चले जाते है की हमें उनसे कोई लाभ नही हुआ सब झूंट है जबकि पाप रोग दोष अपना और अपराधी गुरु को बना जाते है ऐसे अनेक उदाहरण है ईश्वर उन्हें सदबुद्धि दे खेर आगे ये हुआ ये जब भी अस्पताल जाती अनेक पूर्व मिले रोगी कम हो जाते वे इसी रोग में मृत्यु पाते गए इन्हें पता चलता यो ये निराश होने के स्थान पर और भी प्रबलता से गुरु मंत्र जपती थी तब ये ठीक हुयी इनके स्तन का ऑपरेशन भी सफल हुआ और वहाँ एक कटोरी सी लगी जो बाद में निकल गई पूर्ण स्वस्थ हुयी तब इनकी बाह नही उठती थी पर इन्होंने आश्रम हॉल में झाड़ू और पोछा लगाना प्रारम्भ किया उसके उपरांत ग्यारह माला यज्ञाहुति देती तब चाहे बरसात आओ हवनकुंड पर कुछ हिस्से में बुँदे इनको भिगो देती पर ये पूरा ही यज्ञ बिना इधर उधर देखे एक मेरे बताये नियम अनुसार की यज्ञ की ज्वाला में अपने इष्ट या गुरु या मनोरथ की कल्पना करते हुए वहीं अपना खुली आँखों से एकाग्रचित्त त्राटक करते ध्यान लगाओ यही नियम ये करती हुयी उठती तब इस नियम और यज्ञ करने का परिणाम ये हुआ इनको इनकी रामनोमी जेवर और सरकारी क्वाटर और सुसराल में पूरा हिस्सा हाथरस में मकान मिला लड़का भी ठीक पढ़ प्राइवेट जॉब में लगा और कई बार ये यज्ञ कर रही थी की अंघेरा हो गया इन्हें चिंता नही थी बल्कि मुझे चिंता होती की कैसे ये घर बारिश में जाएँगी इन्हें दीखता कम है पर देखो भक्ति में शक्ति की जेसे ही इनका यज्ञ समाप्त होता अप्रत्याशित रूप से कोई न कोई गाड़ी वाला भक्त आश्रम ये कहता आ जाता की इधर से निकला जा रहा था सोचा की गुरु जी के दर्शन करता चलु वेसे तो बारिश हो रही है गुरु जी मिले न मिले पर गद्धी को ही प्रणाम कर आता हूँ और तब मैं कहता अरे तुम इन्हें खालसा स्कुल के सामने गली में घर तक छोड़ आना तब वो भक्त ऐसा ही करता एक बार अपनी आध्यात्मिक स्थिति को देखते हुए की इस संसार में क्या रखा है कौन काम आता है ना पति ना बच्चे ना रिश्तेदार सब एक स्तर तक ही संग दे पाते है केवल काम आता है तो अपना जप तप ध्यान और गुरु संगत यो अनेक बार अपनी ये तीर्व इच्छा व्यक्त की कि गुरु जी मैं तो आपके पास ही अधिक लगाना चाहती हूँ आप जैसा चाहे बताये मेने कहा ठीक है कल आना आज रात्रि इसी विषय को लेकर ध्यान करना की तुम्हारी आत्मा में क्या सन्देश आता है की तुम्हे क्या करना चाहिए मेरी नही अपनी अन्तःप्रेरणा की सुननी चाहिए नही तो अंत में गुरु को ही दोषी ठहराया जाता है की मैं तो आपके कहे अनुसार चली मुझे कुछ नही मिला खेर उस रात्रि मेने उन्हीं का ध्यान किया लगभग अर्द्धरात्रि उपरांत मुझे बड़ी तीर्व उर्जात्मक तरंग आई मुझे स्पष्ट लगा की इन्हें यज्ञ कर्म से ही अभी जुड़े रहना चाहिए ये भविष्य में अभी बहुत संसारी काम और पुनः रोग से पीड़ित होंगी और मैंने इनका ध्यान बंद किया तब आगामी दिन ये दोपहर को आई आते ही बोली गुरु जी आज बड़ा अद्धभुत अनुभव हुआ की अर्द्धरात्रि में लाईट चली गयी थी मैं जप करती लेटे ही ध्यान कर रही थी की एक तेज प्रकाश का अनुभव हुआ और उसके बाद उसी में आप ये कह रहे है की तू केवल यज्ञ कर उसी से तेरा कल्याण होगा यो कह प्रकाश लुप्त हो गया मैं अचंभित सी होकर बैठ गयी और इस दर्शन पर चिंतन करने लगी तब सोई यो अब मैं यज्ञ ही से जुडी रहूंगी यो यज्ञ के प्रति आस्था अधिक रही और उन्हें यज्ञ ज्वाला में एक व्रद्धावस्था के योगी दीखते थे यो भक्तों ये जानो की नियम में श्रद्धा रख जो भक्ति करता है उस नियम से उकताता नही है उसी के साथ सर्वत्र मनोरथ पूर्ण चमत्कार होते है जैसे की रानी की सास ने भी यहाँ गुरु मंत्र दीक्षा ली थी उनके पति शुगर के मरीज थे और उनकी स्थिति ज्यादा गम्भीर रहती थी तब गुरु मंत्र प्राप्ति के उपरांत कई वर्ष बाद उनके पति दिन के समय स्वर्गवासी हुये चमत्कार देखिये या प्रारब्ध कहे दोनों एक ही बात है की जैसे ही उनकी अर्थी ने घर की चौखट पार की तुरंत ही ये भक्त पत्नी भी स्वर्गवासी हो गयी अब तो पुरे इलाके में हल्ला मच गया की अरे सति माता के दर्शन कर लो..और अखबारों में ये खबर छपी और लोगों ने इनके परिवार से अनुरोध किया की आप अपनी माता पिता की समाधि बनवाये हम सब ऐसी सती माता की पूजा किया करेंगे चूँकि ये सब यहाँ जुड़े थे बोले की इस पर विचार करेंगे बाद में मुझसे पूछा मैं बोला की भई ऐसा करके समाज में अन्धविश्वास मत फैलाना ये सब तुम्हारी माता के गुरु तप जप दान का कल्याणी फल और पूर्वजन्म का कर्मफल है ये घटना से ज्ञान ये है की जो भी भक्त गुरु भक्ति से गुरु मंत्र जपता हुआ प्रबलता से आत्म इच्छा करता है वह अवश्य मनवांछित फल पाता है आगे ये भी शनिमन्दिर पर गददी पर अपनी शनिवार को सेवा देती रही समयानुसार इनका प्रारब्ध की प्रबलता में जब रोग दोष और मनोरथ सब ठीक और पूर्ण हो गए जैसा मेने इनको भविष्वाणी कही थी वही सत्य हुयी की इन्होंने यज्ञानुष्ठानों के प्रति अनियमितता करनी प्रारम्भ कर दी और कष्ट है ये कहकर आना कम किया और अल्प होते होते अपने संसारिक मनोरथ जिनकी इन्हें प्राप्ति की इच्छा थी उन्ही में रमने से आश्रम आना छूट गया स्थानपरिवर्तन भी हो गया और पुनः रोग के के लिए दिल्ली जाती रही ये बहुत भली श्रद्धालु महिला भक्त रही “यही है भक्ति में शक्ति और प्रारब्ध रिक्ति”।तो भक्तों सकारात्मक पक्ष ही देखना और अपनाना चाहिए यो सदा.. गुरु मंत्र जप ओर सेवा दान,करता सदा भक्त कल्याण..

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