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मछली की अंगूठी का धार्मिक महत्त्व और उसके विभिन्न उँगलियों में पहनने से कैसे आपका भाग्य चमत्कारिक लाभ प्राप्त करता है,इसके साथ मत्स्य अवतार की कथा-बता रहें है स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…

मछली की अंगूठी का धार्मिक महत्त्व और उसके विभिन्न उँगलियों में पहनने से कैसे आपका भाग्य चमत्कारिक लाभ प्राप्त करता है,इसके साथ मत्स्य अवतार की कथा-बता रहें है स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…

मत्स्य अवतार भगवान श्री विष्णु के प्रथम अवतार है।जो चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीय को मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात् ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।
मत्स्य अवतार जयंती:-

यो भारत में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मत्स्य अवतार का जन्मउत्सव मनाया जाता है।

मत्स्य अवतार की कथा:-

एक बार ब्रह्माजी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया। उस दैत्य का नाम ‘हयग्रीव’ था। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारण किया। इसकी विस्मयकारिणी कथा इस प्रकार है..
कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था। सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही, बड़े उदार हृदय का भी था। प्रभात का समय था। सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नान करने के पश्चात् जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया, तो अंजलि में जल के साथ एक छोटी-सी मछली भी आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया। मछली बोली- “राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।” सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली- “राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढ़िए, क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है।” सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। यहाँ भी मछली का शरीर रात भर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया। दूसरे दिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- “राजन! मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंध कीजिए, क्योंकि मटका भी मेरे रहने के लिए छोटा पड़ रहा है।” तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया, किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया। इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया। आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया। अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- “राजन! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए।”

राजा सत्यव्रत की ईश प्रार्थना:-

अब सत्यव्रत विस्मित हो उठा। उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। वह विस्मय-भरे स्वर में बोला- “मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन हैं? आपका शरीर जिस गति से प्रतिदिन बढ़ता है, उसे दृष्टि में रखते हुए बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि आप अवश्य परमात्मा हैं। यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?” सचमुच, वह भगवान श्रीहरि ही थे।

भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार:-

मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया- “राजन! हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत् में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्र उमड़ उठेगा। भयानक वृष्टि होगी। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। आपके पास एक नाव पहुँचेगी। आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुनः दिखाई पड़ूँगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूँगा।” सत्यव्रत उसी दिन से हरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो उठा। समुद्र भी उमड़कर अपनी सीमाओं से बाहर बहने लगा। भयानक वृष्टि होने लगी। थोड़ी ही देर में सारी पृथ्वी पर जल ही जल हो गया। संपूर्ण पृथ्वी जल में समा गई। उसी समय एक नाव दिखाई पड़ी। सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ उस नाव पर बैठ गए। उन्होंने नाव के ऊपर संपूर्ण अनाजों और औषधियों के बीज भी भर लिए।

आत्मज्ञान का उपदेश:-

नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी नहीं दिखाई दे रहा था। सहसा मत्स्य रूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्त ऋषि गण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे- “हे प्रभो! आप ही सृष्टि के आदि हैं, आप ही पालक है और आप ही रक्षक ही हैं। दया करके हमें अपनी शरण में लीजिए, हमारी रक्षा कीजिए।” सत्यव्रत और सप्त ऋषियों की प्रार्थना पर मत्स्य रूपी भगवान प्रसन्न हो उठे। उन्होंने अपने वचन के अनुसार सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया। बताया- “सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ। न कोई ऊँच है, न नीच। सभी प्राणी एक समान हैं। जगत् नश्वर है। नश्वर जगत् में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है। जो प्राणी मुझे सबमें देखता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।”

हयग्रीव राक्षस का वध:-

मत्स्य रूपी भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी अपने मछली स्वरूपी चिन्ह को धारण करने का आदेश देकर अमित कल्याण किया।
मछली की अंगूठी पहने और देखे कितनी जल्दी आपका भाग्य चमकता है,आप पहनकर स्वयं देखे-बता रहें हैं,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी…
भगवान विष्णु जी के मत्स्यावतार
जो भक मछ्ली की अंगूठी पहनना चाहते है,वे अपने शहर के सुनार बाजार से अपने पंसद की डिजाइन वाली चांदी की एक मछली की अंगूठी लेकर आएं। फिर उसे शुक्ल पक्ष के गुरुवार की रात को अपने पूजाघर में दीपक जलाकर एक कटोरी में गंगा जल,दूध,दही,तुलसी,शहद में डालकर पूरी रात के लिए इष्ट गुरु चित्र के सामने रख दें। फिर अगले दिन सुबह के वक्त स्नान करके इस मछली की अंगूठी को कटोरी से निकालकर भगवान सत्यनारायण और पूर्णिमाँ या विष्णु लक्ष्मी या अपने गुरु जी के चित्र के चरणों से छुलकर यानि स्पर्श कराकर अपने सीधे हाथ की तर्जनी में गुरुवार या अनामिका में मंगलवार या रविवार या कंग की ऊँगली में बुधवार के दिन ऐसा करके पहन ले।
जब जब भी गुरुवार हो तब इस मछली की अंगूठी पर चन्दन का टीका लगाएंगे,तो आपके जीवन में चमत्कार ही चमत्कार होंगे,ऐसा 7 गुरुवार कर ले तो आपका यह छल्ला अब अभिमंत्रित हो जायेगा।

