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विश्व में सबसे शीघ्र (अति शीघ्र) मन एकाग्र से लेकर ध्यान और कुण्डलिनी जाग्रत करने का योग में सबसे उच्चतर और गोपनीय प्राकृतिक शक्तिपात प्राणायाम

विश्व में सबसे शीघ्र (अति शीघ्र) मन एकाग्र से लेकर ध्यान और कुण्डलिनी जाग्रत करने का योग में सबसे उच्चतर और गोपनीय प्राकृतिक शक्तिपात प्राणायाम:- इस प्राकृतिक प्राण अपान शक्तिपात से कुंडलिनी जागरण के रहस्य विषय पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहे है..
सबसे पहले एक विशिष्ठ आसन जिसे “सिद्धासन” कहा जाता है। उसे लगाना सीखें।अन्यथा सहजासन में या पलोथी मारकर भी बैठ कर इस शक्तिपात प्राणायाम को कर सकते है।पर लाभ कम होगा।

  • सिद्धासन:- दोनों पैर फैलाये और अब सीधे पैर को मोड़ते हुए अपने उलटे पैर की पिंडली के नीचे अपने सीधे पैर के अंगूठे सहित सारा पंजा दबाकर लगाये। अब उल्टा पैर को मोड़कर सीधे पैर के नीचे लाते हुए उसकी पिंडली के नीचे से उसके पंजो को अंदर हाथ से खींचे।ऐसा करने पर अब दोनों पैर के पंजे एक दूसरे की पिंडलियों के बीच दब जायेंगे।और यहाँ विशेष ध्यान रहे की- दोनों पैरों के टखने एक दूसरे के ऊपर रहें।ऐसा करते ही सिद्ध आसन का पैरों की नाड़ियों के सही से दबने का सही और लाभदायक सन्तुलन बनेगा,यही बड़ा महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। और स्वयं की उलटे पैर की ऐड़ी मूलाधार चक्र के नीचे की और लगकर यानि पेशाब और गुदा के बीच की नाड़ी को ये स्पर्श करेगी।इससे आगे तब उलटे पैर की ऐड़ी को अपने मूलाधार चक्र के नीचे की प्रमेह नाड़ी पर लगाकर उसपर थोडा सा बैठते हुए आप स्वयं सीधे बैठे से हो जायेंगे।ये है सिद्धासन।कुछ समय बाद पैर को बदल कर करें।इससे दोनों पेरो की नाड़ियां संतुलित दबेंगी।और इंगला पिंगला नाड़ियाँ सही से शुद्ध होंगी।व् कुण्डलिनी के सौलह शक्ति बिंदु में से 7 तप्त होकर शुद्ध और जाग्रत होंगे।
    यानि सभी प्रकार की सिद्धि के केंद्र कुण्डलिनी को मूलाधार चक्र और शक्ति चक्र के बीच को तप्त करके जाग्रत करता है।केवल इसी आसन में ही लिंग और गुदा के बीच की प्रमेह नाड़ी दबती है।अन्य आसन में इतना ये नाड़ी नहीं दबती है।और सारे पैरों के दसों ऊँगली के व् टखने व् पिंडली व् जांघ के सभी शक्ति बिंदुओं को दबाकर उसमें जो भी विकृतियां है।उन्हें इस प्रकार के बंध से एक अग्नि तप्तता यानि गर्मी देकर नष्ट करके शुद्ध करती हुयी जाग्रत करता है।और जो पेरो से नाड़ियाँ मूलाधार चक्र और रीढ़ के अंत तक जाकर ऊपर चढ़ती है।यही नाडियों का समूह ही इस अन्नमय शरीर में पहला कुण्डलिनी चक्र बनाता है।इसके शुद्ध होते ही,फिर प्राणमय शरीर और फिर मनोमय शरीर का मूलाधार चक्र यानि सुषम्ना नाडी का निर्माण और प्राप्ति होती है यो ये आसन संग प्राणायाम इन्हें शुद्ध करता है।ऐसा किसी अन्य आसन में शक्ति नहीं है।ये बड़ा कठिन होने से पतले लोग तो कुछ आसानी से कर लेते है और मोटे लोगों पर ये आसन नहीं लगने से ये आसन धीरे धीरे छूट व् छिप गया।ये केवल सिद्धों में ही प्रचलित है ओर वे बताते नहीं है।चित्र खिंचाते में अन्य आसन में बैठते है।यो इस आसन का पता नहीं चलता है।
    क्योकि इस आसन के करने मात्र से पेरो में धीरे धीरे विकट गर्मी उत्पन्न होती है।और टखने एक दूसरे के ऊपर रखे होने से दर्द होने लगता है।यो पहले दोनों टखनों के बीच एक पतली सी कपड़े की दो तह बनाकर गद्दी रखी जाती है।फिर अभ्यास बढ़ने पर ये हट जाती है।अनगिन लाभ है इस सिद्धासन के।
  • अब शक्तिपात सिद्ध प्राणायाम:- इसमें जो भीआपकी नाक से स्वर चल रहा हो।उसी से एक तेज गहरा साँस इस प्रकार से ले की- जिसका वेग आपके पेट से होता हुआ।आपके मूलाधार चक्र पर जाकर टक्कर लगे।अब ऐसा करते ही तुरन्त ही अपनी साँस को धीरे से नाक से छोडे।तब आपको ऐसा करते में अपने आप ही एक ऊर्जा का चढ़ाव आपके पेट से होता हुआ,आपके फेफड़ो से गुजर कर गर्दन से सिर तक अनुभव होगा।यदि ऐसा पहले पहल अनुभव नहीं भी होगा।तो कारण अभी आपकी साँस की टक्कर मूलाधार चक्र जो सिद्धासन से निर्मित बंध पर नहीं लगी है।वहां से शक्ति अभी नहीं उठी है।यो ऐसा स्पष्ट अहसास नहीं होगा।तो कोई बात नहीं, अभी कुछ ऐसे प्राणायाम करने के बाद अवश्य होगा।तब प्राणों की उर्ध्व होती गति के साथ साथ ही आपकी दोनों आँखे स्वयं ही ऊपर की और चढ़ जायेंगी।और इस प्रकार के करते रहने से प्राणों के संघर्ष से स्वयं ही एक अंतर्जगत में अंधकार मिटकर एक प्रकाश का दिखना प्रारम्भ होगा।यो उसी प्राणों के बार बार ऊपर चढ़ने के क्रम होने से आपकी आँखे स्वयं ही आज्ञाचक्र पर बिना प्रत्यत्न के एकाग्र होती चली जायेगी।इसमें अन्य ध्यान विधियों में बताई, बल्कि थोपी गयी विधि की-अपनी आँखे अपने आज्ञाचक्र पर लगाये।ऐसा कोई भी अलग से प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा।ये इसमें स्वयं होगा और आगे प्राणायाम के बढ़ने पर निरन्तर नीचे से शक्तिपात के प्रवाह के होते रहने से आप अपने सारे शरीर में दिव्य शक्ति के स्पर्श और उससे उत्पन्न आनन्द का अनुभव करेंगे। और आपकी आँखों आज्ञाचक्र पर एक अलौकिक बिंदु देखने लगेंगी और कुछ दिनों बाद ही लगेगा की-आपके पैर और मूलाधार चक्र व् पेट और फेफड़ो से शक्ति उठकर आपके सिर के मध्य सहस्त्रार चक्र पर स्पर्श करते हुए आपके नेत्रों द्धारा आज्ञाचक्र से गुजर कर बाहर आकाश में जाकर पुनः वापस आ रही है और आपकी साँस के साथ रीढ़ से होती हुयी मूलाधार चक्र तक जा रही है।बाद के अभ्यास में आपकी पता ही नहीं चलेगा की-आपकी साँस की गति पर ध्यान है।अद्धभुत शांति का पक्का अहसास आपको तुरन्त ही मिलेगा।
  • मन की एकाग्रता:- सभी ध्यान आदि की विधियों से ज्यादा केवल इसी शक्तिपात प्राणायाम से ही सबसे तेज मन एकाग्र होता है।और प्रकाश प्रकट होकर कुण्डलिनी जाग्रत और उसकी विभिन्न शक्तियां जाग्रत होती है।इसी आगे तो गुरु से ही रहस्य सीखा जाता है।

