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स्वामी नेमपाल सिंह जन्म-15 अप्रैल 1927 और मृत्यु 26 जनवरी 2011

ये स्वामी नेमपाल सिंह जन्म-15 अप्रैल 1927 और मृत्यु 26 जनवरी 2011और अनेक बार जेल गए और ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे,अनेक बार चुनाव हारे और 1973 से 77 तक कांग्रेस से जिला परिषद के चेयरमैन रहे और अंत में राजनीती में अपराधीकरण के प्रवेश को लेकर राजनीती 1991 में छोड़ दी और उस समय सन् 1962 में उस क्षेत्र में शिक्षा की व्यवस्था कम होने से इन्होंने इलना परवाना में एक लोक किसान इंटरकालिज के संस्थापक इसके लिए उन्होंने अपनी 14 बीघा जमीन बेच दी थी। और आजीवन प्रबंधक रहे तथा इसी विषय आदि को लेकर पैदल क्षेत्र भ्रमण साधू और गृहस्थी भी रहे स्वर्गीय व्यक्ति के दोनों हाथों की छाप है।जिसका विश्लेषण हस्तरेखा अध्ययन वाले जिज्ञासुओं के लिए अपने पास उपलब्ध इन चित्रों से स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहे है की..
यहाँ
अंगूठे ऊँगली भरी हुयी है।
मस्तिष्क रेखा गुरु पर्वत के बाहर से निकल कर हथेली के किनारे वाले मंगल पर्वत तक गयी है।ये प्रबल व् संकल्पित विचार और कुछ हद तक हठी ज़िद्दी व्रती वाला बनाता है।ऐसा व्यक्ति जो ठान ले वो करके छोड़ता है।और इनके दोनों हाथ में ह्रदय रेखा आगे से कमजोर होती हुयी लगभग शनि पर्वत के नीचे आकर इनकी मस्तिष्क रेखा से मिल गयी है।ये इस बात को बताती है की व्यक्ति में भावनाओ की अपेक्षा विचार की प्रबलता अधिक प्रभावी होती है।इन्होंने एनआरसी से शिक्षा एमए अंग्रेजी से प्राप्त की।
और जीवन रेखा प्रारम्भ में स्वतंत्र होकर प्रारम्भ हुयी है और गोल वृत बनाकर शुरू होती हुयी सुदृढ़ रूप से पूरी मणिबंध तक गयी है।और ठीक इस जीवन रेखा से उठकर दो रेखाओं में से पहली सूर्य पर्वत को जाकर छु रही है और दूसरी रेखा बुध पर्वत पर पहुँच रही है,ये इनके सवतंत्र जीवन और छात्र जीवन से ही राजनीती में प्रवेश को बताती है और ह्रदय रेखा से भी एक रेखा अचानक मुड़कर इसी रेखा में मिल रही है।
चन्द्र पर्वत अनेकों रेखाओं से भरा पड़ा है।जिनमें से एक रेखा भाग्य रेखा शनि पर्वत पर त्रिशूल बना रही है।ये भाग्य रेखा यानि शनि रेखा ही राजनीती पदों व् मंत्री बनाने व् शिक्षा संस्थान को देने में साहयक रही है।पर ह्रदय रेखा से ये गृहस्थी रहे पर वो केवल एक सामाजिक रिश्ता ही रहा और इनके पुत्र और कन्या संतति भी है,जिनके लिए इन्होंने सामान्य कर्म ही किये।ये अनेक चन्द्र रेखाएं इनकी क्षेत्र में साधू वृति में रहकर भ्रमण को देते है।और साथ ही गुरु पर्वत पर एक गुरु वलय यानि दीक्षा रेखा भी है। जो सिद्ध संत से दीक्षा भी पायी बताता है।और ये रेखा पूर्व जन्म में सामाजिक सेवा की इच्छा को पद पर रहकर पूरा करने को बताता है।सूर्य पर्वत के नीचे से कई रेखाएं शनि पर्वत को पार करके गुरु और शनि पर्वत तक पहुँचती है।ये अनेक बार राजनीती और चुनाव में प्रबल प्रतिद्धंद्धी के सामने प्रबल प्रयास करना और जरा से मतो से हारना आदि असफलताओ को बताती है।
बुध पर्वत पर बाहर से आती एक स्पष्ट सीधी रेखा को काटती रेखा इनकी संतान को इनके रहते हुए भी विशेष उन्नति नहीं देती है।
कुल मिलाकर इनके दोनों हाथों में ह्रदय रेखा अपना आस्तित्व खो बेठी है और आधी नीचे की और मस्तिष्क रेखा पर मिलती हुयी चन्द्र पर्वत की और घूमकर जा रही है।तो अनेक रेखाएं शनि पर्वत पर व् गुरु पर्वत के बीच तक यव बना पूर्ण हुयी है।ये सब मिलाकर ऐसे व्यक्ति की भावनाएं कभी साधू तो कभी गृहस्थी यानि भोगी और योग की बीच के व्यक्तित्व को जिलाती है और ऐसा व्यक्ति साधारण से असाधारण तक पहुँच कर पुनः व्रद्धावस्था सामान्य रूप में काट कर समाप्त हो जाता है।यदि ह्रदय रेखा स्वतंत्र और प्रबल होती तो ये व्यक्ति मुख्यमन्त्री जेसे पदों से भी आगे जा सकता था।

स्वामी सत्येंद सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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