इस चांदी की मछली की अंगूठी पहनने से होते हैं ये लाभ:-

1-विधि-विधान के साथ दाहिने हाथ की कनिष्ठा यानि कंग की उंगली में या अंगूठे में चांदी की अंगूठी पहनने से शुक्र ग्रह और चंद्रमा शुभ परिणाम देते हैं। जिसके कारण आपकी खूबसूरती में और आकर्षण के साथ निखार आता है। इससे चेहरे पर पड़ने वाले पिम्पल या दाग-धब्बे मिट जाते हैं। और चेहरे पर खूबसूरत सी चमक बढ़ती है।
2- तर्जनी उंगली में चांदी की मछली वाली अंगूठी पहनने से गुरु ग्रह के दोष मिटकर आपका मस्तिष्क शांत रहता है और यदि आपको जरा जरा सी बात-बात पर बहुत ज्यादा गुस्सा आता है, तो यह उसे भी नियंत्रित करती है।और आपके प्रेम और विवाह और ग्रहस्थ में अड़चनों में शांति और उन्हें अनुकूल करने बड़ी साहयक है।
3-अनामिका ऊँगली में ये मछली की अंगूठी पहनने से कमजोर सूर्य के कारणों से जो व्यक्ति की आत्मिक और मानसिक क्षमता में जितनी भी कमी आती है,उसे नियंत्रित करके उसे मजबूत करके आपकी मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करती है।
4-यदि आपको शरीर में जकड़न या कफ, ऑर्थराइटिस, जोड़ो या हड्डियों से जुड़ी कोई भी समस्या है, तो चांदी की ये मछली की अंगूठी अपनी मध्यमा ऊँगली में ऐसे ही पहनने से आपको बहुत हद तक स्वस्थ लाभ पहुंचा सकती है। इसकी विशेष बात तो यह है कि यह बहुत शीघ्र ही अपना प्रभाव दिखाने लगती है।
5- जिन लोगों को अंगूठी पहनना पसंद नहीं हो वो ठीक इसी विधि से चांदी की चेन में मछली को जड़वाकर ऐसे ही अभिमंत्रित करके पहन सकते हैं।ये त्रिदोषों को शांत तो करती ही है,बल्कि जिन्हें बोलने में या जल्दी जल्दी बोलते हुए परेशानी या हकलाहट जैसी समस्या होती है,या साइनस की समस्या है, उन्हें चांदी की ये मछली की अंगूठी या चांदी के चेन में जड़ित मछली का यह उपाय अवश्य ही करना चाहिए।

  • जो स्त्रियां अपने कानों में मछली जड़े कुंडल पहनती है और अपने पैरों में मछली के बिछुवे और पायल या पाजेब पहनती है,उन्हें मत्स्यावतार की कृपा से पति और सन्तान का सुख प्राप्त होता है।क्योकि मत्स्यावतार ने इस संसार में नवीन सृष्टि की थी।
    और जो स्त्रियां मछली का सुहाग का टीका अपने माथे पर पहनती है,उन्हें सुहागन होने का आशीर्वाद सदा श्री हरि से प्राप्त होता है।और मछली की बिंदी को अपने माथे पर लगाने से भृकुटि में प्राणों यानि जीवन शक्ति का अद्धभुत संचार होने से ध्यान का अच्छा विकास होता है और नजर नहीं लगती है।

और जो लड़के या पुरुष अपनी कलाई पर मछली जड़ित चैन पहनते है,तो उनकी शिक्षा और स्वस्थ व पराक्रम में वृद्धि होती है।
वास्तु दोष का अचूक निवारण:-

अपने घर और व्यापार या ऑफिस के मुख्य दरवाजे पर ऊपर को मुख करे मछली का लॉकेट टांगने से बड़ी तेजी से नकारात्मक शक्ति खत्म होकर सकारात्मक शक्ति की वृद्धि होती है।यानि आप अपने घर या ऑफिस या व्यापार स्थल या पढ़ने के स्थान पर जहाँ भी नकारात्मक शक्ति का अनुभव करते हो,ठीक उसी स्थान पर मछली का लाकेट एक कील में लटका दें और प्रत्येक माह की तृतीया को या शुक्ल पक्ष के गुरुवार को उस मछली पर चन्दन का टीका लगा दिया करें और चमत्कार देखें।

यदि ये अंगूठी आपको नहीं मिलती है,तो अपने सुनार से तुरन्त बनवा ले।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission. org

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