कितना प्राणायाम करना चाहिए:-
प्रारम्भ में 25 करके ठहरे और अपना ध्यान आज्ञाचक्र पर प्राप्त बिंदु पर लगाये।और फिर 25 प्राणायाम करें।ऐसा केवल 5 बार 25-25 करके ही पूरा करें।
1-ख़ाली पेट करे।
2-खाना या कुछ खाये हुए कम से कम ड़ेढ़ घण्टा होना चाहिए।
3-बीच में पेशाब आये तो उसे करके फिर सिद्धासन लगा कर करें।
4-साँस लेते एक झटके में तेज और पूरी करके साँस ले, जो मूलाधार तक जाकर लगे।और धीरे यानि मध्यम गति से सांस छोड़े,साँस लेने की गति की अपेक्षा छोड़ना धीरे यानि मध्यम गति से हो।

शक्ति रहस्य:- साँस खींचों चाहे कितने वेग से।पर छोड़ना बहुत ही मध्यम गति से।क्योकि गति से साँस लेने से शरीर में प्राण संघर्ष पैदा होता है और उस संघर्ष से शक्ति उत्पन्न होती है और ये उत्पन्न शक्ति को तेज साँस से बाहर फेंकते ही शक्ति नष्ट हो जाती है।तभी तो दिन भर भागते रहते घोड़े या पशु में शक्ति की व्रद्धि नहीं होती और नाही उनकी कुण्डलिनी जाग्रत होती है।अन्यथा सारे दौड़ने वालो की कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती।यो साँस पर नियंत्रण ही मुख्य बात है और उसके लिए साँस को धीरे से ध्यान से देखते हुए छोड़े।इससे ज्यादा ज्ञान और शक्ति नियंत्रण रहस्य को गुरु से सीखना पड़ता है।
प्राणायाम के निरन्तर करने से जब गले में खुश्की सी आ जाये तब थोड़ा रुक कर गुनगुना सा एक दो घूंट पानी पी ले और थोड़ा रुक कर फिर प्राणायाम करें।
इस प्राणायाम के बाद आप 3 या 5 किशमिश अपने मुंह में डालकर चूसते से चबाये।तो खुश्की या गले और साँस की नली में तरावट आ कमजोरी मिट शक्ति मिलती है।वेसे तो ये प्राणायाम स्वयं सभी शक्ति देता है।पर कुछ प्रारम्भिक व् आसक्त लोगो के लिए ये बताया है।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः

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