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भक्त सुनील वर्मा की प्रेत साधना और पतन


ये पुरानी घटना है की ये भक्त सुनील वर्मा एक सीए के यहाँ काम करते थे और भक्त राजीव चौ.किताबघर वाले के साथ राजेश्वर मंदिर पर कीर्तन मंडली आदि में संगत देते थे बड़े परेशान थे यो यहाँ आये इनके विषय में बताया तब ये विश्वास कर बोले गुरु देव मुझे जब भी कोई काम करता हूँ ऐसा लगता है की कोई शक्ति मुझे वहाँ से खींचकर किसी और नई जगह ले जाकर फिर से उसी पतन पर पहुँचा देती है मैं जाता कहीं हूँ और पहुँचता कहीं हूँ यो परिवार में भी कलह और कर्ज की स्थिति के साथ लिया दिया वापस नही होता है मैने सुन कर इसे सहज उपाय और गुरु मंत्र दिया यो मेरे बताये उपाय से शान्ति पाने लगा परन्तु इसका दुर्भाग्य जोर मारता रहा एक दिन ये अचानक दोपहर को मेरे पास आया बोला गुरु जी मैं खुर्जा की ओर् जा रहा था तो बीच में से ही ऐसा लगा की लौट चलु और बस आपके पास आ गया मैने इस तब अपनी चाय से प्रसाद दिया और कहा चल आज तेरा कुछ करता हूँ तब थोड़ी देर बाद इसे मैने बैठने के अपने तख्त के सामने नीचे बैठाया और इससे कहाँ अब केवल मेरा ही बिना किसी मंत्र जप आदि के अंतर ध्यान करते रहना जबतक मैं उठने को नही कहूँ और मेने इसके सिर पर हाथ रख कर हनुमान चालीसा के इक्कीस पाठ किये और एक पँच मुखी रुद्राक्ष मेरे पास पड़ा था उसे देते कहा इसे कलावे में कर अपने गले में बांध ले और अभी जाकर श्मशान वाले मन्दिर में शिवलिंग पर दूध जल और फूल चढ़ाना और वहाँ श्मशान में जाकर किसी भी पेड़ के नीचे अपने बीच की ऊँगली में पीन चुभो कर दो तीन बुँदे टपका देना और पुनः शिवलिंग के पास बैठ कर ध्यान करना और वहीं नित्य सेवा देते ध्यान करना और किसी से ये क्रिया नही बताना जा तेरा भाग्य बदल जायेगा और अब यहाँ जल्दी में नही आना जब जरूरत लगे आना तब संयोग देखो इसका भाग्य देखो की उस दिन गर्मियों के दिन थे और अमावस्या भी थी अब हुआ ये की इसने उस दिन ऐसा ही किया और इसके साथ जो नकारात्मक शक्ति थी वो सकारात्मक हो गयी इसे कुछ दिनों बाद ही उस शिव मन्दिर में एक वृद्ध व्यक्ति के दर्शन होने लगे इसने उनसे पूछा तो की आप कौन हो वे बोले मैं इस मन्दिर का स्थापक हूँ कुछ शाप वश अभी यहीं हूँ शीघ्र ही मेरी मुक्ति अगले जन्म को होगी यो उन स्वामी जी की कृपा से तुझे ये दर्शन लाभ हो रहा है उस वृद्ध आत्मा ने कहा की तुझसे तेरे गुरु ने श्मशान में रक्त बूँद चढ़ाने का आदेश दिया था तूने वह नही मान कर शिवलिंग पर हथेली से निकाल चढ़ाकर ये मंदिर भी अशुद्ध कर दिया है यो अब तुझे जो स्थायी सिद्धि होती उसके स्थान पर सब अल्प और दूषित सिद्धि के दर्शन होंगे यो अब शेस समय में जितना बने शुभकर्म करना तो तुझे बहुत लाभ होगा मैं यहीं से तेरी साहयता करूँगा ये बात अनेक दिन बाद आकर इसने मुझसे उस दर्शन को कहा तब मैने ये आश्रम में एक कमरे की अलग गद्दी बना वहाँ बैठता था ये वहाँ आकर एक दिन ध्यान करने लगा और झका झुका सा बैठा हुआ ही गम्भीर ध्यान में पहुँच गया और फिर गहरा साँस लेकर चैतन्य होकर बैठा तब आश्चर्य से बोला की स्वामी जी आज मेरे मन संकल्प हुआ की ये स्वामी जी का पूर्व जीवन क्या और कहाँ हुआ ये जानना चाहता हूँ यो मैने ध्यान लगाया तो वही वृद्ध मेरे पास आकर खड़े हो गए और बोले चलो दिखता हूँ तब हमें हिम से भरा विशाल पहाड़ में एक गहरी गुफा दिखाई दी उसके अंदर जाने पर एक व्रद्ध संत जिनकी दाढ़ी और जटायें इतनी विशाल और बर्फ में बढ़ कर दब गयी थी वे वहाँ सिद्धासन लगाये ध्यानस्थ बैठे थे मैने इनके और समीप जाने का प्रयास किया की इनके पास जाकर इन्हें प्रणाम कर आऊ तो व्रद्ध बोले अरे वहाँ मत जाना ये वही स्वामी जी है जो यहाँ समाधिस्थ है और अपने योग शरीर से किसी योग विषय लीला को लेकर वहाँ अपना उद्धेश्य पूर्ण कर रहे है यो तुम और मैं इनके ओरामण्डल में आते ही फिर कभी यहाँ से वापस नही जा पाएंगे यहीं समाहित हो जायेगें तभी लगा जैसे हम उनकी शक्ति से खींचने लगे और जोर लगा कर वहाँ से वापस आ गए यो साँस सा चढ़ा हुआ है गुरू जी ये क्या दर्शन है तो मैं स्वयं सुन कर बोला भई इसमें मैं क्या कह सकता हूँ ये तुम्हारा दर्शन है मेरा नही इसकी व्याख्या और चिन्तन तुम करो मैं नहीं और सब भी बोले गुरु जी आप बताना नही चाहते है मैं बोला भई यदि ये सत्य है तो मुझे स्मरण नही रहेगा क्योकि जानने पर फिर अपना उद्धेश्य पूर्ति का और उसके संघर्ष का सारा विषाद और आनन्द ही समाप्त हो जाता है यो यही आत्म विलुप्ति होकर कार्य करना ही वर्तमान जीवन है चलो इस पर भी चिंतन करूँगा पर मुझे ऐसा कुछ अभी नही लगा है लगा तो अवश्य बताऊंगा अनेको महीनों ये आश्रम आया नही फिर एक दिन ये मंडली के साथ आया बोला की गुरु जी इस बीच मैने अनेक चमत्कार देखे और सच में मैं आपके पास यूँ नहीं आया की मैं इस बीच पेसो का सट्टा और ताश खेलता जिसमें मुझे वे बुड्ढे दूसरे के पत्ते बता देते यो मैं धीरे धीरे जीतता हुआ अपना बहुत सा कर्जा उतार पाया चूंकि आपसे पूछता तो जरूर मना कर देते यो यहाँ नही आया अब एक दिन उन्ही वृद्ध ने कहा की जा तेरे गुरु जी बीमार है उन्हें देख आ उन्हीं की कृपा से ये हो रहा है मेने फिर भी देरी करी तब वे बोले की अब तेरे पाप बढ़ रहे है तू जो कर रहा है उसकी क्षमा मांग आ वेसे भी अब कुछ दिनों बाद मैं भी चला जाऊंगा यो आपके पास आया हूँ की क्षमा कर दो मैं ये सुन बोला की भई यही तेरा भाग्य है यो क्या कर सकता हूँ जा तपस्या बढ़ा नही तो भविष्य अच्छा नही है तब वो चला गया एक दिन उसने देखा की वे बुड्ढे बीमार है और इनके शरीर पर पट्टी बन्धी है और जा रहे है ये बोला ऐसा कैसे हो गया वो बोले तेरे कर्मों का फल मुझे भी मिल रहा है यो मेने स्वामी जी से मुक्ति की अंतर इच्छा की थी यो उन्होंने प्रेरणा दी की जाओ मुक्त हो जाओ यो मैं अब नही दिखूंगा तुझे और चले गए बस इस सिद्धि के जाते ही वो भक्त वर्मा मुझे कोसने लगा की मैं स्वामी जी के पास जाकर नही बताता तो ऐसा नही होता उन्हें पता नही चलता अब से मैं भी उनके पास नही जा रहा हूँ उसके पास के सभी मित्र जो यहाँ आते यह उसे समझाया की अरे यही तो उन बुड्ढों ने कहा था की अब तेरा पाप बल बढ़ रहा है यो तेरी बुद्धि भी दुर्भावना ग्रस्त हो गयी है वो नही माना अपने तर्क देता रहा फिर सबने मुझसे कहा की गुरु जी कुछ करो मैं बोला क्या करूँ उसका यही प्रारब्ध है भविष्य में देखूंगा तुम अपने कर्म सुधारो इस घटना से ज्ञान लो।
यो भक्तो इस कथा से ये ज्ञान मिलता है की गुरु अपने पूण्य बल से शिष्य को इस योग्य बनाता है की वो सम्भल जाये पर अनेक जन्मों के कर्म उसे अपना भी फल भोगने को बाध्य कर देते है यो जब आपका शुभ समय चल रहा हो ठीक तभी ही अपने शुभकर्मों की खूब व्रद्धि कर लेनी चाहिए अन्यथा अब क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत।बुरे समय के आने पर कुछ नही होता है।
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